"मोढेरा": अवतरणों में अंतर
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'मोढेरा सूर्य मन्दिर' [[गुजरात]] में पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जिसकी पवित्रता और भव्यता का वर्णन [[स्कन्दपुराण]] और [[ब्रह्मपुराण]] में भी मिलता है। प्राचीन समय में इस प्रसिद्ध स्थान का नाम 'धर्मारण्य' था। [[लंका]] के राजा [[रावण]] का वध करने के | 'मोढेरा सूर्य मन्दिर' [[गुजरात]] में पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जिसकी पवित्रता और भव्यता का वर्णन [[स्कन्दपुराण]] और [[ब्रह्मपुराण]] में भी मिलता है। प्राचीन समय में इस प्रसिद्ध स्थान का नाम 'धर्मारण्य' था। [[लंका]] के राजा [[रावण]] का वध करने के पश्चात् भगवान [[श्रीराम]] ने [[ब्राह्मण]] हत्या से मुक्ति के लिए यहाँ पर [[यज्ञ]] किया था और कालान्तर 1026 ईस्वी में सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम नें 'मोढेरा सूर्य मन्दिर' का निर्माण करवाया। मन्दिर में [[कमल]] के [[फूल]] रूपी विशाल चबूतरे पर भगवान [[सूर्य देव]] की ऱथ पर आरूढ सुवर्ण की प्रतिमा थी। मन्दिर परिसर में एक विशाल सरोवर तथा 52 स्तम्भों पर टिका एक मण्डप था। 52 स्तम्भ वर्ष के सप्ताहों के प्रतीक हैं। स्तम्भों तथा दीवारों पर [[खजुराहो]] की तरह की आकर्षक शिल्पकला थी। शिल्पकला की सुन्दरता का आँकलन देख कर ही किया जा सकता है। आज यह स्थल भी हिन्दुओं की उपेक्षा का प्रतीक चिह्न बन कर रह गया है। | ||
*[[मुस्लिम]] आक्रांता [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफ़ी नुकसान पहुँचा था। यहाँ पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। आज इस मन्दिर के संरक्षण की जिम्मेदारी 'भारतीय पुरातत्व विभाग' के पास है। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इस मन्दिर में [[पूजा]]-अर्चना आदि करना निषेध है। | *[[मुस्लिम]] आक्रांता [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफ़ी नुकसान पहुँचा था। यहाँ पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। आज इस मन्दिर के संरक्षण की जिम्मेदारी 'भारतीय पुरातत्व विभाग' के पास है। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इस मन्दिर में [[पूजा]]-अर्चना आदि करना निषेध है। |
07:36, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण
मोढेरा गुजरात के ऐतिहासिक और प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मैसाणा से 25 किलोमीटर और अहमदाबाद से 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहाँ मातंगि का कुल स्थान है। मोढेरा में राजा भीमदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, जिसकी सुन्दरता और अद्भुत स्थापत्य सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मन्दिर मोढेरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मोढेरा से ही लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर 'डीसा' है, जहाँ सिद्धाम्बिका माता का मन्दिर है।
पौराणिक इतिहास
मोढेरा का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। मोढ़ लोग मोढेश्वरी माँ के आनुयाई हैं, जो अंबे माँ के अठारह हाथ वाले स्वरूप की उपासना करते हैं। इस तरह मोढेरा मोढ़ वैश्य व मोढ़ ब्राह्मण की मातृभूमि है। इस स्थान पर बहुत से देवी-देवताओं के चरण पड़े हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर ही यमराज (धर्मराज) ने 1000 वर्ष तक तपस्या की थी, जिनका तप देखकर देवराज इंद्र को अपने आसन का खतरा महसूस हुआ, लेकिन यमराज ने कहा कि वे तो त्रिलोक के भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप कर रहे हैं। शिव ने प्रसन्न होकर यमराज से कहा कि आज से इस स्थान का नाम तुम्हारे नाम 'यमराज' (धर्मराज) पर 'धर्मारण्य' होगा।
श्रीराम का आगमन
स्कंदपुराण और ब्रह्मपुराण के अनुसार भगवान श्रीराम भी इस स्थान पर आए थे। मान्यता के अनुसार जब भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध कर दिया, तब वे ब्राह्मण की हत्या से मुक्ति हेतु इस नगर में यज्ञ करने हेतु आए थे। जब राम यहाँ आये, तब एक स्थानीय महिला रो रही थी। सभी ने रोने का कारण जानना चाहा, लेकिन महिला ने कहा कि "मैं सिर्फ प्रभु श्रीराम को ही कारण बताऊँगी।" राम को जब यह पता चला तो उन्होंने उस महिला से कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि इस स्थान से यहाँ के मूल निवासी वैश्य, ब्राह्मण आदि पलायन करके चले गए हैं, उन्हें वापस लाने का उपाय करें। तब श्रीराम ने इस नगर को पुनः बसाया व सभी पलायन किए हुए लोगों को वापस बुलाया और नगर की रक्षा का भार हनुमान को दिया। लेकिन धर्मारण्य की खुशियाँ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकीं। कान्यकुब्ज राजा कनोज अमराज ने यहाँ की जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। धर्मारण्य की जनता ने राजा को समझाया कि हनुमानजी इस नगरी के रक्षक हैं। आप उनके प्रकोप से डरें, लेकिन राजा ने जनता की बात नहीं मानी। राजा से त्रस्त होकर फिर कुछ लोग कठिन यात्रा कर रामेश्वर पहुँचे, जहाँ हनुमानजी से अनुरोध किया और धर्मारण्य कि रक्षा करने का प्रभु श्रीराम का वचन याद दिलाया। हनुमानजी ने वचन की रक्षा करते हुए राजा को सबक सिखाया और नगर की रक्षा की।
अलाउद्दीन ख़िलज़ी का आक्रमण
संवत् 1356 में गुजरात के अंतिम राजपूत राजा करणदेव वाघेला के अलाउद्दीन ख़िलज़ी से हारने के बाद मुस्लिमों ने गुजरात पर कब्जा कर लिया। अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने मोढेरा पर भी आक्रमण किया, परन्तु यहाँ के उच्च वर्ग के लोग लड़ाई में भी पारंगत थे। उन्होंने अलाउद्दीन ख़िलज़ी का डट कर मुकाबला किया, लेकिन वे अलाउद्दीन के एक षड़यंत्र में फँस गए और मोढेरा पर अलाउद्दीन ख़िलज़ी का अधिकार हो गया। इसके बाद लुटेरों ने नगर व सूर्य मंदिर को भारी क्षति पहुँचाई। वर्तमान 'धर्मारण्य' (मोढेरा) में मातंगि के विशाल मन्दिर के अलावा कुछ नहीं है, यहाँ के मूल निवासी अपना यह मूल स्थान छोड़ कर दूर बस गए हैं। मंदिर जीर्णोद्धार का कार्य माँ के भक्तों के सहयोग से प्रगति पर है। गुजरात के विकास के साथ ही यहाँ की सड़कों का भी विकास हुआ है, जिस कारण यहाँ पहुँचना अब सुगम हो गया है।
दर्शनीय स्थल
मोढेरा अपनी स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी यहाँ कई धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थल हैं। यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं-
सूर्य मन्दिर
'मोढेरा सूर्य मन्दिर' गुजरात में पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जिसकी पवित्रता और भव्यता का वर्णन स्कन्दपुराण और ब्रह्मपुराण में भी मिलता है। प्राचीन समय में इस प्रसिद्ध स्थान का नाम 'धर्मारण्य' था। लंका के राजा रावण का वध करने के पश्चात् भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण हत्या से मुक्ति के लिए यहाँ पर यज्ञ किया था और कालान्तर 1026 ईस्वी में सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम नें 'मोढेरा सूर्य मन्दिर' का निर्माण करवाया। मन्दिर में कमल के फूल रूपी विशाल चबूतरे पर भगवान सूर्य देव की ऱथ पर आरूढ सुवर्ण की प्रतिमा थी। मन्दिर परिसर में एक विशाल सरोवर तथा 52 स्तम्भों पर टिका एक मण्डप था। 52 स्तम्भ वर्ष के सप्ताहों के प्रतीक हैं। स्तम्भों तथा दीवारों पर खजुराहो की तरह की आकर्षक शिल्पकला थी। शिल्पकला की सुन्दरता का आँकलन देख कर ही किया जा सकता है। आज यह स्थल भी हिन्दुओं की उपेक्षा का प्रतीक चिह्न बन कर रह गया है।
- मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन ख़िलज़ी के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफ़ी नुकसान पहुँचा था। यहाँ पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। आज इस मन्दिर के संरक्षण की जिम्मेदारी 'भारतीय पुरातत्व विभाग' के पास है। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इस मन्दिर में पूजा-अर्चना आदि करना निषेध है।
माताजी का मन्दिर
प्राचीन काल में मोढेरा नगरी 'धर्मारण्य' नाम से जानी जाती थी। मोढेरा, जो कि मोढेरा मातंगि का कुल स्थान है, यहाँ माताजी का प्रसिद्ध मंदिर है। दूर-दूर से माताजी को मानने वाले भक्त यहाँ उनके दर्शन करने की अभिलाषा लेकर आते हैं। मंदिर परिसर बहुत बड़ा है, जहाँ रहने और खाने की उत्तम व्यवस्था है। भक्तगण अपने मन्नतें मानते हैं और उनके पूर्ण होने पर पुन: आने की कहकर जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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