"रथ सप्तमी": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*यह व्रत [[माघ]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] पर करना चाहिए। इस व्रत में [[षष्ठी]] की रात्रि को संकल्प एवं नियमों का पालन करना चाहिए, सप्तमी को उपवास करके  कर्ता को सोने या चाँदी का अश्व एवं सारथी से युक्त एक रथ बनवाकर, कुंकुम, [[भारत के पुष्प|पुष्पों]] आदि से रथ की पूजा करनी चाहिए। रथ में [[सूर्य देवता|सूर्य]] की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है। रथ एवं सारथी के साथ सूर्य पूजा तथा मंत्रोच्चारण करना चाहिए। उसके साथ मनोकामना की अभिव्यक्ति, नृत्य एवं संगीत से जागर (जागरण) करना चाहिए। और कर्ता की पलकें बन्द नहीं होनी चाहिए, अर्थात् वह उस रात्रि नहीं सोता है। दूसरे दिन प्रात: स्नान करके गुरु को रथ का दान करना चाहिए। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 652-658, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>


*यह व्रत [[माघ]] [[शुक्ल पक्ष]] की 7 पर; तिथि; सूर्य; षष्ठी की रात्रि को संकल्प एवं नियमों का पालन; सप्तमी को उपवास; कर्ता को सोने या चाँदी का अश्व एवं सारथी से युक्त एक रथ बनवाना पड़ता है तथा कुंकुम, पुष्पों आदि से रथ की पूजा करनी पड़ती है; रथ में सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है; रथ एवं सारथी के साथ सूर्य पूजा तथा मंत्रोच्चारण और उसके साथ मनोकामना की अभिव्यक्ति; नृत्य एवं संगीत से जागर, कर्ता का पलकें बन्द नहीं करनी चाहिए, अर्थात् वह उस रात्रि नहीं सोता है; दूसरे दिन प्रात: स्नान, दान और गुरु को रथ का दान; हेमाद्रि (व्रत0 1, 652-658, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)। यहाँ पर कृष्ण ने युधिष्ठर से काम्बोज के राजा यशोधर्मा की गाथा कही है, कि किस प्रकार इस व्रत के सम्पादन से उसकी वृद्धावस्था में उत्पन्न पुत्र, जो कि सभी रोगों से विकल था, रोगमुक्त हो गया तथा चक्रवर्ती राजा हो गया। कालविवेक (101); हेमाद्रि (काल 624) ने मत्स्यपुराण का उद्धरण देते हुए कहा है कि मन्वन्तर के आरम्भ में इस तिथि पर सूर्य को रथ प्राप्त हुआ, अत: यह तिथि रथसप्तमी के नाम से विख्यात है। इसे महासप्तमी भी कहा जाता है। हेमाद्रि (काल0, 624)। देखिए तिथितत्व (39); पुरुषार्थचिन्तामणि (104-105); व्रतराज (249-253)। देखिए इंण्डियन एण्टीक्वेरी (जिल्द 11, पृ0 112), राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामनगढ़ दान पत्र, शके सम्वत् 675 (753-54 ई0) जहाँ 'माघमास रथसप्तमीम्' आया है। रथसप्तमी माहात्म्य के लिए देखिए भविष्यपुराण (1|50)।
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05:29, 8 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत माघ में शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर करना चाहिए। इस व्रत में षष्ठी की रात्रि को संकल्प एवं नियमों का पालन करना चाहिए, सप्तमी को उपवास करके कर्ता को सोने या चाँदी का अश्व एवं सारथी से युक्त एक रथ बनवाकर, कुंकुम, पुष्पों आदि से रथ की पूजा करनी चाहिए। रथ में सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा रखी जाती है। रथ एवं सारथी के साथ सूर्य पूजा तथा मंत्रोच्चारण करना चाहिए। उसके साथ मनोकामना की अभिव्यक्ति, नृत्य एवं संगीत से जागर (जागरण) करना चाहिए। और कर्ता की पलकें बन्द नहीं होनी चाहिए, अर्थात् वह उस रात्रि नहीं सोता है। दूसरे दिन प्रात: स्नान करके गुरु को रथ का दान करना चाहिए। [1]
  • कृष्ण ने युधिष्ठर से काम्बोज के राजा यशोधर्मा की गाथा कही है, कि किस प्रकार इस व्रत के सम्पादन से उसकी वृद्धावस्था में उत्पन्न पुत्र, जो कि सभी रोगों से विकल था, रोगमुक्त हो गया तथा चक्रवर्ती राजा हो गया। कालविवेक, हेमाद्रि [2] में मत्स्यपुराण का उद्धरण देते हुए कहा है कि मन्वन्तर के आरम्भ में इस तिथि पर सूर्य को रथ प्राप्त हुआ था। यह तिथि रथसप्तमी के नाम से विख्यात है। इसे महासप्तमी भी कहा जाता है। [3]
  • राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामनगढ़ दान पत्र [4] है, जहाँ 'माघमास रथसप्तमीम्' आया है। रथसप्तमी माहात्म्य के लिए [5] देखिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 652-658, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।
  2. कालविवेक(101), हेमाद्रि(काल 624)
  3. हेमाद्रि (काल, 624), तिथितत्व (39), पुरुषार्थचिन्तामणि (104-105), व्रतराज (249-253), इंण्डियन एण्टीक्वेरी (जिल्द 11, पृष्ठ 112)
  4. शके सम्वत् 675 (753-54 ई.)
  5. भविष्यपुराण (1|50)।

संबंधित लिंक

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