"दौलताबाद क़िला": अवतरणों में अंतर
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'''दौलताबाद का क़िला''' [[औरंगाबाद महाराष्ट्र|औरंगाबाद]], [[महाराष्ट्र]] में स्थित है। यह [[मध्यकालीन भारत]] का सबसे ताकतवर क़िला था। दौलताबाद औरंगाबाद से 14 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक 14वीं सदी का शहर है। शुरू में इस क़िले का नाम देवगिरी था, जिसका निर्माण कैलाश गुफ़ा का निर्माण करने वाले [[राष्ट्रकूट | {{सूचना बक्सा पर्यटन | ||
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|क्या देखें=चांद मीनार, चीनी महल, बारादरी, शाही निवास, मस्जिद आदि। | |||
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'''दौलताबाद का क़िला''' [[औरंगाबाद महाराष्ट्र|औरंगाबाद]], [[महाराष्ट्र]] में स्थित है। यह [[मध्यकालीन भारत]] का सबसे ताकतवर क़िला था। दौलताबाद औरंगाबाद से 14 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक 14वीं सदी का शहर है। शुरू में इस क़िले का नाम देवगिरी था, जिसका निर्माण कैलाश गुफ़ा का निर्माण करने वाले [[राष्ट्रकूट]] शासक ने किया था। अपने निर्माण वर्ष (1187-1318 ई.) से लेकर 1762 तक इस क़िले ने कई शासक देखे। क़िले पर [[यादव वंश|यादव]], [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]], [[तुग़लक़ वंश]] ने शासन किया। [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने [[देवगिरि]] को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया था। आज दौलताबाद का नाम [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है। दौलताबाद का क़िला मध्ययुगीन दक्कन का सबसे शक्तिशाली क़िला था। यही एक मात्र एक ऐसा क़िला है, जिसे कभी कोई जीत नहीं सका। | |||
==स्थिति तथा इतिहास== | ==स्थिति तथा इतिहास== | ||
दौलताबाद (19° 57’ उत्तर; 75°° 15’ पूर्व) औरंगाबाद ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पश्चिम में 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा गुफाओं]] के रास्ते के बीच में है। 'दौलताबाद या लक्ष्मी का निवास’ नाम मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा तब दिया गया था, जब सन् 1327 ई. में उसने अपनी राजधानी यहां बसाई थी। प्राचीन नाम देवगिरि या देओगिरि का अर्थ देवगिरि के यादवों के काल में 'देवताओं की पहाड़ी’ था। आरम्भ में यादव आधुनिक धूलिया और नासिक ज़िलों के क्षेत्र पर कल्याणी के चालुक्यों के अधीन शासन कर रहे थे और उनकी राजधानी चंद्रादित्यपुर (आधुनिक चंदौर, नासिक ज़िला) थी। एक शक्तिशाली यादव शासक, भिल्लम ने [[होयसाल वंश]], परमारों और चालुक्यों के विरूद्ध विजयी अभियानों का नेतृत्व किया और देवगिरि नगर की स्थापना की और अपनी राजधानी यहां बनाई। उसके बाद से उत्तरवर्ती यादव शासकों ने अपनी राजधानी यहीं बनाए रखी।<ref>{{cite web |url=http://asi.nic.in/asi_hn_monu_tktd_maharashtra_daulatabad.asp |title=टिकट द्वारा प्रवेश वाले स्मारक-महाराष्ट्र |accessmonthday=19 मई |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=asi.nic.in |language=हिंदी }}</ref> | दौलताबाद (19° 57’ उत्तर; 75°° 15’ पूर्व) औरंगाबाद ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पश्चिम में 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा गुफाओं]] के रास्ते के बीच में है। 'दौलताबाद या लक्ष्मी का निवास’ नाम मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा तब दिया गया था, जब सन् 1327 ई. में उसने अपनी राजधानी यहां बसाई थी। प्राचीन नाम देवगिरि या देओगिरि का अर्थ देवगिरि के यादवों के काल में 'देवताओं की पहाड़ी’ था। आरम्भ में यादव आधुनिक धूलिया और नासिक ज़िलों के क्षेत्र पर कल्याणी के चालुक्यों के अधीन शासन कर रहे थे और उनकी राजधानी चंद्रादित्यपुर (आधुनिक चंदौर, नासिक ज़िला) थी। एक शक्तिशाली यादव शासक, भिल्लम ने [[होयसाल वंश]], परमारों और चालुक्यों के विरूद्ध विजयी अभियानों का नेतृत्व किया और देवगिरि नगर की स्थापना की और अपनी राजधानी यहां बनाई। उसके बाद से उत्तरवर्ती यादव शासकों ने अपनी राजधानी यहीं बनाए रखी।<ref>{{cite web |url=http://asi.nic.in/asi_hn_monu_tktd_maharashtra_daulatabad.asp |title=टिकट द्वारा प्रवेश वाले स्मारक-महाराष्ट्र |accessmonthday=19 मई |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=asi.nic.in |language=हिंदी }}</ref> | ||
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10:29, 19 मई 2018 के समय का अवतरण
दौलताबाद क़िला
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राज्य | महाराष्ट्र |
ज़िला | औरंगाबाद |
निर्माता | राष्ट्रकूट शासक |
निर्माण काल | 1187-1318 ई. |
भौगोलिक स्थिति | 19° 57’ उत्तर; 75°° 15’ पूर्व |
प्रसिद्धि | ऐतिहासिक स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
कैसे पहुँचें | दौलताबाद हवाई जहाज, ट्रेन और सड़क के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। |
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन | |
औरंगाबाद | |
क्या देखें | चांद मीनार, चीनी महल, बारादरी, शाही निवास, मस्जिद आदि। |
अन्य जानकारी | दौलताबाद का क़िला मध्ययुगीन दक्कन का सबसे शक्तिशाली क़िला था। यही एक मात्र एक ऐसा क़िला है, जिसे कभी कोई जीत नहीं सका। |
दौलताबाद का क़िला औरंगाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। यह मध्यकालीन भारत का सबसे ताकतवर क़िला था। दौलताबाद औरंगाबाद से 14 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक 14वीं सदी का शहर है। शुरू में इस क़िले का नाम देवगिरी था, जिसका निर्माण कैलाश गुफ़ा का निर्माण करने वाले राष्ट्रकूट शासक ने किया था। अपने निर्माण वर्ष (1187-1318 ई.) से लेकर 1762 तक इस क़िले ने कई शासक देखे। क़िले पर यादव, ख़िलजी, तुग़लक़ वंश ने शासन किया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने देवगिरि को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया था। आज दौलताबाद का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है। दौलताबाद का क़िला मध्ययुगीन दक्कन का सबसे शक्तिशाली क़िला था। यही एक मात्र एक ऐसा क़िला है, जिसे कभी कोई जीत नहीं सका।
स्थिति तथा इतिहास
दौलताबाद (19° 57’ उत्तर; 75°° 15’ पूर्व) औरंगाबाद ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पश्चिम में 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और एलोरा गुफाओं के रास्ते के बीच में है। 'दौलताबाद या लक्ष्मी का निवास’ नाम मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा तब दिया गया था, जब सन् 1327 ई. में उसने अपनी राजधानी यहां बसाई थी। प्राचीन नाम देवगिरि या देओगिरि का अर्थ देवगिरि के यादवों के काल में 'देवताओं की पहाड़ी’ था। आरम्भ में यादव आधुनिक धूलिया और नासिक ज़िलों के क्षेत्र पर कल्याणी के चालुक्यों के अधीन शासन कर रहे थे और उनकी राजधानी चंद्रादित्यपुर (आधुनिक चंदौर, नासिक ज़िला) थी। एक शक्तिशाली यादव शासक, भिल्लम ने होयसाल वंश, परमारों और चालुक्यों के विरूद्ध विजयी अभियानों का नेतृत्व किया और देवगिरि नगर की स्थापना की और अपनी राजधानी यहां बनाई। उसके बाद से उत्तरवर्ती यादव शासकों ने अपनी राजधानी यहीं बनाए रखी।[1]
अलाउद्दीन ख़िलजी का आधिपत्य
कृष्णा के पुत्र रामचंद्र देव के शासन काल के दौरान अलाउद्दीन ख़िलजी ने सन् 1296 में देवगिरि पर हमला किया और उस पर कब्जा कर लिया। तथापि रामचंद्रदेव को एक मातहत के रूप में यहां से शासन करने की अनुमति थी। बाद में मलिक काफूर ने क्रमश: सन् 1306-07 और 1312 ई. में रामचंद्र देव और उसके पुत्र शंकर देव के विरूद्ध किए गए दो हमलों का नेतृत्व किया। सन् 1312 वाले हमले में शंकर देव मारा गया। मलिक काफूर द्वारा हरपालदेव को सिंहासन पर बिठाया गया, जिसने बाद में स्वतंत्रता हासिल कर ली। इसके परिणामस्वरूप देवगिरि के खिलाफ कुतुबुद्दीन मुबारकशाह ख़िलजी ने एक और हमला किया और सफल हुआ और यह किला दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया। दिल्ली में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ख़िलजी वंश का उत्तराधिकारी बना और उसने देवगिरि का पुन: नामकरण दौलताबाद कर दिया और इसके अजेय क़िले को देखते हुए उसने अपनी राजधानी सन् 1328 में दिल्ली से यहां स्थानांतरित कर ली। इसके बहुत गंभीर परिणाम हुए और उसे पुन: अपनी राजधानी स्थानांतरित करके वापस दिल्ली ले जानी पड़ी।
विभिन्न शासकों का शासन
यह क्षेत्र और यहां का क़िला सन् 1347 में हसन गंगू के अधीन बहमनी शासकों के हाथों में और फिर सन् 1499 ई. में अहमदनगर के निजामशाहियों के हाथ में चला गया। सन् 1607 में दौलताबाद निजामशाह राजवंश की राजधानी बन गया। बार-बार होने वाले हमलों तथा इस अवधि के दौरान स्थानीय शासक परिवारों के बीच आंतरिक झगड़ों के कारण दक्कन ने उथल-पुथल भरा लंबा समय देखा। अकबर और शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान मुगलों ने यहां कई हमले किए और शाहजहां के शासनकाल के दौरान ही चार माह की लंबी घेरेबंदी के बाद यह क्षेत्र सन् 1633 में पूर्णतया मुगलों के कब्जे में आ गया। अत: मुगलों ने सत्ता प्राप्त कर ली और औरंगज़ेब को दक्कन का वायसराय बनाया गया, जिसने दौलताबाद से बीजापुर और गोलकुंडा पर अपने हमलों का नेतृत्व किया। मराठों की बढ़ती शक्ति ने मुगलों के लिए परेशानी खड़ी कर दी और कुछ समय के बाद यह क्षेत्र मराठों के नियंत्रण में आ गया। अत: दौलताबाद क़िले पर कई शासकों का शासन रहा, इस पर बार-बार कब्जे होते रहे, कभी यह मुगलों के आधिपत्य में रहा, कभी मराठों के और कभी पेशवाओं के और अंत में सन् 1724 ई. में यह हैदराबाद के निजामों के नियंत्रण में आ गया और स्वतंत्रता प्राप्ति तक उन्हीं के नियंत्रण में रहा।
मध्य काल में दौलताबाद का क़िला सर्वाधिक शक्तिशाली क़िलों में से एक था। यह क़िला 200 मीटर ऊंची शंक्वाकार पहाड़ी पर बना था और पहाड़ी के चारों ओर इसके नीचे की ओर खाइयां और ढलानें इसकी रक्षा करती थीं। इसके अलावा इसकी रक्षा प्रणाली सर्वाधिक जटिल और पेचीदा थी। किलेबंदी में बुर्जों सहित तीन घेराबंदी दीवारें थीं।
स्थापत्य
देवगिरी के यादव राजा भिल्लम द्वारा 1187 ईस्वी में इस क़िले का निर्माण कराया गया। यह क़िला लगभग 200 मीटर की ऊंचाई तक के शंकु के आकार की पहाड़ी पर स्थित है। पहाड़ी के चारों ओर इसके नीचे की ओर खाइयां और ढलानें इसकी रक्षा करती थीं। दुर्ग गढ़ की बड़ी संख्या के साथ रक्षात्मक दीवारों की तीन लाइनों का निर्माण किया गया है। क़िले की उल्लेखनीय सुविधाओं में खाई व सीधी ढाल हैं। क़िले में दुश्मन को रोकने के अनूठे इंतजाम थे। क़िले में सात विशाल द्वार आते हैं, जहां दुश्मनों से मुकाबले के लिए पर्याप्त इंतजाम थे। सभी दीवारों पर तोपें तैनात रहती थीं। आखिरी दरवाजे पर एक 16 फीट लंबी और दो फीट गोलाकार की मेंडा नामक तोप आज भी मौजूद है, जिसकी मारक क्षमता 3.5 किलोमीटर है और यह तोप अपनी जगह पर चारों ओर घूम सकती है।
क़िले में चांद मीनार, चीनी महल और बारादरी भीतर की महत्वपूर्ण संरचनाएं हैं। क़िले के शीर्ष पर शाही निवास, मस्जिद, स्नान घर, मनोरंज के कमरे आदि बने हैं। क़िले के पहले प्रवेश द्वार के बाद बायीं तरफ अंदर एक भारत माता मंदिर भी बनाया गया है। क़िले के चारों ओर गहरी खाई बनाई गई हैं और उसमें पानी भर दिया जाता था, जिसमें मगरमच्छ छोड़ दिए जाते थे। उस समय क़िले में जाने के लिए चमड़े का पुल बनाया गया था और जब युद्ध की आशंका होती थी तो पुल हटा लिया जाता था। कहा जाता है कि यदि दुश्मन की सेना किसी तरह सातों दरवाजे पर पहुंच भी गई तो उसे गहरी खाइयों का सामना करना पड़ता था, जिसमें सैनिकों के उतरते हुए उनके स्वागत के लिए खतरनाक मगरमच्छ तैयार रहते थे।[2]
कैसे पहुंचे
दौलताबाद हवाई जहाज, ट्रेन और सड़क के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यात्री अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी विकल्प का चयन कर सकते हैं।[3]
रेलमार्ग- औरंगाबाद रेलवे स्टेशन दौलताबाद क़िले से निकटतम रेलवे स्टेशन है और लगभग 15 से 20 कि.मी. दूर है। यह रेलवे स्टेशन मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे और नासिक जैसे देश के कई शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़कमार्ग- औरंगाबाद से दौलताबाद के लिए बसों से यात्रा कर सकते हैं। आपके पास एक टैक्सी को किराए पर लेने का विकल्प भी है।
वायुमार्ग- दौलताबाद क़िले से निकटतम हवाई अड्डा 22 कि.मी. की दूरी पर औरंगाबाद में है। यह हवाई अड्डा हैदराबाद, दिल्ली, और मुम्बई जैसे देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ टिकट द्वारा प्रवेश वाले स्मारक-महाराष्ट्र (हिंदी) asi.nic.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2018।
- ↑ दौलताबाद का किला - जिसे बेधना था मुश्किल (हिंदी) daanapaani.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2018।
- ↑ दौलताबाद क़िला (हिंदी) gyanipandit.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2018।
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