शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) छो (अह का नाम बदलकर अह व्रत कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
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05:44, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत एक दिन के लिए करना चाहिए।
- दिन के विभाजन के विषय में कई मत हैं, जैसे- द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी तथा पूर्णिमा आदि भागों में बाँटा गया है।
- मनु ने अह को पूर्वाह्नाँ या अपराह्नाँ [1] नामक दो भागों में बाँटा है।
- अन्य मत के अनुसार तीन भाग इस प्रकार हैं- पूर्वाह्नाँ, मध्याह्नाँ तथा अपराह्नाँ।
- गोभिल [2] ने चार भाग बताये हैं, जैसे- पूर्वाह्नाँ (1½ प्रहर), मध्याह्न (एक प्रहर), अपराह्न (तीसरे प्रहर के अन्त होने तक) तथा सांयह्न (दिन के अन्त तक)।
- ॠग्वेद [3] में पाँच भागों के तीन बताये हैं, यथा- प्रातः, संगव, मध्यन्दिन।
- कौटिल्य [4], दक्ष एवं कात्यायन ने दिन के आठ भागों का वर्णन किया है। [5]
- दिन में 15 एवं रात्रि में 15 मुहूर्त होते हैं।
- बृहद्योगयात्रा [6] में 15 मुहूर्तों का उल्लेख है।
- विषुवत रेखा को छोड़कर एक ही स्थान पर वर्ष की विभिन्न ऋतुओं में कुछ सीमा तक मुहूर्तों की अवधि विभिन्न होती है, क्योंकि रात एवं दिन विभिन्न स्थानों पर बड़े या छोटे होते हैं।
- इसी प्रकार पूर्वाह्नाँ या प्रातःकाल की अवधि भी 7½ मुहूर्त की होगी यदि दिन को दो भागों में बाँट दिया जाए, किन्तु यदि दिन को पाँच भागों में बाँटा जाए तो पूर्वाह्नाँ या प्रातः में केवल तीन मुहूर्त होंगें
- कालनिर्णय [7] में आया है कि पाँच भागों का विभाजन वैदिक एवं स्मृतिग्रन्थों में प्रचलित है। [8]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लिंक
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