"पांचणा बाँध": अवतरणों में अंतर
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सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि सवाई माधोपुर ज़िले में पानी का भीषण संकट झेल रहे 35 गांवों की प्यास बुझाने के लिए वर्ष [[1978]]-[[1979]] में तत्कालीन सरकार ने करौली के पास 5 नदियों के संगम स्थल पर बांध निर्माण को मंजूरी दी थी। पांच नदियों को रोककर बनाए जाने के कारण इस बांध का नाम ‘पांचणा’ पड़ा था। करोड़ों की धनराशि से लगभग एक दशक में बनकर तैयार हुए इस बांध से वर्ष [[1989]] में जब कमाण्ड एरिया के 35 गांवों में नहरों के जरिए पानी पहुंचा तो वहां के किसानों के लिए जैसे वह मौक़ा [[दीपावली]] मनाने का था। गंगापुर एवं नादौती तहसील के मांड क्षेत्र में स्थित इन गांवों में [[कृषि]] की सिंचाई तो दूर, पीने के पानी के लिए भी लोग तरसते थे। | सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि सवाई माधोपुर ज़िले में पानी का भीषण संकट झेल रहे 35 गांवों की प्यास बुझाने के लिए वर्ष [[1978]]-[[1979]] में तत्कालीन सरकार ने करौली के पास 5 नदियों के संगम स्थल पर बांध निर्माण को मंजूरी दी थी। पांच नदियों को रोककर बनाए जाने के कारण इस बांध का नाम ‘पांचणा’ पड़ा था। करोड़ों की धनराशि से लगभग एक दशक में बनकर तैयार हुए इस बांध से वर्ष [[1989]] में जब कमाण्ड एरिया के 35 गांवों में नहरों के जरिए पानी पहुंचा तो वहां के किसानों के लिए जैसे वह मौक़ा [[दीपावली]] मनाने का था। गंगापुर एवं नादौती तहसील के मांड क्षेत्र में स्थित इन गांवों में [[कृषि]] की सिंचाई तो दूर, पीने के पानी के लिए भी लोग तरसते थे। | ||
इस बड़े भू-भाग में भू-जल का नितांत अभाव है। यदि कहीं नलकूप खुदाई से पानी निकल भी आता है तो वह इस कदर तेलिया, कड़वा और खारा होता है कि उसे पीना तो दूर, नहाने और कपड़े धोने के काम भी नहीं लिया जा सकता। यही वजह है कि वर्ष 1989 में जब पांचणा बांध से नहरों के जरिए इस सूखी धरती पर पानी जैसे ही पड़ा, लगा कि लोगों को जैसे अमृत धारा मिल गई हो। पांचणा के पानी से देखते ही देखते महज एक दशक में इन गांवों की सूरत ही बदल गई। भरपूर पानी मिलने के बाद यहां के किसान वर्षों से बंजर पड़ी अपनी भूमि में हर साल दो से तीन फसलें बोने लगे थे। पांचणा के पानी ने इन गांवों में आर्थिक के साथ सामाजिक तौर पर भी लोगों के स्तर को | इस बड़े भू-भाग में भू-जल का नितांत अभाव है। यदि कहीं नलकूप खुदाई से पानी निकल भी आता है तो वह इस कदर तेलिया, कड़वा और खारा होता है कि उसे पीना तो दूर, नहाने और कपड़े धोने के काम भी नहीं लिया जा सकता। यही वजह है कि वर्ष 1989 में जब पांचणा बांध से नहरों के जरिए इस सूखी धरती पर पानी जैसे ही पड़ा, लगा कि लोगों को जैसे अमृत धारा मिल गई हो। पांचणा के पानी से देखते ही देखते महज एक दशक में इन गांवों की सूरत ही बदल गई। भरपूर पानी मिलने के बाद यहां के किसान वर्षों से बंजर पड़ी अपनी भूमि में हर साल दो से तीन फसलें बोने लगे थे। पांचणा के पानी ने इन गांवों में आर्थिक के साथ सामाजिक तौर पर भी लोगों के स्तर को काफ़ी बढ़ा दिया। यहाँ यह विशेषतौर पर उल्लेखनीय है कि- "पहले भीषण जल संकट के चलते दूसरे इलाके के सम्पन्न और सरसब्ज किसान मांड क्षेत्र में अपनी बेटी का [[विवाह]] करना पसंद नहीं करते थे। इस कारण यहां के अधिकांश युवा कुंवारे रह जाते थे। किन्तु पांचणा बांध के पानी ने मांड क्षेत्र में [[विवाह]] से जुड़ी ग्रामीणों की चिंता को पूरी तरह दूर कर दिया। | ||
==गुर्जर-मीणा विवाद== | ==गुर्जर-मीणा विवाद== | ||
लगभग 16 साल पांचणा बाँध के पानी का मांड क्षेत्र के लोगों ने खूब सुख भोगा। सारा इलाका हरियाली से लहलहा उठा। बदहाल जिन्दगी जी रहे किसानों के घर खुशहाली आ गई, लेकिन वर्ष [[2006]] में अचानक इनकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई और यहां के लोग फिर से वर्ष [[1989]] से पहले जैसे हालात में पहुंच गए। इस इलाके में हर तरफ फैली बदहाली को ख़त्म करने के लिए हालांकि सरकार ने [[चम्बल नदी]] का पानी मांड क्षेत्र में पहुंचाने की योजना मंजूर कर पाइप लाइन बिछाने का कार्य आरम्भ कर किया। अब इस योजना की ओर 35 गांवों के किसान टकटकी लगाए देख रहे हैं। वर्ष 2006 में ही [[राजस्थान]] में [[गुर्जर]] आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी सबसे पहली गाज 1013 एम.सी.एफ.टी. भराव क्षमता वाले इसी पांचणा बांध पर गिरी। इस आंदोलन से उस वक्त राजस्थान तो जला ही, समूचा [[उत्तर भारत]] भी आंदोलन की आग से झुलस गया।<ref>{{cite web |url=http://hi.naradanews.com/2016/05/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A5%80-10-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A6-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE/ |title= दस साल से कैद पांचना बांध का पानी|accessmonthday=07 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hi.naradanews.com |language= हिन्दी}}</ref> | लगभग 16 साल पांचणा बाँध के पानी का मांड क्षेत्र के लोगों ने खूब सुख भोगा। सारा इलाका हरियाली से लहलहा उठा। बदहाल जिन्दगी जी रहे किसानों के घर खुशहाली आ गई, लेकिन वर्ष [[2006]] में अचानक इनकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई और यहां के लोग फिर से वर्ष [[1989]] से पहले जैसे हालात में पहुंच गए। इस इलाके में हर तरफ फैली बदहाली को ख़त्म करने के लिए हालांकि सरकार ने [[चम्बल नदी]] का पानी मांड क्षेत्र में पहुंचाने की योजना मंजूर कर पाइप लाइन बिछाने का कार्य आरम्भ कर किया। अब इस योजना की ओर 35 गांवों के किसान टकटकी लगाए देख रहे हैं। वर्ष 2006 में ही [[राजस्थान]] में [[गुर्जर]] आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी सबसे पहली गाज 1013 एम.सी.एफ.टी. भराव क्षमता वाले इसी पांचणा बांध पर गिरी। इस आंदोलन से उस वक्त राजस्थान तो जला ही, समूचा [[उत्तर भारत]] भी आंदोलन की आग से झुलस गया।<ref>{{cite web |url=http://hi.naradanews.com/2016/05/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A5%80-10-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A6-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE/ |title= दस साल से कैद पांचना बांध का पानी|accessmonthday=07 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hi.naradanews.com |language= हिन्दी}}</ref> |
11:02, 5 जुलाई 2017 का अवतरण
पांचणा बाँध अथवा पांचना बाँध राजस्थान के करौली ज़िले में गुड़ला नामक गाँव में स्थित है। यह बालू मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध में भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, माची तथा भैसावर- ये पांच नदियां आकर गिरती हैं। इसलिए इसे पांचणा बांध कहते हैं। यह मिट्टी से निर्मित राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है। यह अमेरिका के आर्थिक संयोग से बनाया गया है। इससे करौली, सवाई माधोपुर, बयाना (भरतपुर) में जलापूर्ति होती है।[1]
इतिहास
सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि सवाई माधोपुर ज़िले में पानी का भीषण संकट झेल रहे 35 गांवों की प्यास बुझाने के लिए वर्ष 1978-1979 में तत्कालीन सरकार ने करौली के पास 5 नदियों के संगम स्थल पर बांध निर्माण को मंजूरी दी थी। पांच नदियों को रोककर बनाए जाने के कारण इस बांध का नाम ‘पांचणा’ पड़ा था। करोड़ों की धनराशि से लगभग एक दशक में बनकर तैयार हुए इस बांध से वर्ष 1989 में जब कमाण्ड एरिया के 35 गांवों में नहरों के जरिए पानी पहुंचा तो वहां के किसानों के लिए जैसे वह मौक़ा दीपावली मनाने का था। गंगापुर एवं नादौती तहसील के मांड क्षेत्र में स्थित इन गांवों में कृषि की सिंचाई तो दूर, पीने के पानी के लिए भी लोग तरसते थे।
इस बड़े भू-भाग में भू-जल का नितांत अभाव है। यदि कहीं नलकूप खुदाई से पानी निकल भी आता है तो वह इस कदर तेलिया, कड़वा और खारा होता है कि उसे पीना तो दूर, नहाने और कपड़े धोने के काम भी नहीं लिया जा सकता। यही वजह है कि वर्ष 1989 में जब पांचणा बांध से नहरों के जरिए इस सूखी धरती पर पानी जैसे ही पड़ा, लगा कि लोगों को जैसे अमृत धारा मिल गई हो। पांचणा के पानी से देखते ही देखते महज एक दशक में इन गांवों की सूरत ही बदल गई। भरपूर पानी मिलने के बाद यहां के किसान वर्षों से बंजर पड़ी अपनी भूमि में हर साल दो से तीन फसलें बोने लगे थे। पांचणा के पानी ने इन गांवों में आर्थिक के साथ सामाजिक तौर पर भी लोगों के स्तर को काफ़ी बढ़ा दिया। यहाँ यह विशेषतौर पर उल्लेखनीय है कि- "पहले भीषण जल संकट के चलते दूसरे इलाके के सम्पन्न और सरसब्ज किसान मांड क्षेत्र में अपनी बेटी का विवाह करना पसंद नहीं करते थे। इस कारण यहां के अधिकांश युवा कुंवारे रह जाते थे। किन्तु पांचणा बांध के पानी ने मांड क्षेत्र में विवाह से जुड़ी ग्रामीणों की चिंता को पूरी तरह दूर कर दिया।
गुर्जर-मीणा विवाद
लगभग 16 साल पांचणा बाँध के पानी का मांड क्षेत्र के लोगों ने खूब सुख भोगा। सारा इलाका हरियाली से लहलहा उठा। बदहाल जिन्दगी जी रहे किसानों के घर खुशहाली आ गई, लेकिन वर्ष 2006 में अचानक इनकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई और यहां के लोग फिर से वर्ष 1989 से पहले जैसे हालात में पहुंच गए। इस इलाके में हर तरफ फैली बदहाली को ख़त्म करने के लिए हालांकि सरकार ने चम्बल नदी का पानी मांड क्षेत्र में पहुंचाने की योजना मंजूर कर पाइप लाइन बिछाने का कार्य आरम्भ कर किया। अब इस योजना की ओर 35 गांवों के किसान टकटकी लगाए देख रहे हैं। वर्ष 2006 में ही राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी सबसे पहली गाज 1013 एम.सी.एफ.टी. भराव क्षमता वाले इसी पांचणा बांध पर गिरी। इस आंदोलन से उस वक्त राजस्थान तो जला ही, समूचा उत्तर भारत भी आंदोलन की आग से झुलस गया।[2]
उस वक़्त कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में गुर्जर समाज के लोग अनुसूचित जनजाति वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहे थे। इसी के चलते राजस्थान में गुर्जर और पहले से अनुसूचित जनजाति में शामिल मीणा जाति के बीच कई जगह खूनी संघर्ष हुआ। दौसा ज़िले के लालसोट में मीणों के सशस्त्र हमले में गुर्जर जाति के छह लोग मारे गए और इसी से गुस्साए गुर्जरों ने पांचणा के पानी पर पहरा बिठा दिया। उल्लेखनीय है कि जहां पांचणा बांध बना हुआ है, वहां गुर्जरों के 12 गाँव होने के कारण गुर्जर जाति का बाहुल्य है। जबकि पांचणा के पानी से खुशहाल हुए कमाण्ड क्षेत्र के सभी 35 गांवों में मीणा जाति का बाहुल्य है। गौरतलब है कि गुर्जर जाति के लोगों को वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2006 यानि 16 साल तक नहरों के जरिए कमाण्ड क्षेत्र में पानी पहुंचाने पर कोई आपत्ति नहीं थी। बांध का निर्माण कार्य दस साल चला, तब भी वहां बसे गुर्जरों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। जिनकी भूमि बांध के डूब क्षेत्र में आई, वे सभी मुआवजा लेकर संतुष्ट थे। लेकिन गुर्जर आंदोलन के दौरान मीणा जाति के लोगों से हुए टकराव के बाद बांध के आसपास 12 गांवों में बसे गुर्जरों का नजरिया ही बदल गया।
गुर्जरों ने पांचणा के पानी पर पहला हक अपना बताते हुए न सिर्फ बांध पर कब्जा कर लिया, बल्कि नहरों में जलापूर्ति भी ठप्प कर डाली। सरकार ने कई बार अपने मंत्री और आला अधिकारी गुर्जरों से वार्ता के लिए भेजे, लेकिन जिद पर अडे़ गुर्जर पांचणा के पानी की रिहाई के लिए राजी नहीं हुए। सरकार ने गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग में पृथक से पांच फीसदी आरक्षण देने के साथ-साथ पांचणा बांध के पानी पर गुर्जरों का पहला हक मानते हुए लिफ्ट योजना के लिए दस करोड़ की धनराशि भी मंजूर कर दी। गुर्जरों के पांचणा के आसपास बसे बारह गांवों को नहरों के जरिए पानी पहुंचाने के उद्देश्य से बनाई गई इस योजना का काम द्रुत गति से चल रहा है, लेकिन गुर्जर समाज के लोग आज भी पांचणा के कैद पानी की रिहाई के लिए राजी नहीं हैं। वहीं कमाण्ड क्षेत्र की तमाम नहरें बीते एक दशक से उपयोग में नहीं आने के कारण जर्जर हो चुकी हैं। उनमें उग आई खरपतवार वनस्पति और झाड़ियों ने नहरों को पूरी तरह बदहाल कर दिया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ (हिन्दी) rajasthangyan.com। अभिगमन तिथि: 07 फ़रवरी, 2017।
- ↑ दस साल से कैद पांचना बांध का पानी (हिन्दी) hi.naradanews.com। अभिगमन तिथि: 07 फ़रवरी, 2017।