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* | * अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी ने बग़दाद में इस्लामी क़ानून शरीयत का अध्ययन किया और अपने जीवन में काफ़ी देर से सूफ़ी विचारधारा से उनका परिचय हुआ। | ||
* 1127 में वह उपदेशक के रूप में पहली बार सामने आए। | * 1127 में वह उपदेशक के रूप में पहली बार सामने आए। | ||
* उपदेशक और शिक्षक के रूप में उनकी ख्याति ने समूची इस्लामी दुनिया से अनुयायियों को आकर्षित किया और कहा जाता है कि उन्होंने कई [[यहूदी|यहूदियों]] तथा [[ईसाई|ईसाइयों]] को इस्लाम में धर्मांतरित किया। | * उपदेशक और शिक्षक के रूप में उनकी ख्याति ने समूची इस्लामी दुनिया से अनुयायियों को आकर्षित किया और कहा जाता है कि उन्होंने कई [[यहूदी|यहूदियों]] तथा [[ईसाई|ईसाइयों]] को इस्लाम में धर्मांतरित किया। | ||
* एक विचारक के रूप में इस्लामी क़ानूनों की प्राचीन आवश्यकताओं का सूफ़ीवाद की उनकी अवधारणा अहंकार तथा सांसारिकता पर विजय पाने के लिए अपनी इच्छाओं के ख़िलाफ़ जिहाद और [[अल्लाह]] की मर्जी के प्रति समर्पण की थी। | * एक विचारक के रूप में इस्लामी क़ानूनों की प्राचीन आवश्यकताओं का सूफ़ीवाद की उनकी अवधारणा अहंकार तथा सांसारिकता पर विजय पाने के लिए अपनी इच्छाओं के ख़िलाफ़ जिहाद और [[अल्लाह]] की मर्जी के प्रति समर्पण की थी। | ||
* | * अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी की मृत्यु के बाद उनकी पाक़ दरवेशगी के बारे में कई किंवदंतियाँ पैदा हो गईं और उन्हें दैवी मध्यस्थ मानने वाले अनुयायियों के बीच वह भी लोकप्रिय हैं। | ||
14:04, 17 मार्च 2012 का अवतरण
अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी (जन्म-1077-78, निफ़ - मृत्यु: 1166, बग़दाद) इस्लाम की रहस्यवादी सूफ़ी शाखा के क़ादिरी संप्रदाय के पारंपरिक संस्थापक थे।
- अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी ने बग़दाद में इस्लामी क़ानून शरीयत का अध्ययन किया और अपने जीवन में काफ़ी देर से सूफ़ी विचारधारा से उनका परिचय हुआ।
- 1127 में वह उपदेशक के रूप में पहली बार सामने आए।
- उपदेशक और शिक्षक के रूप में उनकी ख्याति ने समूची इस्लामी दुनिया से अनुयायियों को आकर्षित किया और कहा जाता है कि उन्होंने कई यहूदियों तथा ईसाइयों को इस्लाम में धर्मांतरित किया।
- एक विचारक के रूप में इस्लामी क़ानूनों की प्राचीन आवश्यकताओं का सूफ़ीवाद की उनकी अवधारणा अहंकार तथा सांसारिकता पर विजय पाने के लिए अपनी इच्छाओं के ख़िलाफ़ जिहाद और अल्लाह की मर्जी के प्रति समर्पण की थी।
- अब्द अल- क़ादिर अल-जिलानी की मृत्यु के बाद उनकी पाक़ दरवेशगी के बारे में कई किंवदंतियाँ पैदा हो गईं और उन्हें दैवी मध्यस्थ मानने वाले अनुयायियों के बीच वह भी लोकप्रिय हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ