"हिन्दी सामान्य ज्ञान": अवतरणों में अंतर
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-[[कन्नौजी बोली|कन्नौजी भाषा]] | -[[कन्नौजी बोली|कन्नौजी भाषा]] | ||
||'ब्रजभाषा' मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और '[[ब्रजभाषा]]' नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम 'केंद्रीय ब्रजभाषा' भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]] | ||'ब्रजभाषा' मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और '[[ब्रजभाषा]]' नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम 'केंद्रीय ब्रजभाषा' भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]] | ||
{निम्नलिखित में से 'छायावाद' के प्रवर्तक का नाम क्या है? | |||
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-[[सुमित्रानंदन पंत]] | |||
-[[श्रीधर]] | |||
-[[श्यामसुन्दर दास]] | |||
+[[जयशंकर प्रसाद]] | |||
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|जयशंकर प्रसाद]]'जयशंकर प्रसाद' [[कविता]], [[नाटक]], [[कहानी]] और [[उपन्यास]], इन सभी क्षेत्रों में एक नवीन 'स्कूल' और नवीन 'जीवन-दर्शन' की स्थापना करने में सफल हुये हैं। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। वैसे सर्वप्रथम कविता के क्षेत्र में इस नव-अनुभूति के वाहक [[जयशंकर प्रसाद]] ही रहे हैं, और प्रथम विरोध भी उन्हीं को सहना पड़ा है। [[भाषा]]-शैली और शब्द-विन्यास के निर्माण के लिये जितना संघर्ष प्रसाद जी को करना पङा है, उतना दूसरों को नही। कथा साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद की देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम माने जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जयशंकर प्रसाद]] | |||
{[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है? | {[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है? | ||
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+पिंगल भाषा | +पिंगल भाषा | ||
{निम्नलिखित में से कौन [[प्रेमचंद]] की एक रचना है? | {निम्नलिखित में से कौन-सी [[प्रेमचंद]] की एक रचना है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+पंच-परमेश्वर | +पंच-परमेश्वर | ||
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-खड़ी बोली | -खड़ी बोली | ||
||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं। ये सात कहानियाँ थीं- 'बड़े घर की बेटी', 'सौत', 'सज्जनता का दण्ड', 'पंच परमेश्वर', 'नमक का दारोग़ा', 'उपदेश' और 'परीक्षा'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]] | ||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं। ये सात कहानियाँ थीं- 'बड़े घर की बेटी', 'सौत', 'सज्जनता का दण्ड', 'पंच परमेश्वर', 'नमक का दारोग़ा', 'उपदेश' और 'परीक्षा'।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]] | ||
{[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है? | {[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है? |
08:23, 31 जुलाई 2013 का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
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