"बन्धन से गर छूटनू चाहत -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर
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शांत सुभाव करो मनवा, न जरो अविवेक के फंद में आकर। | |||
ज्ञान विचार दया उर धारके, राम चितार तू चित्त लगाकर। | |||
धीरज आसन दृढ जमाय के या विधि से मन को समझाकर। | |||
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर ।। | |||
नित्त ही चित्त प्रसन्न रखो यह साधन साधू से सिख तू जाकर। | |||
फेर भी भूल परे तुमको धृक है धृक है तन मानव पाकर। | |||
क्रोध व तृष्णा को दूर करो कहूँ संत समागम संगत जाकर। | |||
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर।। | |||
परलोक बनावन से हटके मद क्रोध भर्यो तृष्णा उर आकर। | |||
क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी पाकर। | |||
जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ पढ़ाकर। | |||
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर।। | |||
अजपा वही जो जपे दिन रैन यह होता है स्वांस के साथ सुनाकर। | |||
ध्यान से युक्त व सत्य परायण उच्च विचार हृदय में धराकर। | |||
भोजन अल्प एकांत निवास तू थोरी ही नींद ले जाग उठाकर। | |||
बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर।। | |||
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परलोक | |||
क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी | |||
जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ | |||
बंधन से गर | |||
अजपा वही जो जपे दिन रैन यह होता है स्वांस के साथ | |||
ध्यान से युक्त व सत्य परायण उच्च विचार हृदय में | |||
भोजन अल्प एकांत निवास तू थोरी ही नींद ले जाग | |||
बंधन से गर | |||
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14:19, 9 जून 2012 का अवतरण
शांत सुभाव करो मनवा, न जरो अविवेक के फंद में आकर। |
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