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'''धूपछाँह''' प्रसिद्ध [[कवि]] और लेखक, साथ ही एक निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध [[रामधारी सिंह दिनकर]] का कविता संग्रह है। कवि दिनकर की यह कृति देश के युवाओं को नया सन्देश देने में सक्षम है। दिनकर जी के इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था। | '''धूपछाँह''' प्रसिद्ध [[कवि]] और लेखक, साथ ही एक निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध [[रामधारी सिंह दिनकर]] का कविता संग्रह है। कवि दिनकर की यह कृति देश के युवाओं को नया सन्देश देने में सक्षम है। दिनकर जी के इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था। | ||
==पुस्तक समीक्षा== | ==पुस्तक समीक्षा== |
13:10, 22 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
धूपछाँह -रामधारी सिंह दिनकर
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कवि | रामधारी सिंह दिनकर | |
मूल शीर्षक | 'धूपछाँह' | |
प्रकाशक | 'लोकभारती प्रकाशन' | |
ISBN | 978-81-8031-413 | |
देश | भारत | |
पृष्ठ: | 68 | |
भाषा | हिन्दी | |
विधा | कविताएँ | |
टिप्पणी | 'धूपछाँह' रामधारी सिंह दिनकर की सोलह ओजस्वी कविताओं का संकलन है, जिसमें प्रांजल प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद विधान और भाव संप्रेषण का समावेश किया गया है। |
धूपछाँह प्रसिद्ध कवि और लेखक, साथ ही एक निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध रामधारी सिंह दिनकर का कविता संग्रह है। कवि दिनकर की यह कृति देश के युवाओं को नया सन्देश देने में सक्षम है। दिनकर जी के इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था।
पुस्तक समीक्षा
कविता संग्रह 'धूपछाँह' राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की सोलह ओजस्वी कविताओं का संकलन है, जिसमें प्रांजल प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद विधान और भाव संप्रेषण का समावेश किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में शक्ति या सौंदर्य, बल या विवेक, बच्चे का तकिया, पानी की चाल, कवि का मित्र, दो बिघा जमीन, तन्तुवायु, कैंची और तलवार, पुरातन भृत्य, भारतेन्दु-स्मृति, वर-भिक्षा, रौशन बे की बहादुरी, नींद, तीन दर्द, पुस्तकालय, कलम और तलवार इत्यादि काव्य संकलित है, जो उन लोगों को समर्पित है, जो अपेक्षाकृत अल्पवयस्क है और सीधी-सीधी रचनाओं से सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। कविवर दिनकर की यह कृति युवा पीढ़ी को एक नया संदेश देगी।
- बल या विवेक
कहते हैं, दो नौजवान
क्षत्रिय घोड़े दौड़ाते,
ठहरे आकर बादशाह के
पास सलाम बजाते।
कहा कि ‘‘दें सरकार, हमें भी
घी-आटा खाने को,
और एक मौका अपना कुछ
जौहर दिखलाने को।’’
बादशाह ने कहा, ‘‘कौन हो तुम ?
क्या काम तुम्हें दें ?’’
‘‘हम हैं मर्द बहादुर,’’ झुककर
कहा राजपूतों ने।
‘‘इसका कौन प्रमाण ?’’ कहा
ज्यों बादशाह ने हँस के,
घोड़ों को आमने-सामने कर,
वीरों ने कस के–
एँड़ मार दी और खींच
ली म्यानों से तलवार,
और दिया कर एक दूसरे
की गरदन पर वार।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख