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डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ग़रीब किन्तु विद्वान ब्राह्मण की दूसरी संतान के रूप में पैदा हुए। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में काम करते थे। इन पर बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था। इनके पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी। राधाकृष्णन का स्थान इन संततियों में दूसरा था। इनके पिता काफी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख नहीं प्राप्त हुआ।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ग़रीब किन्तु विद्वान ब्राह्मण की दूसरी संतान के रूप में पैदा हुए। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में काम करते थे। इन पर बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था। इनके पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी। राधाकृष्णन का स्थान इन संततियों में दूसरा था। इनके पिता काफी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख नहीं प्राप्त हुआ।
==शिक्षा==
==विद्यार्थी जीवन==
वह बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और सन 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। वह प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। इन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे। यद्यपि इनके पिता पुराने विचारों के इंसान थे और उनमें धार्मिक भावनाएं भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिए भेजा। फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद इन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही मेधावी थे।
इन 12 वर्षों के अध्ययन काल में डॉक्टर राधाकृष्णन  ने बाइबिल के महत्वपूर्ण अंश भी याद कर लिए। इसके लिए इन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान प्रदान किया गया। इस उम्र में इन्होंने [[वीर सावरकर]] और [[स्वामी विवेकानन्द]] का भी अध्ययन किया। इन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और इन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई। इसके बाद इन्होंने 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्हें मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी उच्च प्राप्तांकों के कारण मिली। इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने इन्हें छात्रवृत्ति भी दी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और सन 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। वह प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।
 
==मानद उपाधियाँ==
==मानद उपाधियाँ==
डॉ. राधाकृष्णन तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित किये गये। वह भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद के अध्यक्ष भी रहे। भारतीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी उन्हें अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी वह सदैव अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाते रहते थे।
डॉ. राधाकृष्णन तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित किये गये। वह भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद के अध्यक्ष भी रहे। भारतीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी उन्हें अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी वह सदैव अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाते रहते थे।

12:13, 31 अगस्त 2010 का अवतरण

चित्र:S.Radhakrishnan.jpg
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
Sarvepalli Radhakrishnan

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्र्पति बने थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति और भारतीय गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति बने। इन्होंने डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाया। इनका कार्यकाल 13 मई 1962 से 13 1967 तक रहा। इनका नाम भारत के महान राष्ट्रपतियों की प्रथम पंक्ति में सम्मिलित है। इनके व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र इनका सदैव ॠणी रहेगा। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता होने के साथ ही साथ विज्ञानी हिंदू विचारक थे। उनका जन्मदिवस 5 सितम्बर आज भी पूरा राष्ट्र 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाता है। डॉक्टर राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप मे व्ययतीत किए थे। वह एक आदर्श शिक्षक थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ था।

जन्म एंव परिवार

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, जो मद्रास (अब चेन्नई) से लगभग 64 कि॰ मी॰ की दूरी पर स्थित है, 5 सितम्बर 1888 को हुआ था। यह एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे। इनका जन्म स्थान एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा है।[1] डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुरखे पहले 'सर्वपल्ली' नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरूतनी ग्राम की ओर निष्क्रमण किया था। लेकिन इनके पुरखे चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के ग्राम का बोध भी सदैव रहना चाहिए। इसी कारण इनके परिजन अपने नाम के पूर्व 'सर्वपल्ली' धारण करने लगे थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ग़रीब किन्तु विद्वान ब्राह्मण की दूसरी संतान के रूप में पैदा हुए। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में काम करते थे। इन पर बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था। इनके पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी। राधाकृष्णन का स्थान इन संततियों में दूसरा था। इनके पिता काफी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख नहीं प्राप्त हुआ।

विद्यार्थी जीवन

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। इन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे। यद्यपि इनके पिता पुराने विचारों के इंसान थे और उनमें धार्मिक भावनाएं भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिए भेजा। फिर अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद इन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही मेधावी थे।

इन 12 वर्षों के अध्ययन काल में डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्वपूर्ण अंश भी याद कर लिए। इसके लिए इन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान प्रदान किया गया। इस उम्र में इन्होंने वीर सावरकर और स्वामी विवेकानन्द का भी अध्ययन किया। इन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और इन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई। इसके बाद इन्होंने 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्हें मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी उच्च प्राप्तांकों के कारण मिली। इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने इन्हें छात्रवृत्ति भी दी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और सन 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। वह प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।

मानद उपाधियाँ

डॉ. राधाकृष्णन तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित किये गये। वह भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद के अध्यक्ष भी रहे। भारतीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी उन्हें अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी वह सदैव अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाते रहते थे।

जीवन दर्शन

डॉक्टर राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए। ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि 'मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शांति की स्थापना का प्रयत्न हो।' डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धि से पूर्ण व्याख्याओं, आनंददायक अभिव्यक्ति और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वह अपने छात्रों को देते थे। वह जिस भी विषय को पढ़ाते थे, पहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे।

महत्वपूर्ण पद

  • डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की कार्यसमि‍ति के अध्यक्ष भी रहे। यह संस्था 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एक अंग है और पूरे विश्व के लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य करती है।
  • डॉ. राधाकृष्णन सन 1949 से सन 1952 तक रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था।

भारत के उपराष्ट्रपति

सन 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए।

भारत के राष्ट्रपति

13 मई, 1962 में वह भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने थे। राष्ट्रपति बनने के बाद कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए और उन्होंने निवेदन किया था कि वे उनका जन्मदिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा, 'मेरा जन्मदिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।' तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। सन 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में वह देश की सेवा करते रहे।

भारत रत्न

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया।

योगदान

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन का अमूल्य योगदान अविस्मरणीय है व सदैव रहेगा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे। अपने जीवन में अनेक उच्च पदों पर रहते हुए भी वह शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे। उनका कहना था कि यदि शिक्षा सही प्रकार से दी जाए तो समाज से अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है।

निधन

17 अप्रैल 1975 को सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का निधन हुआ। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी।

डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवन भर स्वयं को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया, इसलिए 5 सितंबर सारे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।


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सम्बंधित लिंक

  1. वैसे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि उनका जन्म 20 सितम्बर 1887 को हुआ था। लेकिन सरकारी काग़ज़ातों में अंकित उनकी जन्मतिथि को ही अधिकारिक जन्मतिथि माना जाता है।