"भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ") |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
'''भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Indian Institute of Natural Resins and Gums'', संक्षिप्त नाम: IINRG) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के अतिरिक्त लाख के सभी पहलुओं तथा सभी प्राकृतिक राल व गोंद तथा गोंद-राल के प्रसंस्करण, उत्पाद विकास, प्रशिक्षण, सूचना संग्रहण, प्रौद्योगिकी प्रसार सम्बंधी अनुसंधान एवं विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर का नोडल संस्थान है। पूर्व में इसका नाम '''भारतीय लाख शोध संस्थान''' (Indian Lac Research Institute संक्षिप्त: ILRI) था। यह [[झारखण्ड]] राज्य की राजधानी [[राँची]] में स्थित है। | '''भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Indian Institute of Natural Resins and Gums'', संक्षिप्त नाम: IINRG) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के अतिरिक्त लाख के सभी पहलुओं तथा सभी प्राकृतिक राल व गोंद तथा गोंद-राल के प्रसंस्करण, उत्पाद विकास, प्रशिक्षण, सूचना संग्रहण, प्रौद्योगिकी प्रसार सम्बंधी अनुसंधान एवं विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर का नोडल संस्थान है। पूर्व में इसका नाम '''भारतीय लाख शोध संस्थान''' (Indian Lac Research Institute संक्षिप्त: ILRI) था। यह [[झारखण्ड]] राज्य की राजधानी [[राँची]] में स्थित है। | ||
==स्थापना== | ==स्थापना== | ||
भारतीय लाख उद्योग की स्थिति की जाँच एवं इसके विकास के लिए भारत की तत्कालीन शाही सरकार द्वारा गठित लिंडसे-हार्लो समिति की अनुशंसा पर [[20 सितम्बर]] [[1924]] को यह संस्थान अस्तित्व में आया। इसी समिति की सलाह पर लाख व्यापारियों ने मिलकर 'भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान' की आधारशिला रखी। | भारतीय लाख उद्योग की स्थिति की जाँच एवं इसके विकास के लिए भारत की तत्कालीन शाही सरकार द्वारा गठित लिंडसे-हार्लो समिति की अनुशंसा पर [[20 सितम्बर]] [[1924]] को यह संस्थान अस्तित्व में आया। इसी समिति की सलाह पर लाख व्यापारियों ने मिलकर 'भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान' की आधारशिला रखी। तत्पश्चात् राजकीय कृषि आयोग की अनुशंसा पर भारतीय लाख कर समिति का गठन हुआ, जिसने [[1 अगस्त]] [[1931]] को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान का अधिग्रहण कर लिया। भारतीय लाख कर समिति ने लंदन चपड़ा अनुसंधान ब्यूरो, यूनाइटेड किंगडम तथा चपड़ा अनुसंधान ब्यूरो एवं पॉलिटेक्नीक संस्थान, ब्रुकलिन, संयुक्त राज्य अमेरिका का भी गठन एवं प्रबन्धन किया। | ||
==प्रशासनिक नियंत्रण== | ==प्रशासनिक नियंत्रण== | ||
देश में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के पुर्नगठन के फलस्वरूप [[भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद]] ने [[1 अप्रैल]] [[1966]] को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया। भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन चौथा सबसे पुराना संस्थान है तथा 87 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्र की सेवा में संलग्न है। | देश में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के पुर्नगठन के फलस्वरूप [[भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद]] ने [[1 अप्रैल]] [[1966]] को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया। भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन चौथा सबसे पुराना संस्थान है तथा 87 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्र की सेवा में संलग्न है। |
07:53, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान
| |
विवरण | पूर्व में इसका नाम 'भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान' था। |
राज्य | झारखण्ड |
नगर | रांची |
स्थापना | 20 सितम्बर 1924 |
प्रशासनिक नियंत्रण | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1 अप्रैल 1966 को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया |
अन्य जानकारी | भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन चौथा सबसे पुराना संस्थान है तथा 87 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्र की सेवा में संलग्न है। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान (अंग्रेज़ी: Indian Institute of Natural Resins and Gums, संक्षिप्त नाम: IINRG) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के अतिरिक्त लाख के सभी पहलुओं तथा सभी प्राकृतिक राल व गोंद तथा गोंद-राल के प्रसंस्करण, उत्पाद विकास, प्रशिक्षण, सूचना संग्रहण, प्रौद्योगिकी प्रसार सम्बंधी अनुसंधान एवं विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर का नोडल संस्थान है। पूर्व में इसका नाम भारतीय लाख शोध संस्थान (Indian Lac Research Institute संक्षिप्त: ILRI) था। यह झारखण्ड राज्य की राजधानी राँची में स्थित है।
स्थापना
भारतीय लाख उद्योग की स्थिति की जाँच एवं इसके विकास के लिए भारत की तत्कालीन शाही सरकार द्वारा गठित लिंडसे-हार्लो समिति की अनुशंसा पर 20 सितम्बर 1924 को यह संस्थान अस्तित्व में आया। इसी समिति की सलाह पर लाख व्यापारियों ने मिलकर 'भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान' की आधारशिला रखी। तत्पश्चात् राजकीय कृषि आयोग की अनुशंसा पर भारतीय लाख कर समिति का गठन हुआ, जिसने 1 अगस्त 1931 को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान का अधिग्रहण कर लिया। भारतीय लाख कर समिति ने लंदन चपड़ा अनुसंधान ब्यूरो, यूनाइटेड किंगडम तथा चपड़ा अनुसंधान ब्यूरो एवं पॉलिटेक्नीक संस्थान, ब्रुकलिन, संयुक्त राज्य अमेरिका का भी गठन एवं प्रबन्धन किया।
प्रशासनिक नियंत्रण
देश में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के पुर्नगठन के फलस्वरूप भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1 अप्रैल 1966 को भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया। भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन चौथा सबसे पुराना संस्थान है तथा 87 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्र की सेवा में संलग्न है।
आर्थिक नीतियों में खुलापन, उद्योगों एवं कृषि जनित उद्यमों के भूमंडलीकरण को ध्यान में रखते हुए संस्थान में संरचनात्मक बदलाव आया है, प्राथमिकताओं की पुनर्व्याख्या की गई है तथा संस्थान के क्षेत्र और अधिदेश का विस्तार हुआ है। लाख के सभी पहलुओं पर अनुसंधान एवं विकास के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक राल एवं गोंद के प्रसंस्करण एवं उत्पाद विकास को अनुसंधान की परिधि में लाया गया है। जिसके फलस्वरूप वर्ष 2007 में भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान का उन्नयन, भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के रूप में हुआ।
विभाग
संस्थान अपने अधिदेश को तीन विभागों के माध्यम से पूरा करता है। संस्थान की सभी अनुसंधान परियोजनाएं एवं प्रसार गतिविधियां सम्बंधित विभागों द्वारा निम्नलिखित मुख्य कार्यक्रमों के अन्तर्गत चलाई जाती है।
लाख उत्पादन विभाग
- कीट सुधार
- परिपालक सुधार
- फसल उत्पादन
प्रसंस्करण एवं उत्पाद विकास विभाग
- सतह लेपन एवं उपयोग विविधिकरण
- संश्लेषण एवं उत्पाद विकास
- प्रसंस्करण एवं भंडारण
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण विभाग
- प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, परिष्करण एवं प्रसार
- मानव संसाधन विकास
- सम्पर्क, सूचना एवं परामर्शदातृ सेवाएं
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख