"वी. वी. गिरि": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:V.V.Giri.jpg|thumb|वाराहगिरि वेंकट गिरि]] | [[चित्र:V.V.Giri.jpg|thumb|वाराहगिरि वेंकट गिरि]] | ||
'''वाराहगिरि वेंकट गिरि''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Varahagiri Venkata Giri'' जन्म: 10 अगस्त 1894 – मृत्यु: 23 जून 1980) [[भारत]] के चौथे राष्ट्रपति थे। | '''वाराहगिरि वेंकट गिरि''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Varahagiri Venkata Giri'' जन्म: 10 अगस्त 1894 – मृत्यु: 23 जून 1980) [[भारत]] के चौथे राष्ट्रपति थे। [[भारत रत्न]] से सम्मानित वी. वी. गिरि भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति (कार्यकाल- 3 मई 1969 – 20 जुलाई 1969) के अतिरिक्त [[उपराष्ट्रपति]] (कार्यकाल- 13 मई 1967 – 3 मई 1969) [[उत्तर प्रदेश]] (कार्यकाल- 10 जून 1956 – 30 जून 1960), [[केरल]] (कार्यकाल- 1 जुलाई 1960 – 2 अप्रैल 1965) और [[कर्नाटक]] (कार्यकाल- 2 अप्रैल 1965 – 13 मई 1967) के [[राज्यपाल]] भी रहे। | ||
==जीवन परिचय== | |||
वी. वी. गिरी के नाम से विख्यात भारत के चौथे राष्ट्रपति वाराहगिरि वेंकट गिरी का जन्म [[10 अगस्त]], [[1894]] को बेहरामपुर, [[ओड़िशा]] में हुआ था। इनका संबंध एक [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]] भाषी ब्राह्मण [[परिवार]] से था। वी. वी. गिरी के पिता वी.वी. जोगिआह पंतुलु, बेहरामपुर के एक लोकप्रिय वकील और स्थानीय बार काउंसिल के नेता भी थे। वी. वी. गिरी की प्रारंभिक शिक्षा इनके गृहनगर बेहरामपुर में ही संपन्न हुई। इसके बाद यह डब्लिन यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई करने के लिए आयरलैंड चले गए। वहां वह डी वलेरा जैसे प्रसिद्ध ब्रिटिश विद्रोही के संपर्क में आने और उनसे प्रभावित होने के बाद आयरलैंड की स्वतंत्रता के लिए चल रहे सिन फीन आंदोलन से जुड़ गए। परिणामस्वरूप आयरलैंड से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के समय सन 1916 में वी.वी. गिरी वापस भारत लौट आए। भारत लौटने के तुरंत बाद वह श्रमिक आंदोलन से जुड़ गए। इतना ही नहीं रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से उन्होंने बंगाल-नागपुर रेलवे एसोसिएशन की भी स्थापना की।<ref name="जागरण जंक्शन">{{cite web |url=http://politics.jagranjunction.com/2011/08/09/former-president-v-v-giri-profile/ |title=वराहगिरी वेंकटगिरी |accessmonthday=7 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण जंक्शन |language= हिंदी}}</ref> | |||
==राजनीतिक परिचय== | |||
सन 1916 में भारत लौटने के बाद वह श्रमिक और मजदूरों के चल रहे आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। हालांकि उनका राजनैतिक सफ़र आयरलैंड में पढ़ाई के दौरान ही शुरू हो गया था। लेकिन [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] का हिस्सा बन वह पूर्ण रूप से स्वतंत्रता के लिए सक्रिय हो गए थे। वी.वी. गिरी अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ और अखिल भारतीय व्यापार संघ ([[कांग्रेस]]) के अध्यक्ष भी रहे। सन 1934 में वह इम्पीरियल विधानसभा के भी सदस्य नियुक्त हुए। सन [[1937]] में मद्रास आम चुनावों में वी.वी. गिरी को कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में बोबली में स्थानीय राजा के विरुद्ध उतारा गया, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई। सन 1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस पार्टी के लिए बनाए गए श्रम एवं उद्योग मंत्रालय में मंत्री नियुक्त किए गए। सन [[1942]] में जब कांग्रेस ने इस मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया, तो वी. वी. गिरी भी वापस श्रमिकों के लिए चल रहे आंदोलनों में लौट आए। अंग्रेज़ों के खिलाफ चल रहे [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए, अंग्रेजों द्वारा इन्हें जेल भेज दिया गया। [[1947]] में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद वह सिलोन में [[भारत]] के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए। सन [[1952]] में वह पाठापटनम सीट से [[लोकसभा]] का चुनाव जीत [[संसद]] पहुंचे। सन [[1954]] तक वह श्रम मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं देते रहे वी.वी. गिरी [[उत्तर प्रदेश]], [[केरल]], [[मैसूर]] में राज्यपाल भी नियुक्त किए गए। वी. वी. गिरी सन 1967 में [[ज़ाकिर हुसैन]] के काल में भारत के उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। इसके अलावा जब ज़ाकिर हुसैन के निधन के समय भारत के राष्ट्रपति का पद खाली रह गया था, तो वराहगिरी वेंकटगिरी को कार्यवाहक राष्ट्रपति का स्थान दिया गया। सन [[1969]] में जब राष्ट्रपति के चुनाव आए तो इन्दिरा गांधी के समर्थन से वी.वी. गिरी देश के चौथे राष्ट्रपति बनाए गए।<ref name="जागरण जंक्शन"/> | |||
==राष्ट्रपति पद== | |||
[[24 अगस्त]] [[1969]] को भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में प्रात: नौ बजे पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रसिद्ध इतिहासकार और पत्रकार [[खुशवंत सिंह|डॉ. खुशवंत सिंह]] ने इन्हें तब तक के सारे राष्ट्रपतियों में सर्वाधिक दुर्बल राष्ट्रपति कहकर उल्लेखित किया है। लेकिन यहां राष्ट्रपतियों की तुलना करना उचित नहीं होगा। इतना अवश्य था कि कांग्रेस भी अंतर्कलह के कारण गिरि की निष्ठा प्रधानमंत्री [[इंदिरा गांधी]] के प्रति थी और वही उन्होंने बनाये भी रखी। उन्होंने अपने पहले संबोधन में इंदिरा गांधी को अपनी पुत्री के रूप में संबोधित किया था। जिस पर कई लोगों ने आपत्ति और आश्चर्य व्यक्त किया था। लेकिन वी.वी. गिरि ने यह भली-भांति स्पष्ट कर दिया था कि संवैधानिक परंपराएं अलग हैं और उनका निर्वाह करना भी एक अलग पक्ष है। जबकि व्यक्तिगत संबंध और मर्यादाएं एक अलग चीज है। इंदिरा गांधी ने वी. वी. गिरि के निर्वाचन के लिए तब कांग्रेसियों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने के लिए कहा था। वी.वी गिरि को 50.2 प्रतिशत वोट मिले थे और लगभग नगण्य अंतर से ही वह जीत पाये थे। उनके विरूद्ध [[नीलम संजीव रेड्डी|नीलम संजीवा रेड्डी]] चुनाव मैदान में थे। यदि रेड्डी जीते गये होते तो इंदिरा गांधी और वी.वी. गिरि की तकदीर की तस्वीर ही दूसरी हो सकती थी। इसलिए वस्तुस्थिति को समझकर गिरि इंदिरा गांधी के प्रति आभारी रहे तो इसमें गलत तो कुछ हो सकता है पर निंदनीय नहीं। 24 अगस्त [[1974]] को इन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ा। उसी दिन डाक विभाग ने इनके सम्मान में एक 25 पैसे का नया [[डाक टिकट]] जारी किया। वे एक विदेशी शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता, सफल छात्र नेता, एक अतुलनीय श्रमिक नेता, निर्भीक स्वतंत्रता सैनानी, एक जेल यात्री, एक प्रमुख वक्ता, एक त्यागी पुरूष जिन्होंने केन्द्रीय मंत्री पद को त्याग दिया था, अपने सिद्घांतों पर अडिग रहने वाले नैष्ठिक पुरूष थे।<ref>{{cite web |url=http://hindi.in.com/latest-news/news/Ours-Authors-How-India-Gets-Its-All-Presidents-1428082.html |title=वाराहगिरि वेंकट गिरि |accessmonthday=7 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदी इन डॉट कॉम |language=हिंदी }} </ref> | |||
==सम्मान और पुरस्कार== | |||
वराहगिरी वेंकटगिरी को श्रमिकों के उत्थान और देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘[[भारत रत्न]]’ से नवाजा गया। | |||
==निधन== | |||
85 वर्ष की आयु में वाराहगिरि वेंकट गिरी का [[23 जून]], [[1980]] को [[मद्रास]] में निधन हो गया। वी. वी. गिरी एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। उनमें लेखन क्षमता भी बहुत अधिक और उच्च कोटि की थी। वी.वी. गिरी ने औद्योगिक संबंध और भारतीय उद्योगों में श्रमिकों की समस्याएं जैसी किताबें भी लिखी थीं। | |||
{{शासन क्रम |शीर्षक=[[भारत के राष्ट्रपति]] |पूर्वाधिकारी=[[ज़ाकिर हुसैन]] |उत्तराधिकारी=[[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]]}} | {{शासन क्रम |शीर्षक=[[भारत के राष्ट्रपति]] |पूर्वाधिकारी=[[ज़ाकिर हुसैन]] |उत्तराधिकारी=[[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]]}} | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 19: | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= |
13:56, 7 फ़रवरी 2013 का अवतरण
वाराहगिरि वेंकट गिरि (अंग्रेज़ी: Varahagiri Venkata Giri जन्म: 10 अगस्त 1894 – मृत्यु: 23 जून 1980) भारत के चौथे राष्ट्रपति थे। भारत रत्न से सम्मानित वी. वी. गिरि भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति (कार्यकाल- 3 मई 1969 – 20 जुलाई 1969) के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति (कार्यकाल- 13 मई 1967 – 3 मई 1969) उत्तर प्रदेश (कार्यकाल- 10 जून 1956 – 30 जून 1960), केरल (कार्यकाल- 1 जुलाई 1960 – 2 अप्रैल 1965) और कर्नाटक (कार्यकाल- 2 अप्रैल 1965 – 13 मई 1967) के राज्यपाल भी रहे।
जीवन परिचय
वी. वी. गिरी के नाम से विख्यात भारत के चौथे राष्ट्रपति वाराहगिरि वेंकट गिरी का जन्म 10 अगस्त, 1894 को बेहरामपुर, ओड़िशा में हुआ था। इनका संबंध एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार से था। वी. वी. गिरी के पिता वी.वी. जोगिआह पंतुलु, बेहरामपुर के एक लोकप्रिय वकील और स्थानीय बार काउंसिल के नेता भी थे। वी. वी. गिरी की प्रारंभिक शिक्षा इनके गृहनगर बेहरामपुर में ही संपन्न हुई। इसके बाद यह डब्लिन यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई करने के लिए आयरलैंड चले गए। वहां वह डी वलेरा जैसे प्रसिद्ध ब्रिटिश विद्रोही के संपर्क में आने और उनसे प्रभावित होने के बाद आयरलैंड की स्वतंत्रता के लिए चल रहे सिन फीन आंदोलन से जुड़ गए। परिणामस्वरूप आयरलैंड से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के समय सन 1916 में वी.वी. गिरी वापस भारत लौट आए। भारत लौटने के तुरंत बाद वह श्रमिक आंदोलन से जुड़ गए। इतना ही नहीं रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से उन्होंने बंगाल-नागपुर रेलवे एसोसिएशन की भी स्थापना की।[1]
राजनीतिक परिचय
सन 1916 में भारत लौटने के बाद वह श्रमिक और मजदूरों के चल रहे आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। हालांकि उनका राजनैतिक सफ़र आयरलैंड में पढ़ाई के दौरान ही शुरू हो गया था। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन वह पूर्ण रूप से स्वतंत्रता के लिए सक्रिय हो गए थे। वी.वी. गिरी अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ और अखिल भारतीय व्यापार संघ (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी रहे। सन 1934 में वह इम्पीरियल विधानसभा के भी सदस्य नियुक्त हुए। सन 1937 में मद्रास आम चुनावों में वी.वी. गिरी को कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में बोबली में स्थानीय राजा के विरुद्ध उतारा गया, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई। सन 1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस पार्टी के लिए बनाए गए श्रम एवं उद्योग मंत्रालय में मंत्री नियुक्त किए गए। सन 1942 में जब कांग्रेस ने इस मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया, तो वी. वी. गिरी भी वापस श्रमिकों के लिए चल रहे आंदोलनों में लौट आए। अंग्रेज़ों के खिलाफ चल रहे भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए, अंग्रेजों द्वारा इन्हें जेल भेज दिया गया। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद वह सिलोन में भारत के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए। सन 1952 में वह पाठापटनम सीट से लोकसभा का चुनाव जीत संसद पहुंचे। सन 1954 तक वह श्रम मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं देते रहे वी.वी. गिरी उत्तर प्रदेश, केरल, मैसूर में राज्यपाल भी नियुक्त किए गए। वी. वी. गिरी सन 1967 में ज़ाकिर हुसैन के काल में भारत के उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। इसके अलावा जब ज़ाकिर हुसैन के निधन के समय भारत के राष्ट्रपति का पद खाली रह गया था, तो वराहगिरी वेंकटगिरी को कार्यवाहक राष्ट्रपति का स्थान दिया गया। सन 1969 में जब राष्ट्रपति के चुनाव आए तो इन्दिरा गांधी के समर्थन से वी.वी. गिरी देश के चौथे राष्ट्रपति बनाए गए।[1]
राष्ट्रपति पद
24 अगस्त 1969 को भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में प्रात: नौ बजे पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रसिद्ध इतिहासकार और पत्रकार डॉ. खुशवंत सिंह ने इन्हें तब तक के सारे राष्ट्रपतियों में सर्वाधिक दुर्बल राष्ट्रपति कहकर उल्लेखित किया है। लेकिन यहां राष्ट्रपतियों की तुलना करना उचित नहीं होगा। इतना अवश्य था कि कांग्रेस भी अंतर्कलह के कारण गिरि की निष्ठा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रति थी और वही उन्होंने बनाये भी रखी। उन्होंने अपने पहले संबोधन में इंदिरा गांधी को अपनी पुत्री के रूप में संबोधित किया था। जिस पर कई लोगों ने आपत्ति और आश्चर्य व्यक्त किया था। लेकिन वी.वी. गिरि ने यह भली-भांति स्पष्ट कर दिया था कि संवैधानिक परंपराएं अलग हैं और उनका निर्वाह करना भी एक अलग पक्ष है। जबकि व्यक्तिगत संबंध और मर्यादाएं एक अलग चीज है। इंदिरा गांधी ने वी. वी. गिरि के निर्वाचन के लिए तब कांग्रेसियों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने के लिए कहा था। वी.वी गिरि को 50.2 प्रतिशत वोट मिले थे और लगभग नगण्य अंतर से ही वह जीत पाये थे। उनके विरूद्ध नीलम संजीवा रेड्डी चुनाव मैदान में थे। यदि रेड्डी जीते गये होते तो इंदिरा गांधी और वी.वी. गिरि की तकदीर की तस्वीर ही दूसरी हो सकती थी। इसलिए वस्तुस्थिति को समझकर गिरि इंदिरा गांधी के प्रति आभारी रहे तो इसमें गलत तो कुछ हो सकता है पर निंदनीय नहीं। 24 अगस्त 1974 को इन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ा। उसी दिन डाक विभाग ने इनके सम्मान में एक 25 पैसे का नया डाक टिकट जारी किया। वे एक विदेशी शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता, सफल छात्र नेता, एक अतुलनीय श्रमिक नेता, निर्भीक स्वतंत्रता सैनानी, एक जेल यात्री, एक प्रमुख वक्ता, एक त्यागी पुरूष जिन्होंने केन्द्रीय मंत्री पद को त्याग दिया था, अपने सिद्घांतों पर अडिग रहने वाले नैष्ठिक पुरूष थे।[2]
सम्मान और पुरस्कार
वराहगिरी वेंकटगिरी को श्रमिकों के उत्थान और देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।
निधन
85 वर्ष की आयु में वाराहगिरि वेंकट गिरी का 23 जून, 1980 को मद्रास में निधन हो गया। वी. वी. गिरी एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। उनमें लेखन क्षमता भी बहुत अधिक और उच्च कोटि की थी। वी.वी. गिरी ने औद्योगिक संबंध और भारतीय उद्योगों में श्रमिकों की समस्याएं जैसी किताबें भी लिखी थीं।
|
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 वराहगिरी वेंकटगिरी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2013।
- ↑ वाराहगिरि वेंकट गिरि (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) हिंदी इन डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2013।