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प्राचीन आन्ध्र साम्राज्य की राजधानी कृष्णा के मुहाने पर स्थित धान्यकटक या [[अमरावती]] थी, किंतु प्रथम शती ईस्वी के अंतिम [[वर्ष|वर्षों]] में आन्ध्रों ने उत्तर-पश्चिम में एक दूसरी राजधानी बनाने का विचार किया, क्योंकि उसके राज्य के इस भाग पर [[शक]], [[पह्लव]] और [[यवन|यवनों]] के आक्रमणों का डर लगा हुआ था। इस प्रकार आन्ध्र साम्राज्य की पश्चिमी राजधानी पैठान में बनायी गयी और पूर्वी भाग की राजधानी धान्यकटक में ही रही। भूगोलवेत्ता टॉलमी ने इसे सातवाहन नरेश पुलुमावि द्वितीय (138-170 ई.) की राजधानी बताया है। प्रथम [[शताब्दी]] के रोमन लेखक प्लिनी ने प्रतिष्ठान को [[आन्ध्र प्रदेश]] का अत्यंत समृद्धिशाली नगर बताते हुए इसकी प्रशंसा की है। यहाँ की पुरातत्त्व सम्बन्धी खुदाई में आन्ध्र नरेशों के सिक्के मिले हैं, जिनमें मिट्टी की मूर्तियाँ, माला की गुजियाँ, हाथीदाँत और [[शंख]] की बनी हुई वस्तुएँ तथा मकानों के खण्डहर उल्लेखनीय हैं। जैन ग्रंथ ''विविधतीर्थकल्प'' के अनुसार [[महाराष्ट्र]] में स्थित यह नगर कालांतर में एक महत्त्वहीन गाँव बन गया। | प्राचीन आन्ध्र साम्राज्य की राजधानी कृष्णा के मुहाने पर स्थित धान्यकटक या [[अमरावती]] थी, किंतु प्रथम शती ईस्वी के अंतिम [[वर्ष|वर्षों]] में आन्ध्रों ने उत्तर-पश्चिम में एक दूसरी राजधानी बनाने का विचार किया, क्योंकि उसके राज्य के इस भाग पर [[शक]], [[पह्लव]] और [[यवन|यवनों]] के आक्रमणों का डर लगा हुआ था। इस प्रकार आन्ध्र साम्राज्य की पश्चिमी राजधानी पैठान में बनायी गयी और पूर्वी भाग की राजधानी धान्यकटक में ही रही। भूगोलवेत्ता [[टॉलमी]] ने इसे सातवाहन नरेश पुलुमावि द्वितीय (138-170 ई.) की राजधानी बताया है। प्रथम [[शताब्दी]] के रोमन लेखक [[प्लिनी]] ने प्रतिष्ठान को [[आन्ध्र प्रदेश]] का अत्यंत समृद्धिशाली नगर बताते हुए इसकी प्रशंसा की है। यहाँ की पुरातत्त्व सम्बन्धी खुदाई में आन्ध्र नरेशों के सिक्के मिले हैं, जिनमें [[मिट्टी]] की मूर्तियाँ, माला की गुजियाँ, हाथीदाँत और [[शंख]] की बनी हुई वस्तुएँ तथा मकानों के खण्डहर उल्लेखनीय हैं। जैन ग्रंथ ''विविधतीर्थकल्प'' के अनुसार [[महाराष्ट्र]] में स्थित यह नगर [[कालांतर]] में एक महत्त्वहीन गाँव बन गया। | ||
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पैठान महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 35 किमी दक्षिण की ओर तथा गोदावरी के उत्तरीयतट पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम 'प्रतिष्ठान' है।
स्थापना
पुराणों के अनुसार पैठान की स्थापना ब्रह्मा ने की थी और गोदावरी तट पर इस सुन्दर नगर को उन्होंने अपना निकास बनाया था। प्राचीन बौद्ध साहित्य में प्रतिष्ठान का उत्तर और दक्षिण भारत के बीच जाने वाले व्यापारिक मार्ग के दक्षिणी छोर पर अवस्थित नगर के रूप में वर्णन है। इसे दक्षिणापथ का मुख्य व्यापारिक केन्द्र माना जाता था। सातवाहन नरेशों के शासनकाल में पैठान एक समृद्धशाली नगर था। प्रतिष्ठान से एक व्यापारिक मार्ग श्रावस्ती तक जाता था जिस पर महिष्मती, उज्जायिनी, विदिशा, कौशाम्बी आदि नगर स्थित थे। पेरीप्लस से पता चलता है कि चार पहिया वाली गाड़ियों से व्यापारिक वस्तुएँ भड़ौंच भेजी जाती थीं। इस प्रकार यह है कि प्रतिष्ठान दक्षिणापथ की प्रमुख व्यापारिक मण्डी थी।
इतिहास
प्राचीन आन्ध्र साम्राज्य की राजधानी कृष्णा के मुहाने पर स्थित धान्यकटक या अमरावती थी, किंतु प्रथम शती ईस्वी के अंतिम वर्षों में आन्ध्रों ने उत्तर-पश्चिम में एक दूसरी राजधानी बनाने का विचार किया, क्योंकि उसके राज्य के इस भाग पर शक, पह्लव और यवनों के आक्रमणों का डर लगा हुआ था। इस प्रकार आन्ध्र साम्राज्य की पश्चिमी राजधानी पैठान में बनायी गयी और पूर्वी भाग की राजधानी धान्यकटक में ही रही। भूगोलवेत्ता टॉलमी ने इसे सातवाहन नरेश पुलुमावि द्वितीय (138-170 ई.) की राजधानी बताया है। प्रथम शताब्दी के रोमन लेखक प्लिनी ने प्रतिष्ठान को आन्ध्र प्रदेश का अत्यंत समृद्धिशाली नगर बताते हुए इसकी प्रशंसा की है। यहाँ की पुरातत्त्व सम्बन्धी खुदाई में आन्ध्र नरेशों के सिक्के मिले हैं, जिनमें मिट्टी की मूर्तियाँ, माला की गुजियाँ, हाथीदाँत और शंख की बनी हुई वस्तुएँ तथा मकानों के खण्डहर उल्लेखनीय हैं। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प के अनुसार महाराष्ट्र में स्थित यह नगर कालांतर में एक महत्त्वहीन गाँव बन गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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