"भौम व्रत": अवतरणों में अंतर
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है। | |||
*[[स्वाति नक्षत्र]] वाले [[मंगलवार]] को नक्त विधि से भोजन कर; सात बार ऐसा किया जाता है। | *[[स्वाति नक्षत्र]] वाले [[मंगलवार]] को नक्त विधि से भोजन कर; सात बार ऐसा किया जाता है। | ||
*एक ताम्र पत्र में लाल वस्त्र से आवृत कर के [[मंगल देवता|मंगल]] की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है। | *एक ताम्र पत्र में लाल वस्त्र से आवृत कर के [[मंगल देवता|मंगल]] की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है। | ||
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*[[मंगलवार]] को मंगल पूजा करनी चाहिए। | *[[मंगलवार]] को मंगल पूजा करनी चाहिए। | ||
*प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं। | *प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं। | ||
*ऐसी मान्यता है कि मंगल का जन्म [[उज्जयिनी]] में [[भारद्वाज]] कुल में हुआ था और वह मेढ़ा (मेष) की सवारी करता है। | |||
*यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 568-574, पद्मपुराण से उद्धरण)</ref>, <ref>वर्षकृत्यदीपक (443-451) में भौमव्रत तथा व्रतपूजा का विस्तृत उल्लेख है</ref>। | *यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 568-574, पद्मपुराण से उद्धरण)</ref>, <ref>वर्षकृत्यदीपक (443-451) में भौमव्रत तथा व्रतपूजा का विस्तृत उल्लेख है</ref>। | ||
07:19, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- स्वाति नक्षत्र वाले मंगलवार को नक्त विधि से भोजन कर; सात बार ऐसा किया जाता है।
- एक ताम्र पत्र में लाल वस्त्र से आवृत कर के मंगल की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है।
- पुष्पों एवं नैवेद्य का अपर्ण तथा 'यद्यपि तुम कुजन्मा हो' तथापि विज्ञ लोग तुम्हें मंगल कहते हैं' नामक मंत्र के साथ किसी ब्राह्मण गृहस्थ को दान करना चाहिए।
- 'कुजन्मा' में श्लेष अर्थात इसके भिन्न अर्थ हैः
- किसी अशुभ दिन में उत्पन्न
- पृथ्वी से उत्पन्न।
- मंगल का रंग लाल है, अतः ताम्र, लाल एवं कुंकुम का प्रयोग होता है; [1];
- मंगलवार को मंगल पूजा करनी चाहिए।
- प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि मंगल का जन्म उज्जयिनी में भारद्वाज कुल में हुआ था और वह मेढ़ा (मेष) की सवारी करता है।
- यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; [2], [3]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लिंक
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