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08:05, 19 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- कार्तिक शुक्ल एकादशी से पाँच दिन तक किया जाता है।
- कर्ता पंचमृत, पंचगव्य एवं चन्दन लेप से युक्त जल से तीन बार स्नान करता है।
- जौ, चावल एवं तिल से पितरों का तर्पण; 'ओं नमो वासुदेवाय' को 108 बार कह कर पूजा करनी चाहिए।
- 'ओं नमो विष्णु' मन्त्र के साथ तिल, जौ एवं चावल में घी लगा कर होम करना चाहिए।
- यह विधि पाँच दिनों तक करनी चाहिए।
- पाँच दिनों तक क्रम से पाँवों, घुटनों, नाभि, कन्धों एवं सिर की कमलों, बिल्व दलों, भृंगारक (चौथे दिन), बाण, बिल्व एवं जया, मालती से पूजा करनी चाहिए।
- एकादशी से चतुर्दशी तक क्रम से गोबर, गोमूत्र एवं दूध व दही को (देह को पवित्र करने के लिए) खाना चाहिए।
- पाँचवें दिन ब्रह्म भोज एवं दान करना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि कर्ता के सभी पाप कट जाते हैं।[1]
- नरसिंह एवं भविष्यपुराणों[2] में आया है कि इसे भीष्म ने कृष्ण से सीखा, जबकि कृष्ण घोषित करते हैं कि उन्होंने इसे भीष्म से बाण शैय्या पर सुना।
- भविष्योत्तर पुराण ने कर्ता को शाक एवं यति भोज्य पदार्थ खाने की अनुमति दे दी है।[3]
- पश्चात्कालीन मध्य काल के ग्रन्थ, यथा– निर्णयसिन्धु[4], समयमयूख[5], स्मृतिकौस्तुभ[6] ऐसा कहते हैं कि सभी वर्णों के लोगों के द्वारा भीष्म को अर्ध्य देना चाहिए।
- तर्पण मन्त्र द्रष्टव्य है, यथा–
'वैयाघ्र पद्मगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय प्रदास्येहं तिलोदकम्।।
अपुत्राय ददाम्येतत् सलिलं भीष्मवर्मणो।'
- यह भोज कृत भुजबल निबन्ध[7] में उद्धृत है।[8]; [9]
- इसे करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
- अग्नि पुराण[10]; गरुड़ पुराण[11]; पद्म पुराण[12] में इस व्रत का बृहद् उल्लेख है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रत0 2, 336-341
- ↑ भविष्य पुराण से उद्धरण)
- ↑ कालविवेक (324, यहाँ पर ऐसा कहा है कि हेमाद्रि (व्रत0 2, 34 का अन्तिम श्लोक भविष्यौत्तरपुराण का है)
- ↑ निर्णयसिन्धु (204)
- ↑ समयमयूख (158-159)
- ↑ स्मृतिकौस्तुभ (386)
- ↑ भुजबल निबन्ध (पृ0 364, श्लोक 1714-15)
- ↑ राजमार्तण्ड (खण्ड 36, पृ0 332)
- ↑ हेमाद्रि (काल0 628)
- ↑ अग्निपुराण (205|109)
- ↑ गरुड़पुराण (1|123|3-11)
- ↑ पद्मपुराण (6|125|29-82)
संबंधित लेख
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