"अर्बुद पर्वत": अवतरणों में अंतर
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'''अर्बुद''' पर्वत महाकाव्य महाभारत में वर्णित एक पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत दक्षिणी [[राजस्थान]] , भारत की पहचान है। | '''अर्बुद''' पर्वत [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में वर्णित एक [[पर्वत|पर्वत श्रृंखला]] है। यह पर्वत दक्षिणी [[राजस्थान]] में, [[भारत]] की पहचान है। | ||
* [[महाभारत]] में, अर्बुद पर्वत की गणना तीर्थस्थलों में की गई है। अर्बुद निवासियों का उल्लेख [[विष्णुपुराण]] <ref>विष्णुपुराण 2,13,16</ref>में है- | * [[महाभारत]] में, अर्बुद पर्वत की गणना [[तीर्थस्थल|तीर्थस्थलों]] में की गई है। अर्बुद निवासियों का उल्लेख [[विष्णुपुराण]]<ref>विष्णुपुराण 2,13,16</ref> में है- | ||
<blockquote>'पुंड्राः कलिगमागधा दक्षिणाद्याश्च सर्वशः तथापरांताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः'।</blockquote> | <blockquote>'पुंड्राः कलिगमागधा दक्षिणाद्याश्च सर्वशः तथापरांताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः'।</blockquote> | ||
* [[चंदबरदाई]] लिखित [[पृथ्वीराजरासो]] में वर्णित है कि [[अग्निकुल]] के चार | * [[चंदबरदाई]] लिखित [[पृथ्वीराजरासो]] में वर्णित है कि [[अग्निकुल]] के चार [[राजपूत|राजपूत वंश]]- '''पवार, परिहार, चौहान,''' और '''[[चालुक्य]]''' [[आबू पर्वत|आबू पहाड]] पर किये गये एक [[यज्ञ]] द्वारा उत्पन्न हुए थे। | ||
* क्रूक (crook) के मत में यह यज्ञ विदेशी जातियों को | * क्रूक (crook) के मत में यह यज्ञ विदेशी जातियों को [[क्षत्रिय|क्षत्रिय वर्ण]] में सम्मिलित करने के लिये किया गया होगा।<ref> ( टॉड रचित राजस्थान)।</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=40|url=}}</ref> | ||
11:01, 15 मई 2018 का अवतरण
अर्बुद पर्वत महाकाव्य महाभारत में वर्णित एक पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत दक्षिणी राजस्थान में, भारत की पहचान है।
- महाभारत में, अर्बुद पर्वत की गणना तीर्थस्थलों में की गई है। अर्बुद निवासियों का उल्लेख विष्णुपुराण[1] में है-
'पुंड्राः कलिगमागधा दक्षिणाद्याश्च सर्वशः तथापरांताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः'।
- चंदबरदाई लिखित पृथ्वीराजरासो में वर्णित है कि अग्निकुल के चार राजपूत वंश- पवार, परिहार, चौहान, और चालुक्य आबू पहाड पर किये गये एक यज्ञ द्वारा उत्पन्न हुए थे।
- क्रूक (crook) के मत में यह यज्ञ विदेशी जातियों को क्षत्रिय वर्ण में सम्मिलित करने के लिये किया गया होगा।[2][3]
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