"पापांकुशा एकादशी": अवतरणों में अंतर

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पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा एकादशी हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।
'''पापांकुशा एकादशी''' आश्विन मास के [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को कहते हैं। इस एकादशी का महत्त्व स्वयं भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने धर्मराज [[युधिष्ठिर]] को बताया था। इस एकादशी पर भगवान 'पद्मनाभ' की [[पूजा]] की जाती है। पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम 'पापांकुशा एकादशी' हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।
==विधि==
==व्रत विधि==
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान [[विष्णु]] की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, [[जल]], अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए।
इस एकादशी व्रत का नियम पालन [[दशमी|दशमी तिथि]] की रात्रि से ही शुरू करना चाहिए तथा [[ब्रह्मचर्य]] का पालन करें। [[एकादशी]] के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की शेषशय्या पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथा संभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। संभव न हो तो व्रती एक समय फलाहार कर सकता है। इसके बाद भगवान पद्मनाभ की [[पूजा]] विधि-विधान से करनी चाहिए। यदि व्रत करने वाला पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य [[ब्राह्मण]] से भी करवाया जा सकता है।
 
भगवान विष्णु को [[पंचामृत]] से [[स्नान]] कराना चाहिए। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और [[परिवार]] के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत का पान करे। इसके बाद भगवान को गंध, [[पुष्प]], [[धूपबत्ती|धूप]], [[दीपक]], नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। 'विष्णु सहस्त्रनाम' का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात्रि को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो शयन करना चाहिए और दूसरे दिन यानी [[द्वादशी]] के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त लेना चाहिए। इस प्रकार पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।<ref>{{cite web |url= http://religion.bhaskar.com/news/utsav--papankusha-ekadashi-is-on-7-october-2482810.html|title= पापाकुंशा एकादशी आज, इस प्रकार करें व्रत|accessmonthday= 04 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref>
==कथा==
==कथा==
प्राचीनकाल में [[विंध्य पर्वत]] पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्याभाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया तब [[यमराज]] ने अपने दूतों को क्रोधन को लाए की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है।
प्राचीन काल में [[विंध्य पर्वत]] पर 'क्रोधन' नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्या भाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया, तब [[यमराज]] ने अपने दूतों से कहा कि वे क्रोधन को ले आयें। यमदूतों ने क्रोधन को बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु के भय से भयभीत वह बहेलिया [[अंगिरा|महर्षि अंगिरा]] की शरण में उनके आश्रम जा पहुँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली [[आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[एकादशी]] का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। इस प्रकार वह महापातकी व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत इस चमत्कार को देख हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन के [[यमलोक]] वापस लौट गए।
====अन्य प्रसंग====
एक अन्य कथा इस प्रकार है-
 
एक बार [[युधिष्ठिर]] ने [[श्रीकृष्ण]] से पूछा कि "आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी [[पूजा]] होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?"


मृत्युभय से भयभीत (आक्रांत) वह बहेलिया महर्षि [[अंगिरा]] की शरण में उनके आश्रम पहँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा।
युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- "आश्विन शुक्ल एकादशी 'पापांकुशा' के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह [[स्नान]] करके [[विष्णु|विष्णु भगवान]] का [[ध्यान]] करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो [[भक्ति]] पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता।


इस प्रकार वह महापातकी व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत इस चमत्कार को देख हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन के [[यमलोक]] वापस लौट गए।
श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे [[भक्त]] [[कमल]] के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो [[सतयुग]] में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को [[द्वादशी]] के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।"<ref>{{cite web |url= http://cafehindu.com/festivals/papankusha_ekadshi_mahatmya.html|title= पापाकुंशा एकादशी, व्रत कथा विधि|accessmonthday=04 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= कैफे हिन्दू.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
==महत्त्व==
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान [[विष्णु]] की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, [[जल]], अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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06:39, 4 अक्टूबर 2014 का अवतरण

पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस एकादशी का महत्त्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इस एकादशी पर भगवान 'पद्मनाभ' की पूजा की जाती है। पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम 'पापांकुशा एकादशी' हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।

व्रत विधि

इस एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की शेषशय्या पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथा संभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। संभव न हो तो व्रती एक समय फलाहार कर सकता है। इसके बाद भगवान पद्मनाभ की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। यदि व्रत करने वाला पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवाया जा सकता है।

भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत का पान करे। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। 'विष्णु सहस्त्रनाम' का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात्रि को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो शयन करना चाहिए और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त लेना चाहिए। इस प्रकार पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।[1]

कथा

प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर 'क्रोधन' नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्या भाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया, तब यमराज ने अपने दूतों से कहा कि वे क्रोधन को ले आयें। यमदूतों ने क्रोधन को बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु के भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम जा पहुँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। इस प्रकार वह महापातकी व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत इस चमत्कार को देख हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन के यमलोक वापस लौट गए।

अन्य प्रसंग

एक अन्य कथा इस प्रकार है-

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि "आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी पूजा होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?"

युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- "आश्विन शुक्ल एकादशी 'पापांकुशा' के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता।

श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो सतयुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को द्वादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।"[2]

महत्त्व

पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, जल, अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पापाकुंशा एकादशी आज, इस प्रकार करें व्रत (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2014।
  2. पापाकुंशा एकादशी, व्रत कथा विधि (हिन्दी) कैफे हिन्दू.कॉम। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2014।

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