"बिन कौड़ी का गुलाम": अवतरणों में अंतर
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'''बिन कौड़ी का गुलाम''' एक प्रचलित [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] अथवा [[हिन्दी]] मुहावरा है। | '''बिन कौड़ी का गुलाम''' एक प्रचलित [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] अथवा [[हिन्दी]] मुहावरा है। | ||
'''अर्थ'''- ऐसा सेवक जिसे कुछ भी पारिश्रमिक न देना | '''अर्थ'''- ऐसा सेवक जिसे कुछ भी पारिश्रमिक न देना पड़ता हो। | ||
'''प्रयोग'''- बाद में मुहल्ले वालों के कहने सुनने पर लाला बैजू ने अनाथ विधवा ब्राह्मणी को अपनी कोठी में ही एक कोठरी दे दी और उस कोठरी में एवज में उन्हे अपना बिना कौड़ी का गुलाम बना लिया। ([[अमृतलाल नागर]]) | '''प्रयोग'''- बाद में मुहल्ले वालों के कहने सुनने पर लाला बैजू ने अनाथ विधवा ब्राह्मणी को अपनी कोठी में ही एक कोठरी दे दी और उस कोठरी में एवज में उन्हे अपना बिना कौड़ी का गुलाम बना लिया। ([[अमृतलाल नागर]]) |
06:19, 4 नवम्बर 2015 का अवतरण
बिन कौड़ी का गुलाम एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ- ऐसा सेवक जिसे कुछ भी पारिश्रमिक न देना पड़ता हो।
प्रयोग- बाद में मुहल्ले वालों के कहने सुनने पर लाला बैजू ने अनाथ विधवा ब्राह्मणी को अपनी कोठी में ही एक कोठरी दे दी और उस कोठरी में एवज में उन्हे अपना बिना कौड़ी का गुलाम बना लिया। (अमृतलाल नागर)