"इमली": अवतरणों में अंतर

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'''इमली''' ([[अंग्रेजी]]:Tamarind) पादप कुल फैबेसी का एक वृक्ष है। इसके फल [[लाल रंग|लाल]] से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं। इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह [[अमेरिका]], [[अफ्रीका]] और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। [[फरवरी]] और [[मार्च]] के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक ([[सब्जियाँ|सब्जी]]), [[दाल]], चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।
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{{पुनरीक्षण}}
===इमली (Tamarind Tree)===
;परिचय
इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।


;हानिकारक प्रभाव
==भारत में इमली==
कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है। जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें भी पकी इमली से दान्तों का खट्टा होना, सिर और जबडे़ में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।
[[भारत]] में काफी पुराने समय से इमली का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालांकि इस फल का मूल देश अफ्रीका है, पर एशियाई देशों से जब यह फल [[फारस]] और [[अरब देश|अरब देशों]] में गया तो इसे ''इंडियन डेट'' कहा गया, जिसकी वजह थी कि यह फल देखने में [[खजूर]] के सूखे गूदे की तरह लगता था। चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। भारतीय खाने में इसका उपयोग सदियों से हो रहा है। भारतीय व्यंजनों में इसका उपयोग स्वाद लाने के लिए किया जाता है, पर सेहत के लिए लाभकारी अनेक गुण भी इसमें हैं। इसका गूदा जैम, सीरप और मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कैरोटीन, [[विटामिन]] सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इमली की फली भूरे रंग की 3 से 7 इंच लंबी होती है। फली के भीतर रसदार और अम्ल गूदे को चटनी और रसे (करी) में प्रयोग किया जाता है। इमली के गूदे में मौजूद टारटरिक और पेक्टिन की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।
 
मात्रा :- इमली का लगभग 6 से 24 ग्राम फल का गूदा तथा 1 से 3 ग्राम बीज का चूर्ण लेना चाहिए।
 
भारत में काफी पुराने समय से इमली का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालांकि इस फल का मूल देश अफ्रीका है, पर एशियाई देशों से जब यह फल फारस और अरब देशों में गया तो इसे इंडियन डेट कहा गया, जिसकी वजह थी कि यह फल देखने में खजूर के सूखे गूदे की तरह लगता था। चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। भारतीय खाने में इसका उपयोग सदियों से हो रहा है। भारतीय व्यंजनों में इसका उपयोग स्वाद लाने के लिए किया जाता है, पर सेहत के लिए लाभकारी अनेक गुण भी इसमें हैं। इसका गूदा जैम, सीरप और मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कैरोटीन, विटामिन सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इमली की फली भूरे रंग की 3 से 7 इंच लंबी होती है। फली के भीतर रसदार और अम्ल गूदे को चटनी और रसे (करी) में प्रयोग किया जाता है। इमली के गूदे में मौजूद टारटरिक और पेक्टिन की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।


;फायदे ही फायदे
==लाभदायक==
* यह एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होने के कारण कैंसर से लड़ने में सक्षम है।
* यह एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होने के कारण कैंसर से लड़ने में सक्षम है।
* यह पाचन में काफी उपयोगी होती है।
* यह पाचन में काफी उपयोगी होती है।
* बुखार में फायदेमंद होती है।
* बुखार में फायदेमंद होती है।
* इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है।
* इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है।
* इमली के बीज का उपयोग आंखों के ड्राप तैयार करने में किया जाता है।
* इमली के बीज का उपयोग [[आंख|आंखों]] के ड्राप तैयार करने में किया जाता है।
* इमली की पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय बनाने में किया जाता है।
* इमली की पत्तियों का प्रयोग [[हर्बल चाय]] बनाने में किया जाता है।
* इमली के फूलों के रस का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जाता है।
* इमली के फूलों के रस का उपयोग [[बवासीर]] के उपचार में किया जाता है।
====भोजन में इमली का महत्त्व====
दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्रवासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।
[[दक्षिण भारत]] में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए [[आंध्र प्रदेश]] के वासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ [[टमाटर]] भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।
 
====सेहत के लिए गुणकारी====
कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं। गर्मियों में ताजगीदायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।  
* कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि [[दाँत|दाँतों]] पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं।  
 
* गर्मियों में ताजगी दायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, [[नमक]] व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।  
पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है।  
* पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है।  
 
* पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।  
पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।  
* इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। [[आयुर्वेद]] में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।  
 
* इसकी पत्तियां ठंडक पहुंचाने वाली होती हैं, वहीं छाल एरिंस्ट्रेजेंट का काम करती है। इसके फल का गूदा पाचक, शीतल और रोगाणुरोधक होता है। इमली का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधि के रूप में पेट व पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियां पेट के कीड़ों का नाश करती हैं। पीलिया में भी यह लाभकारी है। इसका उपयोग अल्सर की चिकित्सा के लिए भी किया जाता है।  
इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।  
* पुरानी इमली बहुत ही गुणकारी होती है। सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है। इसके बीज संग्रहणी, अतिसार, रक्तार्श, सोमरोग, प्रदर, प्रेमह, बिच्छू आदि विषैले जीवों के काटने के दर्द में उपयोगी है। इमली को हमेशा पानी में कांच या मिट्टी के पात्र में ही भिंगोना चाहिये, तांबा, पीतल, कांसा या लोहे के पात्र में कभी नहीं। इमली के कुछ विशेष उपयोग इस प्रकार है :-
 
; पाचन विकार  
===सेहत के लिए गुणकारी===
पके हुए फल का गूदा पित्त की उल्टी, [[कब्ज]], वायु विकार, अपचन के इलाज में लाभदायक है। पानी के साथ इसके गूदे को कोमल करके बनाया हुआ अर्क भूख में कमी होने में फायदा पहुंचाता है।
इसकी पत्तियां ठंडक पहुंचाने वाली होती हैं, वहीं छाल एरिंस्ट्रेजेंट का काम करती है। इसके फल का गूदा पाचक, शीतल और रोगाणुरोधक होता है। इमली का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधि के रूप में पेट व पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियां पेट के कीड़ों का नाश करती हैं। पीलिया में भी यह लाभकारी है। इसका उपयोग अल्सर की चिकित्सा के लिए भी किया जाता है।  
; स्कर्वी
 
यह बीमारी विटामिन सी की कमी से होने वाला रोग है, जिससे त्वचा में धब्बे आ जाते हैं, मसूड़े स्पंजी हो जाते हैं और श्लेष्मा झिल्ली से रक्त बहता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पीला और उदास दिखता है। इमली में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह स्कर्वी के इलाज में लाभदायक है।
पुरानी इमली बहुत ही गुणकारी होती है। सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है। इसके बीज संग्रहणी, अतिसार, रक्तार्श, सोमरोग, प्रदर, प्रेमह, बिच्छू आदि विषैले जीवों के काटने के दर्द में उपयोगी है। इमली को हमेशा पानी में कांच या मिट्टी के पात्र में ही भिंगोना चाहिये, तांबा, पीतल, कांसा या लोहे के पात्र में कभी नहीं। इमली के कुछ विशेष उपयोग इस प्रकार है :-
; सामान्य सर्दी  
 
दक्षिण भारत में सर्दी के इलाज के लिये इमली को प्रभावकारी माना जाता है। पिसी हुई इमली के साथ 1 चम्मच काली मिर्च को पानी में कुछ समय उबालने के बाद इसका सेवन किया जाता है।   
पाचन विकार :- पके हुए फल का गूदा पित्त की उल्टी, कब्ज, वायु विकार, अपचन के इलाज में लाभदायक है। पानी के साथ इसके गूदे को कोमल करके बनाया हुआ अर्क भूख में कमी होने में फायदा पहुंचाता है।
; पेचिश
 
यह [[आंत]] में सूजन होने से होता है, जिससे दस्त के मल में अत्यंत बलगम या रक्त का निकास होता है। कभी-कभार साथ में बुखार और पेट दर्द की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। इमली का पेय पेचिश के इलाज में लाभकारी है।   
स्कर्वी :- यह बीमारी विटामिन सी की कमी से होने वाला रोग है, जिससे त्वचा में धब्बे आ जाते हैं, मसूड़े स्पंजी हो जाते हैं और श्लेष्मा झिल्ली से रक्त बहता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पीला और उदास दिखता है। इमली में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह स्कर्वी के इलाज में लाभदायक है।
; जलन
 
जलन के इलाज के लिए इमली के पत्तों को जला कर इसका महीन पाउडर बनाते हैं। इस पाउडर को [[तिल]] के तेल के साथ मिला कर जले हुए हिस्से में लगाने पर घाव कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
सामान्य सर्दी :- दक्षिण भारत में सर्दी के इलाज के लिये इमली को प्रभावकारी माना जाता है। पिसी हुई इमली के साथ 1 चम्मच काली मिर्च को पानी में कुछ समय उबालने के बाद इसका सेवन किया जाता है।   
; जोड़ों की सूजन व दर्द
 
इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग ख़ासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। इमली के पत्तों को पानी के साथ पीस कर बने लेप को जोड़ों और टखने के सूजे हुए हिस्से में लगाने पर सूजन और दर्द में राहत मिलती है। इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।  
पेचिश :-  यह आंत में सूजन होने से होता है, जिससे दस्त के मल में अत्यंत बलगम या रक्त का निकास होता है। कभी-कभार साथ में बुखार और पेट दर्द की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। इमली का पेय पेचिश के इलाज में लाभकारी है।   
; गले की खराश  
 
इमली के पानी के गरारे गले की खराश के इलाज में लाभकारी हैं। आप चाहें तो इमली को पानी में उबाल कर इसके गरारे कर सकते हैं अथवा इसकी सूखी पत्तियों का पाउडर पानी में मिला कर उपयोग में  लाया जा सकता है।
जलन :- जलन के इलाज के लिए इमली के पत्तों को जला कर इसका महीन पाउडर बनाते हैं। इस पाउडर को तिल के तेल के साथ मिला कर जले हुए हिस्से में लगाने पर घाव कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
; कब्ज
 
बहुत पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।
जोड़ों की सूजन व दर्द :- इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग ख़ासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। इमली के पत्तों को पानी के साथ पीस कर बने लेप को जोड़ों और टखने के सूजे हुए हिस्से में लगाने पर सूजन और दर्द में राहत मिलती है। इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।  
; खाज-खुजली  
 
इमली के बीज [[नींबू]] के रस में पीसकर लगाने से खाज दूर होती है।
गले की खराश :- इमली के पानी के गरारे गले की खराश के इलाज में लाभकारी हैं। आप चाहें तो इमली को पानी में उबाल कर इसके गरारे कर सकते हैं अथवा इसकी सूखी पत्तियों का पाउडर पानी में मिला कर उपयोग में  लाया जा सकता है।
; लू लगना  
 
गर्मी में एकदम बाहर निकलने से शरीर का जलीयांश शुष्क होकर तीव्र ज्वर हो जाता है। इसे लू लगना कहते हैं। इससे बचने के लिये लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है।  
कब्ज :- बहुत पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।
; स्वप्नदोष
 
इमली के बीजों को चौगुने [[दूध]] में भिंगोकर रख दें। दो दिन बाद छिलका निकालकर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन इसका करने से धातु पुष्ट होती है और स्वप्नदोष दूर होता है।
खाज-खुजली :- इमली के बीज नींबू के रस में पीसकर लगाने से खाज दूर होती है।
; नपुंसकता
 
इमली के बीजों की गिरी, वटजटा, सिंघाड़ा, तालमखाना, कमरकस, कतीरागोंद, बबूल का गोंद, बीजबंद, समुद्रदोष, तुख्यमलंगा, कौंच के बीच, रीठे की गिरी, छोटी इलाइयची प्रत्येक को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और समभाग मिश्री की चाशनी मिलाकर जमा दें। सुबह-शाम 6-6 [[माशा]] सेवन करने से और ऊपर से [[गाय]] का दूध पीने से वीर्यहीनता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन मिटकर नपुंसकता दूर होती है।
लू लगना :- गर्मी में एकदम बाहर निकलने से शरीर का जलीयांश शुष्क होकर तीव्र ज्वर हो जाता है। इसे लू लगना कहते हैं। इससे बचने के लिये लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है।  
; श्वेद प्रदर
 
बिना ऋतुकाल स्त्री की योनि से सफेद, लाल नीला, पीला स्राव होता रहे तो यह प्रदर रोग समझना चाहिये। अप्राकृतिक भोजन, अजीर्ण, अतिमैथुन, गर्भस्राव, क्रोध, शोक, चिंता ज्यादा चटपटे पदार्थों के सेवन आदि से यह रोग होता है। यह रोग कई प्रकार का होता है। इससे स्त्री का शरीर दिनों दिन कमजोर और रक्तहीन होता चला जाता है। इससे बचने के लिये लोहे की छोटी कड़ाही या तवे पर थोड़ी रेत डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर खूब गर्म करें। बाद में इमली के बीज इसमें डाल दें और कड़छी चलाते रहें। अधभुने हो जाने पर गर्म दशा में ही इनके छिलके निकाल लें। बीजों को लोहे के हमामदस्ते में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के वजन के बराबर मिश्री या शक्कर मिला लें। प्रात: सायं 1-2 तोले की मात्रा में गाय के दूध के साथ या पानी से कुछ दिन लगातार सेवन करने से श्वेत प्रदर का रोग समाप्त हो जाता है।
स्वप्नदोष :- इमली के बीजों को चौगुने दूध में भिंगोकर रख दें। दो दिन बाद छिलका निकालकर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन इसका करने से धातु पुष्ट होती है और स्वप्नदोष दूर होता है।
; सांप का विष  
 
इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल में घिसकर रख लें। सांप के काटे हुए स्थान पर ब्लेड से चीरकर दबाकर वहां से काला रक्त निकालकर घिसे हुए बीजों को एक-दो बीज की मात्रा में चिपका दें। ये बीज विष चूसना आरंभ कर देंगे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद बीज बदलते रहें और बदले हुए बीजों की ज़मीन में गाड़ दें। बीज उस समय तक बदलते रहें, जब तक कि पूरा विष न उतर जाए।
नपुंसकता :- इमली के बीजों की गिरी, वटजटा, सिंघाड़ा, तालमखाना, कमरकस, कतीरागोंद, बबूल का गोंद, बीजबंद, समुद्रदोष, तुख्यमलंगा, कौंच के बीच, रीठे की गिरी, छोटी इलाइयची प्रत्येक को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और समभाग मिश्री की चाशनी मिलाकर जमा दें। सुबह-शाम 6-6 माशा सेवन करने से और ऊपर से गाय का दूध पीने से वीर्यहीनता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन मिटकर नपुंसकता दूर होती है।
; दिल के मरीजों के लिए  
 
दिल के मरीजों के लिए इमली फायदेमंद है। इमली कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करती है। इसे हृदय का टॉनिक माना जाता है।  
श्वेद प्रदर :- बिना ऋतुकाल स्त्री की योनि से सफेद, लाल नीला, पीला स्राव होता रहे तो यह प्रदर रोग समझना चाहिये। अप्राकृतिक भोजन, अजीर्ण, अतिमैथुन, गर्भस्राव, क्रोध, शोक, चिंता ज्यादा चटपटे पदार्थों के सेवन आदि से यह रोग होता है। यह रोग कई प्रकार का होता है। इससे स्त्री का शरीर दिनों दिन कमजोर और रक्तहीन होता चला जाता है। इससे बचने के लिये लोहे की छोटी कड़ाही या तवे पर थोड़ी रेत डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर खूब गर्म करें। बाद में इमली के बीज इसमें डाल दें और कड़छी चलाते रहें। अधभुने हो जाने पर गर्म दशा में ही इनके छिलके निकाल लें। बीजों को लोहे के हमामदस्ते में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के वजन के बराबर मिश्री या शक्कर मिला लें। प्रात: सायं 1-2 तोले की मात्रा में गाय के दूध के साथ या पानी से कुछ दिन लगातार सेवन करने से श्वेत प्रदर का रोग समाप्त हो जाता है।
==हानिकारक प्रभाव==
 
कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है। जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें भी पकी इमली से दान्तों का खट्टा होना, सिर और जबडे़ में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।
सांप का विष :- इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल में घिसकर रख लें। सांप के काटे हुए स्थान पर ब्लेड से चीरकर दबाकर वहां से काला रक्त निकालकर घिसे हुए बीजों को एक-दो बीज की मात्रा में चिपका दें। ये बीज विष चूसना आरंभ कर देंगे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद बीज बदलते रहें और बदले हुए बीजों की ज़मीन में गाड़ दें। बीज उस समय तक बदलते रहें, जब तक कि पूरा विष न उतर जाए।
 
दिल के मरीजों के लिए :- दिल के मरीजों के लिए इमली फायदेमंद है। इमली कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करती है। इसे हृदय का टॉनिक माना जाता है।  


;विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
;विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{वृक्ष}}


[[Category:नया पन्ना अगस्त-2012]]
[[Category:वनस्पति]][[Category:वनस्पति_कोश]][[Category:वनस्पति_विज्ञान]][[Category:औषधीय पौधे]]
 
[[Category:वृक्ष]]
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10:07, 10 नवम्बर 2012 का अवतरण

इमली (अंग्रेजी:Tamarind) पादप कुल फैबेसी का एक वृक्ष है। इसके फल लाल से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं। इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।

भारत में इमली

भारत में काफी पुराने समय से इमली का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालांकि इस फल का मूल देश अफ्रीका है, पर एशियाई देशों से जब यह फल फारस और अरब देशों में गया तो इसे इंडियन डेट कहा गया, जिसकी वजह थी कि यह फल देखने में खजूर के सूखे गूदे की तरह लगता था। चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। भारतीय खाने में इसका उपयोग सदियों से हो रहा है। भारतीय व्यंजनों में इसका उपयोग स्वाद लाने के लिए किया जाता है, पर सेहत के लिए लाभकारी अनेक गुण भी इसमें हैं। इसका गूदा जैम, सीरप और मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कैरोटीन, विटामिन सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इमली की फली भूरे रंग की 3 से 7 इंच लंबी होती है। फली के भीतर रसदार और अम्ल गूदे को चटनी और रसे (करी) में प्रयोग किया जाता है। इमली के गूदे में मौजूद टारटरिक और पेक्टिन की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।

लाभदायक

  • यह एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होने के कारण कैंसर से लड़ने में सक्षम है।
  • यह पाचन में काफी उपयोगी होती है।
  • बुखार में फायदेमंद होती है।
  • इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है।
  • इमली के बीज का उपयोग आंखों के ड्राप तैयार करने में किया जाता है।
  • इमली की पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय बनाने में किया जाता है।
  • इमली के फूलों के रस का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जाता है।

भोजन में इमली का महत्त्व

दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्र प्रदेश के वासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।

सेहत के लिए गुणकारी

  • कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं।
  • गर्मियों में ताजगी दायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।
  • पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है।
  • पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।
  • इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।
  • इसकी पत्तियां ठंडक पहुंचाने वाली होती हैं, वहीं छाल एरिंस्ट्रेजेंट का काम करती है। इसके फल का गूदा पाचक, शीतल और रोगाणुरोधक होता है। इमली का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधि के रूप में पेट व पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियां पेट के कीड़ों का नाश करती हैं। पीलिया में भी यह लाभकारी है। इसका उपयोग अल्सर की चिकित्सा के लिए भी किया जाता है।
  • पुरानी इमली बहुत ही गुणकारी होती है। सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है। इसके बीज संग्रहणी, अतिसार, रक्तार्श, सोमरोग, प्रदर, प्रेमह, बिच्छू आदि विषैले जीवों के काटने के दर्द में उपयोगी है। इमली को हमेशा पानी में कांच या मिट्टी के पात्र में ही भिंगोना चाहिये, तांबा, पीतल, कांसा या लोहे के पात्र में कभी नहीं। इमली के कुछ विशेष उपयोग इस प्रकार है :-
पाचन विकार

पके हुए फल का गूदा पित्त की उल्टी, कब्ज, वायु विकार, अपचन के इलाज में लाभदायक है। पानी के साथ इसके गूदे को कोमल करके बनाया हुआ अर्क भूख में कमी होने में फायदा पहुंचाता है।

स्कर्वी

यह बीमारी विटामिन सी की कमी से होने वाला रोग है, जिससे त्वचा में धब्बे आ जाते हैं, मसूड़े स्पंजी हो जाते हैं और श्लेष्मा झिल्ली से रक्त बहता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पीला और उदास दिखता है। इमली में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह स्कर्वी के इलाज में लाभदायक है।

सामान्य सर्दी

दक्षिण भारत में सर्दी के इलाज के लिये इमली को प्रभावकारी माना जाता है। पिसी हुई इमली के साथ 1 चम्मच काली मिर्च को पानी में कुछ समय उबालने के बाद इसका सेवन किया जाता है।

पेचिश

यह आंत में सूजन होने से होता है, जिससे दस्त के मल में अत्यंत बलगम या रक्त का निकास होता है। कभी-कभार साथ में बुखार और पेट दर्द की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। इमली का पेय पेचिश के इलाज में लाभकारी है।

जलन

जलन के इलाज के लिए इमली के पत्तों को जला कर इसका महीन पाउडर बनाते हैं। इस पाउडर को तिल के तेल के साथ मिला कर जले हुए हिस्से में लगाने पर घाव कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

जोड़ों की सूजन व दर्द

इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग ख़ासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। इमली के पत्तों को पानी के साथ पीस कर बने लेप को जोड़ों और टखने के सूजे हुए हिस्से में लगाने पर सूजन और दर्द में राहत मिलती है। इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।

गले की खराश

इमली के पानी के गरारे गले की खराश के इलाज में लाभकारी हैं। आप चाहें तो इमली को पानी में उबाल कर इसके गरारे कर सकते हैं अथवा इसकी सूखी पत्तियों का पाउडर पानी में मिला कर उपयोग में लाया जा सकता है।

कब्ज

बहुत पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।

खाज-खुजली

इमली के बीज नींबू के रस में पीसकर लगाने से खाज दूर होती है।

लू लगना

गर्मी में एकदम बाहर निकलने से शरीर का जलीयांश शुष्क होकर तीव्र ज्वर हो जाता है। इसे लू लगना कहते हैं। इससे बचने के लिये लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है।

स्वप्नदोष

इमली के बीजों को चौगुने दूध में भिंगोकर रख दें। दो दिन बाद छिलका निकालकर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन इसका करने से धातु पुष्ट होती है और स्वप्नदोष दूर होता है।

नपुंसकता

इमली के बीजों की गिरी, वटजटा, सिंघाड़ा, तालमखाना, कमरकस, कतीरागोंद, बबूल का गोंद, बीजबंद, समुद्रदोष, तुख्यमलंगा, कौंच के बीच, रीठे की गिरी, छोटी इलाइयची प्रत्येक को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और समभाग मिश्री की चाशनी मिलाकर जमा दें। सुबह-शाम 6-6 माशा सेवन करने से और ऊपर से गाय का दूध पीने से वीर्यहीनता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन मिटकर नपुंसकता दूर होती है।

श्वेद प्रदर

बिना ऋतुकाल स्त्री की योनि से सफेद, लाल नीला, पीला स्राव होता रहे तो यह प्रदर रोग समझना चाहिये। अप्राकृतिक भोजन, अजीर्ण, अतिमैथुन, गर्भस्राव, क्रोध, शोक, चिंता ज्यादा चटपटे पदार्थों के सेवन आदि से यह रोग होता है। यह रोग कई प्रकार का होता है। इससे स्त्री का शरीर दिनों दिन कमजोर और रक्तहीन होता चला जाता है। इससे बचने के लिये लोहे की छोटी कड़ाही या तवे पर थोड़ी रेत डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर खूब गर्म करें। बाद में इमली के बीज इसमें डाल दें और कड़छी चलाते रहें। अधभुने हो जाने पर गर्म दशा में ही इनके छिलके निकाल लें। बीजों को लोहे के हमामदस्ते में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के वजन के बराबर मिश्री या शक्कर मिला लें। प्रात: सायं 1-2 तोले की मात्रा में गाय के दूध के साथ या पानी से कुछ दिन लगातार सेवन करने से श्वेत प्रदर का रोग समाप्त हो जाता है।

सांप का विष

इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल में घिसकर रख लें। सांप के काटे हुए स्थान पर ब्लेड से चीरकर दबाकर वहां से काला रक्त निकालकर घिसे हुए बीजों को एक-दो बीज की मात्रा में चिपका दें। ये बीज विष चूसना आरंभ कर देंगे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद बीज बदलते रहें और बदले हुए बीजों की ज़मीन में गाड़ दें। बीज उस समय तक बदलते रहें, जब तक कि पूरा विष न उतर जाए।

दिल के मरीजों के लिए

दिल के मरीजों के लिए इमली फायदेमंद है। इमली कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करती है। इसे हृदय का टॉनिक माना जाता है।

हानिकारक प्रभाव

कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है। जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें भी पकी इमली से दान्तों का खट्टा होना, सिर और जबडे़ में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।

विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
भाषा नाम
हिन्दी इमली।
अंग्रेज़ी Tamarind।
मराठी चिंच।
गुजराती आंबली।
बंगाली तेतुला।
फारसी तिमिर।
अरबी तमर।


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