"सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर

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झरनो की झंकार खो गयी कहीं कलम से  
झरनो की झंकार खो गयी कहीं कलम से  
तेरी सुधि में गीत कहाँ मिलते सस्ते है  
तेरी सुधि में गीत कहाँ मिलते सस्ते है  
सात्विक गीत बड़े महगें हैं
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं


देखो कविते उपवन गीतों का मुरझाया है  
देखो कविते उपवन गीतों का मुरझाया है  
बादल का वो अमर राग खोया खोया है
बादल का वो अमर राग खोया खोया है
एक सूरत पर सारे रस आकर ठहरे हैं  
एक सूरत पर सारे रस आकर ठहरे हैं  
सात्विक गीत बड़े महगें हैं
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं


अब मकरन्दों का स्पन्दन भी हीन हुआ  
अब मकरन्दों का स्पन्दन भी हीन हुआ  
अरविंदों के नवल गन्ध भी छिर्ण हुआ
अरविंदों के नवल गन्ध भी छिर्ण हुआ
अब तितली के पंखों के गान कहाँ मिलते है  
अब तितली के पंखों के गान कहाँ मिलते है  
सात्विक गीत बड़े महगें हैं
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं


गीतों में सौंदर्य कहाँ शायन-प्रभात का
गीतों में सौंदर्य कहाँ शायन-प्रभात का
कही लुप्त रस हुआ श्यामा के गीतों का  
कही लुप्त रस हुआ श्यामा के गीतों का  
नयी नवेली सोनजुही के गीत नहीं है  
नयी नवेली सोनजुही के गीत नहीं है  
सात्विक गीत बड़े महगें हैं</poem>
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं</poem>
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09:13, 24 जनवरी 2015 का अवतरण

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।

ये खग तेरा गान खो गया कहीं कलम से
झरनो की झंकार खो गयी कहीं कलम से
तेरी सुधि में गीत कहाँ मिलते सस्ते है
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं

देखो कविते उपवन गीतों का मुरझाया है
बादल का वो अमर राग खोया खोया है
एक सूरत पर सारे रस आकर ठहरे हैं
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं

अब मकरन्दों का स्पन्दन भी हीन हुआ
अरविंदों के नवल गन्ध भी छिर्ण हुआ
अब तितली के पंखों के गान कहाँ मिलते है
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं

गीतों में सौंदर्य कहाँ शायन-प्रभात का
कही लुप्त रस हुआ श्यामा के गीतों का
नयी नवेली सोनजुही के गीत नहीं है
सात्विक गीत बड़े मंहगे हैं

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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