"साँचा:एक व्यक्तित्व": अवतरणों में अंतर

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         '''[[सी. डी. देशमुख]]''' [[ब्रिटिश शासन]] के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के तीसरे [[भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर|गवर्नर]] थे। इनका जन्म [[महाराष्ट्र]] के [[रायगढ़ ज़िला|रायगढ़ ज़िले]] में 14 जनवरी, 1896 ई. को हुआ। इनके पिता द्वारकानाथ देशमुख एक सम्मानित वकील और माँ भागीरथी बाई एक धार्मिक महिला थी। देशमुख ने 1912 में [[मुम्बई विश्वविद्यालय|बंबई विश्वविद्यालय]] से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। साथ ही इन्होंने [[संस्कृत]] की जगन्नाथ शंकर सेट छात्रवृत्ति भी हासिल की। 1917 में इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से नेचुरल साइंस से, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा भूगर्भ शास्त्र लेकर, ग्रेजुएशन पास किया। अपने विभिन्न योगदानों के लिए इन्हें [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] द्वारा 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' (1957), [[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]] (1959), [[भारत सरकार]] द्वारा [[पद्म विभूषण]] (1975) से सम्मानित किया गया।  [[सी. डी. देशमुख|... और पढ़ें]]
         '''[[अबुलकलाम आज़ाद|मौलाना अबुलकलाम आज़ाद]]''' एक मुस्लिम विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी एवं वरिष्ठ राजनीतिक नेता थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र भारत में वह [[भारत सरकार]] के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से जाना जाता है। [[संगीत नाटक अकादमी]] (1953), [[साहित्य अकादमी]] (1954) और [[ललित कला अकादमी]] (1954) की स्थापना में अहम भूमिका थी। वर्ष 1992 में मरणोपरान्त इन्हें [[भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया। एक इंसान के रूप में मौलाना महान थे, उन्होंने हमेशा सादगी का जीवन पसंद किया। उनमें कठिनाइयों से जूझने के लिए अपार साहस और एक संत जैसी मानवता थी। उनकी मृत्यु के समय उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी और न ही कोई बैंक खाता था। वह अपने वरिष्ठ साथी '[[ख़ान अब्दुलगफ़्फ़ार ख़ाँ]]' और अपने कनिष्ठ '[[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]]' के साथ रहे। [[अबुलकलाम आज़ाद|... और पढ़ें]]
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| [[एक व्यक्तित्व|पिछले लेख]] →
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| [[सी. डी. देशमुख]]
| [[खाशाबा जाधव]]  
| [[खाशाबा जाधव]]  
| [[नज़ीर अकबराबादी]]
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13:35, 5 नवम्बर 2016 का अवतरण

एक व्यक्तित्व

        मौलाना अबुलकलाम आज़ाद एक मुस्लिम विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी एवं वरिष्ठ राजनीतिक नेता थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र भारत में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से जाना जाता है। संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954) और ललित कला अकादमी (1954) की स्थापना में अहम भूमिका थी। वर्ष 1992 में मरणोपरान्त इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। एक इंसान के रूप में मौलाना महान थे, उन्होंने हमेशा सादगी का जीवन पसंद किया। उनमें कठिनाइयों से जूझने के लिए अपार साहस और एक संत जैसी मानवता थी। उनकी मृत्यु के समय उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी और न ही कोई बैंक खाता था। वह अपने वरिष्ठ साथी 'ख़ान अब्दुलगफ़्फ़ार ख़ाँ' और अपने कनिष्ठ 'अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ' के साथ रहे। ... और पढ़ें

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