"पूर्णिमा": अवतरणों में अंतर
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'''पूर्णिमा''' अथवा 'पौर्णमासी' शब्द यों बना है– 'पूर्णों माः' ('मास' का अर्थ है-चन्द्र) '''पूर्णमाः, तत्र भवा पौर्णमासी (तिथिः) या 'पूर्णो मासों वर्तते अस्यामिति पौर्णमासी'''। हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि (व्रत. 2, 160)</ref> में आया है– '''पूर्णमासो भवेद् यस्यां पूर्णमासी ततः स्मृता'''<ref>धर्मशास्त्र का इतिहास/ भाग तीन- अध्याय 3</ref>। क्षीरस्वामी ने 'पूर्णिमा' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार से की है–'''पूरणं पूर्णिः, पूर्णिं मिमीते पूर्णिमा'''<ref>हेमाद्रि (काल. 311), [[मत्स्य पुराण]] से उद्धरण</ref>। जब चन्द्र एवं बृहस्पति एक ही नक्षत्र में हों और तब पूर्णिमा हो तो उस पूर्णिमा या पौर्णमासी को '''महा''' कहा जाता है; ऐसी पौर्णमासी पर दान एवं उपवास 'अक्षय' फलदायक होता है<ref>विष्णुधर्म सूत्र 49|9-10</ref>; <ref>कृत्यरत्नाकर, पृ. 430-431</ref>, <ref>नैयतकालिक काण्ड, 373</ref>; <ref>कालविवेक (346-347)</ref>; <ref>हेमाद्रि (काल. 640)</ref>; <ref>वर्षक्रियाकौमुदी (77) एवं विष्णुधर्मोत्तरपुराण 1|60|21।</ref> ऐसी पौर्णमासी को 'महाचैत्री', 'महाकार्तिकी', 'महा पौषी' आदि कहा जाता है। [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] से [[चंद्र ग्रह|चन्द्र]] का अन्तर जब 169° से 180° तक होता है, तब [[शुक्ल पक्ष]] की पूर्णिमा रहती है। पूर्णिमा के स्वामी स्वयं [[चंद्र देवता|चन्द्र देव]] हैं। पूर्णिमान्त काल में सूर्य एवं चन्द्र एकदम आमने-सामने (समसप्तक) होते हैं। इसका विशेष नाम ‘सौम्या’ है। यह पूर्णा तिथि है। इसे '[[राका]]' तथा 'अनुमिति' भी कहते हैं। इसी तिथि को शुक्ल पक्ष का अन्त होता है। पूर्णिमा तिथि की दिशा वायव्य है। करणीय कृत्य - | ।'''पूर्णिमा''' अथवा 'पौर्णमासी' शब्द यों बना है– 'पूर्णों माः' ('मास' का अर्थ है-चन्द्र) '''पूर्णमाः, तत्र भवा पौर्णमासी (तिथिः) या 'पूर्णो मासों वर्तते अस्यामिति पौर्णमासी'''। हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि (व्रत. 2, 160)</ref> में आया है– '''पूर्णमासो भवेद् यस्यां पूर्णमासी ततः स्मृता'''<ref>धर्मशास्त्र का इतिहास/ भाग तीन- अध्याय 3</ref>। क्षीरस्वामी ने 'पूर्णिमा' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार से की है–'''पूरणं पूर्णिः, पूर्णिं मिमीते पूर्णिमा'''<ref>हेमाद्रि (काल. 311), [[मत्स्य पुराण]] से उद्धरण</ref>। जब चन्द्र एवं बृहस्पति एक ही नक्षत्र में हों और तब पूर्णिमा हो तो उस पूर्णिमा या पौर्णमासी को '''महा''' कहा जाता है; ऐसी पौर्णमासी पर दान एवं उपवास 'अक्षय' फलदायक होता है<ref>विष्णुधर्म सूत्र 49|9-10</ref>; <ref>कृत्यरत्नाकर, पृ. 430-431</ref>, <ref>नैयतकालिक काण्ड, 373</ref>; <ref>कालविवेक (346-347)</ref>; <ref>हेमाद्रि (काल. 640)</ref>; <ref>वर्षक्रियाकौमुदी (77) एवं विष्णुधर्मोत्तरपुराण 1|60|21।</ref> ऐसी पौर्णमासी को 'महाचैत्री', 'महाकार्तिकी', 'महा पौषी' आदि कहा जाता है। [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] से [[चंद्र ग्रह|चन्द्र]] का अन्तर जब 169° से 180° तक होता है, तब [[शुक्ल पक्ष]] की पूर्णिमा रहती है। पूर्णिमा के स्वामी स्वयं [[चंद्र देवता|चन्द्र देव]] हैं। पूर्णिमान्त काल में सूर्य एवं चन्द्र एकदम आमने-सामने (समसप्तक) होते हैं। इसका विशेष नाम ‘सौम्या’ है। यह पूर्णा तिथि है। इसे '[[राका]]' तथा 'अनुमिति' भी कहते हैं। इसी तिथि को शुक्ल पक्ष का अन्त होता है। पूर्णिमा तिथि की दिशा वायव्य है। करणीय कृत्य - | ||
<blockquote><poem>यज्ञक्रियापौष्टिकमंगलानि संग्रामयोग्याखिलवास्तुकर्म। | <blockquote><poem>यज्ञक्रियापौष्टिकमंगलानि संग्रामयोग्याखिलवास्तुकर्म। | ||
उद्वाहशिल्पाखिलभूषणाद्यं कार्यं प्रतिष्ठा खलु पौर्णमास्याम्।।</poem></blockquote> | उद्वाहशिल्पाखिलभूषणाद्यं कार्यं प्रतिष्ठा खलु पौर्णमास्याम्।।</poem></blockquote> | ||
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#[[ज्येष्ठ]] की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है। | #[[ज्येष्ठ]] की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है। | ||
#[[आषाढ़]] मास की पूर्णिमा को [[गुरु पूर्णिमा]] कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इस दिन [[कबीर जयंती]] मनायी जाती है। | #[[आषाढ़]] मास की पूर्णिमा को [[गुरु पूर्णिमा]] कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इस दिन [[कबीर |कबीर जयंती]] मनायी जाती है। | ||
#[[श्रावण]] की पूर्णिमा के दिन [[रक्षाबंधन]] का पर्व मनाया जाता है। | #[[श्रावण]] की पूर्णिमा के दिन [[रक्षाबंधन]] का पर्व मनाया जाता है। | ||
#[[भाद्रपद]] की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है। | #[[भाद्रपद]] की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है। |
10:07, 13 मार्च 2013 का अवतरण
।पूर्णिमा अथवा 'पौर्णमासी' शब्द यों बना है– 'पूर्णों माः' ('मास' का अर्थ है-चन्द्र) पूर्णमाः, तत्र भवा पौर्णमासी (तिथिः) या 'पूर्णो मासों वर्तते अस्यामिति पौर्णमासी। हेमाद्रि[1] में आया है– पूर्णमासो भवेद् यस्यां पूर्णमासी ततः स्मृता[2]। क्षीरस्वामी ने 'पूर्णिमा' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार से की है–पूरणं पूर्णिः, पूर्णिं मिमीते पूर्णिमा[3]। जब चन्द्र एवं बृहस्पति एक ही नक्षत्र में हों और तब पूर्णिमा हो तो उस पूर्णिमा या पौर्णमासी को महा कहा जाता है; ऐसी पौर्णमासी पर दान एवं उपवास 'अक्षय' फलदायक होता है[4]; [5], [6]; [7]; [8]; [9] ऐसी पौर्णमासी को 'महाचैत्री', 'महाकार्तिकी', 'महा पौषी' आदि कहा जाता है। सूर्य से चन्द्र का अन्तर जब 169° से 180° तक होता है, तब शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा रहती है। पूर्णिमा के स्वामी स्वयं चन्द्र देव हैं। पूर्णिमान्त काल में सूर्य एवं चन्द्र एकदम आमने-सामने (समसप्तक) होते हैं। इसका विशेष नाम ‘सौम्या’ है। यह पूर्णा तिथि है। इसे 'राका' तथा 'अनुमिति' भी कहते हैं। इसी तिथि को शुक्ल पक्ष का अन्त होता है। पूर्णिमा तिथि की दिशा वायव्य है। करणीय कृत्य -
यज्ञक्रियापौष्टिकमंगलानि संग्रामयोग्याखिलवास्तुकर्म।
उद्वाहशिल्पाखिलभूषणाद्यं कार्यं प्रतिष्ठा खलु पौर्णमास्याम्।।
पूर्णिमा व्रत
यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।
प्रत्येक मास की पूर्णिमा
हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता हैं। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्त्व हैं।
- चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयन्ती मनायी जाती है।
- वैशाख की पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा मनायी जाती है।
- ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है।
- आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इस दिन कबीर जयंती मनायी जाती है।
- श्रावण की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।
- भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है।
- अश्विन की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
- कार्तिक की पूर्णिमा के दिन पुष्कर मेला और गुरु नानक जयंती पर्व मनाए जाते हैं।
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
- पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले 'पुष्यभिषेक यात्रा' प्रारंभ करते हैं। बनारस में 'दशाश्वमेध' तथा प्रयाग में 'त्रिवेणी संगम' पर स्नान को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित जयंती और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्त्व है।
- फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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