"बन्धन से गर छूटनू चाहत -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर
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बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर।। | बंधन से गर छुटनू चाहत, तू अजपा उर सत्य जपाकर।। | ||
परलोक बनावन से हटके मद क्रोध | परलोक बनावन से हटके मद क्रोध भऱ् यो तृष्णा उर आकर। | ||
क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी पाकर। | क्रोधको जीतके तृष्णा न राखत ज्ञानी वही गति ज्ञानकी पाकर। | ||
जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ पढ़ाकर। | जो मनको न दृढावत राम, कहो किन काम के ग्रन्थ पढ़ाकर। |
09:57, 11 जून 2012 के समय का अवतरण
शांत सुभाव करो मनवा, न जरो अविवेक के फंद में आकर। |
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