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*[[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]]; राजमार्तण्ड (1396), ऐसा आया है कि नारियाँ हाथ में पंखे एवं तीर लेकर अरण्य (वन) में घूमती हैं। | *[[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]]; राजमार्तण्ड (1396), ऐसा आया है कि नारियाँ हाथ में पंखे एवं तीर लेकर अरण्य (वन) में घूमती हैं। | ||
* गदाधरपति <ref>(कालसार, 83)</ref> में इसे स्कन्दषष्ठी भी कहा गया है। | * गदाधरपति <ref>(कालसार, 83)</ref> में इसे स्कन्दषष्ठी भी कहा गया है। | ||
* तिथिव्रत; [[विन्ध्यवासिनी]] एवं स्कन्द की | * तिथिव्रत; [[विन्ध्यवासिनी]] एवं स्कन्द की पूजा। <ref>कृत्यरत्नाकर (185); वर्षक्रियाकौमुदी (279); कृत्यतत्त्व (430-431)</ref> | ||
*अरण्यद्वादशी का व्रत करने वाले अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कमल-नाल, [[कन्दमूल]] एवं [[फल|फलों]] का सेवन करते हैं। | *अरण्यद्वादशी का व्रत करने वाले अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कमल-नाल, [[कन्दमूल]] एवं [[फल|फलों]] का सेवन करते हैं। | ||
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08:39, 6 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी; राजमार्तण्ड (1396), ऐसा आया है कि नारियाँ हाथ में पंखे एवं तीर लेकर अरण्य (वन) में घूमती हैं।
- गदाधरपति [1] में इसे स्कन्दषष्ठी भी कहा गया है।
- तिथिव्रत; विन्ध्यवासिनी एवं स्कन्द की पूजा। [2]
- अरण्यद्वादशी का व्रत करने वाले अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कमल-नाल, कन्दमूल एवं फलों का सेवन करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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