"रमण महर्षि": अवतरणों में अंतर

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वेंकटरामन स्वस्थ एवं शक्तिशाली शरीर से युक्त थे। इसीलिए उनके साथी उनकी ताकत से डरते थे। वेंकटरामन बहुत गहरी नींद सोते थे। इनकी नींद इतनी गहरी होती थी कि उनके साथियों में से यदि कभी किसी को वेंकटरामन से नाराजगी रहती तो वे उनसे गहरी निद्रावस्था में बदला लेते थे। उन्हें सोया जानकर कहीं दूर जाकर पीटते थे तो भी उनकी नींद नहीं झुलती थी।
वेंकटरामन स्वस्थ एवं शक्तिशाली शरीर से युक्त थे। इसीलिए उनके साथी उनकी ताकत से डरते थे। वेंकटरामन बहुत गहरी नींद सोते थे। इनकी नींद इतनी गहरी होती थी कि उनके साथियों में से यदि कभी किसी को वेंकटरामन से नाराजगी रहती तो वे उनसे गहरी निद्रावस्था में बदला लेते थे। उन्हें सोया जानकर कहीं दूर जाकर पीटते थे तो भी उनकी नींद नहीं झुलती थी।
==प्रेरक प्रसंग==
रमण महर्षि बहुत कुशल धनुर्धर भी थे। एक सुबह उन्होंने अपने एक शिष्य को अपनी धनुर्विद्या देखने के लिए बुलाया। शिष्य यह सब पहले ही कई बार देख चुका था, पर वह गुरु की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता था। वे समीप ही जंगल में एक विशाल वृक्ष के पास गए। रमण महर्षि के पास एक [[फूल]] था, जिसे उन्होंने पेड़ की एक शाखा पर रख दिया। फिर उन्होंने अपने बस्ते से अपना नायाब [[धनुष अस्त्र|धनुष]], [[बाण अस्त्र|बाण]] और एक कढ़ाई किया हुआ सुंदर रूमाल निकाला। वह फूल से सौ कदम दूर आकर खड़े हो गए और उन्होंने शिष्य से कहा कि वह रूमाल से उनकी [[आँख|आँखें]] ढंककर भली-भांति बंद कर दे। शिष्य ने ऐसा ही किया। रमण महर्षि ने शिष्य से पूछा- "तुमने मुझे धनुर्विद्या की महान कला का अभ्यास करते कितने बार देखा है?" "मैं तो यह सब रोज़ ही देखता हूँ।" शिष्य ने कहा। फिर शिष्य ने रमण महर्षि से कहा- "आप तो तीन सौ कदम दूर से ही फूल पर निशाना लगा सकते हैं।" रूमाल से अपनी आँखें ढंके हुए महर्षि रमण ने अपने पैरों को धरती पर जमाया। उन्होंने पूरी शक्ति से धनुष की प्रत्यंचा को खींचा और तीर छोड़ दिया।
हवा को चीरता हुआ तीर फूल से बहुत दूर, यहाँ तक कि पेड़ से भी नहीं टकराया और लक्ष्य से बहुत दूर जा गिरा। "तीर लक्ष्य पर लग गया न?" अपनी आँखें खोलते हुए महर्षि रमण ने पूछा। शिष्य ने उत्तर दिया- "नहीं, वह तो लक्ष्य के पास भी नहीं लगा। मुझे लगा कि आप इसके द्वारा संकल्प की शक्ति या अपनी पराशक्तियों का प्रदर्शन करने वाले थे।" महर्षि ने कहा- "मैंने तुम्हें संकल्प शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण पाठ ही तो पढाया है। तुम जिस भी वस्तु की इच्छा करो, अपना पूरा [[ध्यान]] उसी पर लगाओ। कोई भी उस लक्ष्य को नहीं वेध सकता, जो दिखाई ही न देता हो।"<ref>{{cite web |url=http://hindizen.com/2010/05/02/will-power/|title=संकल्प की शक्ति|accessmonthday=13 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


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12:28, 13 अक्टूबर 2013 का अवतरण

रमण महर्षि (जन्म- 30 दिसम्बर, 1879, तिरुचुली गाँव, तमिलनाडु; मृत्यु- 14 अप्रैल, 1950, रमण आश्रम, तमिलनाडु) बीसवीं सदी के महान संत थे, जिन्होंने तमिलनाडु स्थित पवित्र अरुनाचला पहाड़ी पर गहन साधना की थी। उन्हें केवल भारत में ही अपितु विदेशो में भी शांत ऋषि के रूप में जाना जाता है। उन्होंने आत्म विचार पर बहुत बल दिया था। रमण महर्षि के संपर्क में आने पर असीम शांति का अनुभव होता था। आज भी लोग शांति कि खोज में तिरुवन्नामलाई स्थित रमण महर्षि के आश्रम अरुनाचला पहाड़ी और अरुनाचलेश्वर मंदिर में जाते हैं। महर्षि ने भारत के साथ-साथ पश्चिम के कई देशो में अपना उजाला फैलाकर देश को गौरवान्वित किया तथा मानव जाति की बहुमूल्य सेवा की। भारत के आध्यात्मिक लाडले सपूतों में रमण महर्षि का नाम अग्रगण्य है।

जन्म

रमण महर्षि का जन्म 30 दिसम्बर, सन 1879 में मदुरई, तमिलनाडु के पास 'तिरुचुली' नामक गाँव में हुआ था। इनका जन्म 'अद्र दर्शन', भगवान शिव का प्रसिद्ध पर्व, के दिन हुआ। इनके माता-पिता ने उनका नाम वेंकटरमण रखा था, जो बाद में रमण महर्षि के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुए।[1]

शिक्षा

जीवन के आरम्भिक वर्षों में वेंकटरामन में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था। वे एक सामान्य बालक के रूप में ही विकसित हुए थे। उन्हें तिरुचुली के एक प्राइमरी स्कूल में तथा बाद में दिण्डुक्कल के एक स्कूल में शिक्षा के लिए भेजा गया। जब वे बारह वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहावसान हो गया। ऐसी स्थिति में उन्हें परिवार के साथ अपने चाचा सुब्ब अय्यर के साथ मदुरै में रहने की आवश्यकता पड़ी। मदुरै में उन्हें पहले 'स्काट मीडिल स्कूल' तथा बाद में 'अमेरिकन मिशन हाईस्कूल' में भेजा गया। यद्यपि वह तीव्र बुद्धि एवं तीव्र स्मरण शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु फिर भी अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं थे।[2]

बलशाली शरीर

वेंकटरामन स्वस्थ एवं शक्तिशाली शरीर से युक्त थे। इसीलिए उनके साथी उनकी ताकत से डरते थे। वेंकटरामन बहुत गहरी नींद सोते थे। इनकी नींद इतनी गहरी होती थी कि उनके साथियों में से यदि कभी किसी को वेंकटरामन से नाराजगी रहती तो वे उनसे गहरी निद्रावस्था में बदला लेते थे। उन्हें सोया जानकर कहीं दूर जाकर पीटते थे तो भी उनकी नींद नहीं झुलती थी।

प्रेरक प्रसंग

रमण महर्षि बहुत कुशल धनुर्धर भी थे। एक सुबह उन्होंने अपने एक शिष्य को अपनी धनुर्विद्या देखने के लिए बुलाया। शिष्य यह सब पहले ही कई बार देख चुका था, पर वह गुरु की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता था। वे समीप ही जंगल में एक विशाल वृक्ष के पास गए। रमण महर्षि के पास एक फूल था, जिसे उन्होंने पेड़ की एक शाखा पर रख दिया। फिर उन्होंने अपने बस्ते से अपना नायाब धनुष, बाण और एक कढ़ाई किया हुआ सुंदर रूमाल निकाला। वह फूल से सौ कदम दूर आकर खड़े हो गए और उन्होंने शिष्य से कहा कि वह रूमाल से उनकी आँखें ढंककर भली-भांति बंद कर दे। शिष्य ने ऐसा ही किया। रमण महर्षि ने शिष्य से पूछा- "तुमने मुझे धनुर्विद्या की महान कला का अभ्यास करते कितने बार देखा है?" "मैं तो यह सब रोज़ ही देखता हूँ।" शिष्य ने कहा। फिर शिष्य ने रमण महर्षि से कहा- "आप तो तीन सौ कदम दूर से ही फूल पर निशाना लगा सकते हैं।" रूमाल से अपनी आँखें ढंके हुए महर्षि रमण ने अपने पैरों को धरती पर जमाया। उन्होंने पूरी शक्ति से धनुष की प्रत्यंचा को खींचा और तीर छोड़ दिया।

हवा को चीरता हुआ तीर फूल से बहुत दूर, यहाँ तक कि पेड़ से भी नहीं टकराया और लक्ष्य से बहुत दूर जा गिरा। "तीर लक्ष्य पर लग गया न?" अपनी आँखें खोलते हुए महर्षि रमण ने पूछा। शिष्य ने उत्तर दिया- "नहीं, वह तो लक्ष्य के पास भी नहीं लगा। मुझे लगा कि आप इसके द्वारा संकल्प की शक्ति या अपनी पराशक्तियों का प्रदर्शन करने वाले थे।" महर्षि ने कहा- "मैंने तुम्हें संकल्प शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण पाठ ही तो पढाया है। तुम जिस भी वस्तु की इच्छा करो, अपना पूरा ध्यान उसी पर लगाओ। कोई भी उस लक्ष्य को नहीं वेध सकता, जो दिखाई ही न देता हो।"[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रमण महर्षि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2013।
  2. श्री रमण महर्षि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2013।
  3. संकल्प की शक्ति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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