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कवि के स्वर का ओज नये वेग से नये शिखर तक पहुँच जाता है। वह काव्यात्क प्रयोगशीलता के प्रति आस्थावान है। स्वयं प्रयोगशील कवियों को जयमाल पहनाने और उनकी राह पर [[फूल]] बिछाने की आकांक्षा उसे विव्हल कर देती है। नवीनतम काव्य धारा से संबंध स्थापित करने की [[कवि]] की इच्छा स्पष्ट हो जाती है। इस संग्रह में पाठक कवि के भाषा प्रवाह, ओज अनुभूति की तीव्रता और सच्ची संवेदना को अवश्य ही अनुभव कर सकेंगे।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=7548|title=नील कुसुम|accessmonthday=22 सितम्बर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====विद्वान विचार====
====विद्वान विचार====
'नील-कुसुम' को [[हिन्दी]] के कुछ विद्वानों ने प्रयोगवादी रचना माना है, किन्तु कुछ की दृष्टि में 'नील-कुसुम' में संगृहीत रचनाएँ प्रयोगवादी रचनाएँ नहीं हैं-
'नील-कुसुम' को [[हिन्दी]] के कुछ विद्वानों ने प्रयोगवादी रचना माना है, किन्तु कुछ की दृष्टि में 'नील-कुसुम' में संग्रहीत रचनाएँ प्रयोगवादी रचनाएँ नहीं हैं-
#[[रामधारी सिंह दिनकर]] यह नहीं मानते थे कि जिस नई संवेदना के वे वाहक हैं, वह हिन्द के सामान्य पाठक को छू तक नहीं गई है।
#[[रामधारी सिंह दिनकर]] यह नहीं मानते थे कि जिस नई संवेदना के वे वाहक हैं, वह हिन्द के सामान्य पाठक को छू तक नहीं गई है।
#इस कविता संग्रह में संकलित कविताओं के विषय 'अपरिचित, अप्रत्याशित और अनपेक्षित नहीं हैं।
#इस कविता संग्रह में संकलित कविताओं के विषय 'अपरिचित, अप्रत्याशित और अनपेक्षित नहीं हैं।

08:23, 21 मई 2017 का अवतरण

नील कुसुम -रामधारी सिंह दिनकर
नील कुसुम का आवरण पृष्ठ
नील कुसुम का आवरण पृष्ठ
कवि रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक 'नील कुसुम'
प्रकाशक 'लोकभारती प्रकाशन'
ISBN 978-81-8031-410
देश भारत
पृष्ठ: 123
भाषा हिन्दी
विधा कविताएँ
टिप्पणी इस कविता संग्रह में कवि के स्वर का ओज नये वेग से नये शिखर तक पहुँच जाता है। पाठक कवि के भाषा प्रवाह, ओज अनुभूति की तीव्रता और सच्ची संवेदना को अवश्य ही अनुभव कर सकेंगे।

नील कुसुम भारत के ख्याति प्राप्त निबन्धकार, लेखक और कवि रामधारी सिंह दिनकर का कविता संग्रह है। 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा इस कविता संग्रह का प्रकाशन किया गया था। इस काव्य संग्रह में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की सौन्दर्यान्वेसी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है, पर यह अंधेरे में ध्येय सौंदर्य का अन्वेषण नहीं, उजाले में ज्ञेय सौंदर्य का आराधन है।

पुस्तक समीक्षा

कवि के स्वर का ओज नये वेग से नये शिखर तक पहुँच जाता है। वह काव्यात्क प्रयोगशीलता के प्रति आस्थावान है। स्वयं प्रयोगशील कवियों को जयमाल पहनाने और उनकी राह पर फूल बिछाने की आकांक्षा उसे विव्हल कर देती है। नवीनतम काव्य धारा से संबंध स्थापित करने की कवि की इच्छा स्पष्ट हो जाती है। इस संग्रह में पाठक कवि के भाषा प्रवाह, ओज अनुभूति की तीव्रता और सच्ची संवेदना को अवश्य ही अनुभव कर सकेंगे।[1]

विद्वान विचार

'नील-कुसुम' को हिन्दी के कुछ विद्वानों ने प्रयोगवादी रचना माना है, किन्तु कुछ की दृष्टि में 'नील-कुसुम' में संग्रहीत रचनाएँ प्रयोगवादी रचनाएँ नहीं हैं-

  1. रामधारी सिंह दिनकर यह नहीं मानते थे कि जिस नई संवेदना के वे वाहक हैं, वह हिन्द के सामान्य पाठक को छू तक नहीं गई है।
  2. इस कविता संग्रह में संकलित कविताओं के विषय 'अपरिचित, अप्रत्याशित और अनपेक्षित नहीं हैं।
  3. प्रयोगवादी कविता मूलतः प्रश्न चिन्हों की कविता है, संदेह और आशंका की कविता है, 'नील कुसुम' वैसी कृति नहीं हैं। उसमें परम्परा की सुरभि का अभाव नहीं है।
  4. 'नील कुसुम' की कविताएँ दिनकर जी की काव्य यात्रा की ऐसी आधारशिला है, जिस पर वे 'उर्वशी' जैसी प्रबन्ध रचना का निर्माण कर सके।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नील कुसुम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।
  2. रामधारी सिंह दिनकर का काव्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2013।

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