"कुशग्रहणी अमावस्या": अवतरणों में अंतर
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'''कुशग्रहणी अमावस्या''' [[भाद्रपद मास]] की [[अमावस्या]] को कहा जाता है। [[हिन्दू धर्म]] ग्रंथों में इसे 'कुशोत्पाटिनी अमावस्या' भी कहा गया है। इस दिन [[वर्ष]] भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों तथा [[श्राद्ध]] आदि कार्यों के लिए 'कुश' <ref>एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है।</ref> एकत्रित किया जाता है। [[हिन्दु|हिन्दुओं]] के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है- | '''कुशग्रहणी अमावस्या''' [[भाद्रपद मास]] की [[अमावस्या]] को कहा जाता है। [[हिन्दू धर्म]] ग्रंथों में इसे 'कुशोत्पाटिनी अमावस्या' भी कहा गया है। इस दिन [[वर्ष]] भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों तथा [[श्राद्ध]] आदि कार्यों के लिए 'कुश' <ref>एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है।</ref> एकत्रित किया जाता है। [[हिन्दु|हिन्दुओं]] के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है- | ||
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कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।<ref>शब्दकल्पद्रुम</ref></poem></blockquote> | कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।<ref>शब्दकल्पद्रुम</ref></poem></blockquote> | ||
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गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।</poem></blockquote> | गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।</poem></blockquote> | ||
*जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और [[हरा रंग|हरा]] हो, वह [[देव]] तथा [[पितर]] दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है। | *जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और [[हरा रंग|हरा]] हो, वह [[देव]] तथा [[पितर]] दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।<ref>{{cite web |url=http://religion.bhaskar.com/article/utsav--kushgrahani-amavasya-on-17-august-know-the-importance-and-method-3655531.html|title=कुशग्रहणी अमावस्या|accessmonthday=25 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
*कुश निकालने के लिए इस भाद्रपद अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर निम्न मंत्र पढ़ें और हुँ फट् कहकह दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ना चाहिए- | *कुश निकालने के लिए इस भाद्रपद अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर निम्न मंत्र पढ़ें और हुँ फट् कहकह दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ना चाहिए- | ||
<blockquote><poem>विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज। | <blockquote><poem>विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज। | ||
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।</poem></blockquote> | नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।</poem></blockquote> | ||
*इस दिन [[तीर्थ स्थान]] पर [[स्नान]] कर यथाशक्ति दान देने से [[देवता]] व पितर दोनों संतुष्ट होते हैं तथा सभी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं। | |||
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कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, [[स्नान]], जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है। भगवान [[विष्णु]] की आराधना की जाती है। यह व्रत एक [[वर्ष]] तक किया जाता है, जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।<ref>{{cite web |url=https://www.facebook.com/AbhinavJyotisha/posts/343904402362806|title=कुशाग्रहणी अमावस्या|accessmonthday=25 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
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13:41, 25 अगस्त 2013 का अवतरण
कुशग्रहणी अमावस्या भाद्रपद मास की अमावस्या को कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इसे 'कुशोत्पाटिनी अमावस्या' भी कहा गया है। इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों तथा श्राद्ध आदि कार्यों के लिए 'कुश' [1] एकत्रित किया जाता है। हिन्दुओं के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है-
पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।[2]
- प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय करना चाहिए। शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है। इनमें से जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए-
कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।
- जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वह देव तथा पितर दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।[3]
- कुश निकालने के लिए इस भाद्रपद अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर निम्न मंत्र पढ़ें और हुँ फट् कहकह दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ना चाहिए-
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।
- इस दिन तीर्थ स्थान पर स्नान कर यथाशक्ति दान देने से देवता व पितर दोनों संतुष्ट होते हैं तथा सभी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
महत्व
शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है, इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। जब अमावस्या के दिन सोमवार, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है। इसी तरह शनिवार, और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाले पन्द्रह दिनों के 'पितृपक्ष' का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाता है।
फल
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है, जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है।
- ↑ शब्दकल्पद्रुम
- ↑ कुशग्रहणी अमावस्या (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2013।
- ↑ कुशाग्रहणी अमावस्या (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2013।
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