"रूपावाप्ति": अवतरणों में अंतर
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*उसके उपरान्त चैत्र की पूर्णिमा पर पूजा करनी चाहिए। | |||
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10:35, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह एक मास व्रत है। यह व्रत फाल्गुन की पूर्णिमा की प्रतिपदा से चैत्र की पूर्णिमा तक रखना चाहिए।
- शेषनाग के फण पर लेटे हुए केशव की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए।
- इसमें एकभक्त, पृथ्वी पर शयन, तीन दिनों तक उपवास करना चाहिए।
- उसके उपरान्त चैत्र की पूर्णिमा पर पूजा करनी चाहिए।
- चाँदी एवं वस्त्रों का एक जोड़ा दान करना चाहिए।
- इससे रूप (सौन्दर्य) की प्राप्ति होती है।[1]
- पंचमी पर विश्वेदेवों की पूजा करने से स्वर्ग प्राप्ति की प्राप्ति होती है।[2] [3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 744, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 574-575, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)
- ↑ दस विश्वेदेवों के लिए 'राज्याप्ति दशमी' देखिए।
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