"कांशी राम": अवतरणों में अंतर

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'''कांशी राम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kanshi Ram'', जन्म: 15 मार्च 1934 - मृत्यु: 9 अक्टूबर 2006) [[बहुजन समाज पार्टी]] के संस्थापक और दलित राजनीति के सबसे बडे नेता थे।  दलितों के उत्थान छटपटाहट और उनके हाथ में सत्ता होने का सपना देखने वाले कांशीराम ने ही [[मायावती]] की क्षमता को पहचाना और उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया। 
[[लोकसभा]] सांसद कांशी राम दसवीं और ग्यारहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये।
==जीवन परिचय==
==जन्म==
कांशीराम का जन्म [[15 मार्च]] सन [[1934]] को [[पंजाब]] के [[रूपनगर ज़िला|रोपड़ ज़िले]] में हुआ था। कांशीराम के पिता का नाम एस. हरि सिंह था। स्वभाव से सरल और इरादे के पक्के कांशीराम की कर्मयात्रा 60 के दशक से प्रारंभ हुई और 70 के दशक के शुरूआती दिनों में उन्होंने [[पुणे]] में रक्षा विभाग की नौकरी छोड़ दी। ऐसा उन्होंने [[भीमराव अम्बेडकर|बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर]] का जन्म दिन समारोह बनाने संबन्धी विवाद के चलते किया था, इसके बाद वह [[महाराष्ट्र]] में दलितों की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे।
[[15 मार्च]] [[1934]]
====बसपा की स्थापना====
==अभिभावक==
वर्ष 1978 में कांशीराम ने बामसेफ (All India Backward and Minority Communities Employees' Federation) का गठन किया। बामसेफ के माध्यम से सरकारी नौकरी करने वाले दलित शोषित समाज के लोगों से एक निश्चित धनराशि लेकर समाज के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष 1981 में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समाज समिति की स्थापना की। डीएसफोर के माध्यम से उन्होंने दलितों को संगठित किया और 1984 में बसपा ([[बहुजन समाज पार्टी]]) का गठन किया। उन्होंने बाबा साहब के इस सिद्धांत को माना कि सत्ता ही सभी चाबियों की चाबी है।<ref name="One"/>
पिता- श्री एस हरि सिंह
==राजनीतिक जीवन==
==शिक्षा==
कांशी राम चुनाव लडऩे से कभी पीछे नहीं हटे। उनका मानना था कि चुनाव लडने से पार्टी मजबूत होती है, उसकी दशा सुधरती है तथा जनाधार बढ़ता है। उन्होंने [[इलाहाबाद]] संसदीय सीट से 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री [[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] के विरुद्ध चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके ऊपर वी पी सिंह से रुपये लेकर लड़ने का आरोप लगाया गया। कांशीराम किसी आरोप से विचलित नहीं होते थे। अपने संगठन के द्वारा जो भी धन उनके पास आता था उसमें से उन्होंने कभी भी एक रुपया अपने परिवार वालों को नहीं दिया और न अपने किसी निजी कार्य में खर्च किया। इलाहाबाद के चुनाव में
विज्ञान स्नातक
कांशीराम ने 80 हज़ार वोट हासिल किये। वर्ष 1993 में पहली बार [[इटावा]] संसदीय सीट से चुनाव जीतकर [[लोकसभा]] में पहुंचे, उस समय [[समाजवादी पार्टी]] ने बसपा का साथ दिया था। यहीं से बसपा और सपा की दोस्ती शुरू हुई। वर्ष 1993 में दोनों पार्टियों की गठबंधन की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी और [[मुलायम सिंह यादव]] मुख्‍यमंत्री बने परन्तु वर्ष 1995 में बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। [[मायावती]] को सत्तासीन करने के लिए कांशीराम ने [[भारतीय जनता पार्टी]] के सहयोग से राज्य में पहली बार सरकार बनाई, मायावती मुख्‍यमंत्री बनीं।<ref name="One">{{cite web |url=http://hindi.oneindia.in/news/2012/03/15/india-kansiram-bsp-birth-anniversary-mayawati-aid0146.html |title=मायावती की क्षमता को कांशीराम ने ही पहचाना |accessmonthday=5 अक्टूबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वन इंडिया हिन्दी |language=हिन्दी  }}</ref>
==चुनाव क्षेत्र==
 
[[होशियारपुर]], [[पंजाब]]  
==राजनीतिक दर्शन==
==पार्टी==
कांशीराम ने पार्टी और दलितों के हित के लिये समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व [[कांग्रेस]] सभी का साथ दिया और सहयोगी बने, उन्होंने हमेशा सभी का फायदा उठाया। उनका कहना था कि राजनीति में आगे बढने के लिए यह सब जायज है। कांशीराम ने 1995 में समाजवादी पार्टी को झटका देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने में कोई भी परहेज नहीं किया और [[अटल बिहारी वाजपेयी]] के नेतृत्व वाली भाजपा की केन्द्र में जब सरकार गिर रही थी तब सरकार के खिलाफ मतदान किया। कांशीराम का राजनीतिक दर्शन था कि अगर सर्वजन की सेवा करनी है तो हर हाल में सत्ता के करीब ही रहना है। सत्ता में होने वाली प्रत्येक उथल पुथल में भागीदारी बनानी है। बसपा आज भी उनके राजनीतिक दर्शन के साथ है। वह [[मुख्‍यमंत्री]] बनवाते रहे और राजनीतिक दलों को समर्थन देते रहे। केन्द्र सरकार को समर्थन देते रहे लेकिन कभी भी खुद को पद पाने की महत्वाकांक्षा उन्होंने प्रदर्शित नहीं की।<ref name="One"/>
[[बहुजन समाज पार्टी]]  
 
==सदस्यता==
*राज्य सभा, [[जुलाई]] [[1998]];





11:04, 5 अक्टूबर 2012 का अवतरण

कांशी राम (अंग्रेज़ी: Kanshi Ram, जन्म: 15 मार्च 1934 - मृत्यु: 9 अक्टूबर 2006) बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और दलित राजनीति के सबसे बडे नेता थे। दलितों के उत्थान छटपटाहट और उनके हाथ में सत्ता होने का सपना देखने वाले कांशीराम ने ही मायावती की क्षमता को पहचाना और उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया।

जीवन परिचय

कांशीराम का जन्म 15 मार्च सन 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले में हुआ था। कांशीराम के पिता का नाम एस. हरि सिंह था। स्वभाव से सरल और इरादे के पक्के कांशीराम की कर्मयात्रा 60 के दशक से प्रारंभ हुई और 70 के दशक के शुरूआती दिनों में उन्होंने पुणे में रक्षा विभाग की नौकरी छोड़ दी। ऐसा उन्होंने बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म दिन समारोह बनाने संबन्धी विवाद के चलते किया था, इसके बाद वह महाराष्ट्र में दलितों की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे।

बसपा की स्थापना

वर्ष 1978 में कांशीराम ने बामसेफ (All India Backward and Minority Communities Employees' Federation) का गठन किया। बामसेफ के माध्यम से सरकारी नौकरी करने वाले दलित शोषित समाज के लोगों से एक निश्चित धनराशि लेकर समाज के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष 1981 में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समाज समिति की स्थापना की। डीएसफोर के माध्यम से उन्होंने दलितों को संगठित किया और 1984 में बसपा (बहुजन समाज पार्टी) का गठन किया। उन्होंने बाबा साहब के इस सिद्धांत को माना कि सत्ता ही सभी चाबियों की चाबी है।[1]

राजनीतिक जीवन

कांशी राम चुनाव लडऩे से कभी पीछे नहीं हटे। उनका मानना था कि चुनाव लडने से पार्टी मजबूत होती है, उसकी दशा सुधरती है तथा जनाधार बढ़ता है। उन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के विरुद्ध चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके ऊपर वी पी सिंह से रुपये लेकर लड़ने का आरोप लगाया गया। कांशीराम किसी आरोप से विचलित नहीं होते थे। अपने संगठन के द्वारा जो भी धन उनके पास आता था उसमें से उन्होंने कभी भी एक रुपया अपने परिवार वालों को नहीं दिया और न अपने किसी निजी कार्य में खर्च किया। इलाहाबाद के चुनाव में कांशीराम ने 80 हज़ार वोट हासिल किये। वर्ष 1993 में पहली बार इटावा संसदीय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे, उस समय समाजवादी पार्टी ने बसपा का साथ दिया था। यहीं से बसपा और सपा की दोस्ती शुरू हुई। वर्ष 1993 में दोनों पार्टियों की गठबंधन की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी और मुलायम सिंह यादव मुख्‍यमंत्री बने परन्तु वर्ष 1995 में बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। मायावती को सत्तासीन करने के लिए कांशीराम ने भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से राज्य में पहली बार सरकार बनाई, मायावती मुख्‍यमंत्री बनीं।[1]

राजनीतिक दर्शन

कांशीराम ने पार्टी और दलितों के हित के लिये समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस सभी का साथ दिया और सहयोगी बने, उन्होंने हमेशा सभी का फायदा उठाया। उनका कहना था कि राजनीति में आगे बढने के लिए यह सब जायज है। कांशीराम ने 1995 में समाजवादी पार्टी को झटका देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने में कोई भी परहेज नहीं किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा की केन्द्र में जब सरकार गिर रही थी तब सरकार के खिलाफ मतदान किया। कांशीराम का राजनीतिक दर्शन था कि अगर सर्वजन की सेवा करनी है तो हर हाल में सत्ता के करीब ही रहना है। सत्ता में होने वाली प्रत्येक उथल पुथल में भागीदारी बनानी है। बसपा आज भी उनके राजनीतिक दर्शन के साथ है। वह मुख्‍यमंत्री बनवाते रहे और राजनीतिक दलों को समर्थन देते रहे। केन्द्र सरकार को समर्थन देते रहे लेकिन कभी भी खुद को पद पाने की महत्वाकांक्षा उन्होंने प्रदर्शित नहीं की।[1]


संबंधित लेख


  1. 1.0 1.1 1.2 मायावती की क्षमता को कांशीराम ने ही पहचाना (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वन इंडिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 5 अक्टूबर, 2012।