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[[चित्र:Prarthana1.jpg|[[हरदोई]] के [[गांधी भवन]] परिसर में प्रार्थना|left|thumb]] {{दाँयाबक्सा|पाठ=गिरजों में घुसते ही बाहर की अशान्ति भूल जाती | [[चित्र:Prarthana1.jpg|[[हरदोई]] के [[गांधी भवन]] परिसर में प्रार्थना|left|thumb]] {{दाँयाबक्सा|पाठ=गिरजों में घुसते ही बाहर की अशान्ति भूल जाती है। लोगों का व्यवहार बदल जाता है। लोग अदब से पेश आते हैं। वहाँ कोलाहल नहीं होता। कुमारी मरियम की मूर्ति के सम्मुख कोई न कोई प्रार्थना करता ही रहता है। यह सब वहम नहीं है, बल्कि हृदय की भावना है, ऐसा प्रभाव मुझ पर पड़ा था और बढ़ता ही गया है। कुमारिका की मूर्ति के सम्मुख घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करने वाले उपासक संगमरमर के पत्थर को नहीं पूजते थे, बल्कि उसमें मानी हुई अपनी कल्पित शक्ति को पूजते थे। ऐसा करके वे ईश्वर की महिमा को घटाते नही बल्कि बढ़ाते थे।<ref>महात्मा गांधी जीवनी सत्य के प्रयोग से संग्रहित </ref>|विचारक=[[महात्मा गाँधी]]}} | ||
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11:38, 27 जनवरी 2013 का अवतरण
प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है जो ब्रह्माण्ड के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों (मंत्र, गीत आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।
- एल. क्राफार्ड ने कहा था- ‘‘प्रार्थना परिष्कार एवं परिमार्जन की उत्तम प्रक्रिया है।’’
प्रार्थना संकलन
गिरजों में घुसते ही बाहर की अशान्ति भूल जाती है। लोगों का व्यवहार बदल जाता है। लोग अदब से पेश आते हैं। वहाँ कोलाहल नहीं होता। कुमारी मरियम की मूर्ति के सम्मुख कोई न कोई प्रार्थना करता ही रहता है। यह सब वहम नहीं है, बल्कि हृदय की भावना है, ऐसा प्रभाव मुझ पर पड़ा था और बढ़ता ही गया है। कुमारिका की मूर्ति के सम्मुख घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करने वाले उपासक संगमरमर के पत्थर को नहीं पूजते थे, बल्कि उसमें मानी हुई अपनी कल्पित शक्ति को पूजते थे। ऐसा करके वे ईश्वर की महिमा को घटाते नही बल्कि बढ़ाते थे।[1]
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- सरस्वती प्रार्थना
- नमाज़
- नित्यप्रार्थना
- अग्नि को समर्पित प्रार्थना
- क्षमा-प्रार्थना का दिन
- यीशु की प्रार्थना का दिन
- वृक्षों का प्रार्थना गीत
- उदयमान सूर्य की प्रार्थना उपासना
- विष्णु भगवान की पूजा के गीत
मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे दोनों हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना पीना, चलना बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना निरा वाणी विलास नहीं होती उसका मूल कंठ नहीं हृदय है।[2]---महात्मा गाँधी |
प्रार्थना निवेदन करके उर्जा प्राप्त करने की शक्ति है और अपने इष्ट अथवा विद्या के प्रधान देव से सीधा संवाद है। प्रार्थना लौकिक व अलौकिक समस्या का समाधान है।[3]---आदि शक्ति |
मुझे इस विषय में कोई शंका नहीं है कि विकार रूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है।[4]---महात्मा गाँधी |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- प्रार्थना का मष्तिष्क पर प्रभाव
- प्रातः प्रार्थना का वैज्ञानिक महत्व
- यजुर्वेद में औषधीय वनस्पति की प्रार्थना
- PBS Documentary on Prayer in America
- Scientific study of effect of prayer on recovery of patients
- संघ की प्रार्थना
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