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*[[ग्वालियर]] पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना भी डफ़रिन के कार्यकाल में ही की गयी।
*[[ग्वालियर]] पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना भी डफ़रिन के कार्यकाल में ही की गयी।
*लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है, 1885 ई. में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का प्रथम अधिवेशन [[बम्बई]] में होना।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

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लॉर्ड डफ़रिन

लॉर्ड डफ़रिन (अंग्रेज़ी: Lord Dufferin, जन्म- 21 जून, 1826; मृत्यु- 12 फ़रवरी, 1902) सन 1884 में लॉर्ड रिपन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। सामान्य तौर पर उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण था, लेकिन तृतीय बर्मा युद्ध (1885-1886 ई.) उसी के कार्यकाल में हुआ, जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का अंग बन गया।

  • रूसी अफ़ग़ान सीमा पर स्थित 'पंजदेह' पर रूसियों का क़ब्ज़ा हो जाने के कारण रूस तथा ब्रिटेन के बीच युद्ध का ख़तरा पैदा हो गया था।
  • अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान (1880-1901 ई.) के शान्ति प्रयास तथा लॉर्ड डफ़रिन की विवेकशीलता से यह युद्ध नहीं छिड़ पाया।
  • लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल में ही 1885 ई. का बंगाल लगान क़ानून बना, जिसके अंतर्गत किसानों को भूमि की सुरक्षा की गारंटी दी गई थी।
  • न्याययुक्त लग़ान निर्धारित कर दिया गया तथा ज़मींदारों द्वारा बेदख़ल किये जाने के अधिकार को भी सीमित कर दिया गया।
  • किसानों के हित के लिए इसी प्रकार के क़ानून अवध और पंजाब में भी बनाये गये।
  • ग्वालियर पर सिंधिया के शासन की पुनर्स्थापना भी डफ़रिन के कार्यकाल में ही की गयी।
  • लॉर्ड डफ़रिन के कार्यकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है, 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई में होना।
  • प्रारम्भ में इस अधिवेशन की महत्ता नहीं आंकी गई, लेकिन बाद में इसी संगठन के माध्यम से भारत को 1947 ई. में स्वाधीनता प्राप्त हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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