"परेश राठवा": अवतरणों में अंतर
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'''परेशभाई राठवा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pareshbhai Rathwa'') [[गुजरात]] के छोटा उदेपुर जिले के एक आदिवासी कलाकार हैं। वह और उनका [[परिवार]] सदियों पुरानी पिथौरा पेंटिंग की कला के काम में शामिल रहा है। परेश राठवा को आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए [[भारत सरकार]] ने [[पद्म श्री]], [[2023]] से सम्मानित किया गया है। | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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|चित्र का नाम=परेश राठवा | |||
|पूरा नाम=परेशभाई राठवा | |||
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|संतान= | |||
|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=चित्रकारी | |||
|मुख्य रचनाएँ= | |||
|मुख्य फ़िल्में= | |||
|विषय= | |||
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|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म श्री]], [[2023]] | |||
|प्रसिद्धि=पिथौरा चित्रकार | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
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|अन्य जानकारी=आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटा उदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है। | |||
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}}'''परेशभाई राठवा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pareshbhai Rathwa'') [[गुजरात]] के छोटा उदेपुर जिले के एक आदिवासी कलाकार हैं। वह और उनका [[परिवार]] सदियों पुरानी पिथौरा पेंटिंग की कला के काम में शामिल रहा है। परेश राठवा को आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए [[भारत सरकार]] ने [[पद्म श्री]], [[2023]] से सम्मानित किया गया है। | |||
==पिथौरा कला== | ==पिथौरा कला== | ||
पिथौरा कला 1200 साल पुरानी कला है। आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटा उदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है। परेश राठवा मुताबिक "पिथौरा पेंटिंग प्राचीन गुफाओं में पाई जाती है और माना जाता है कि यह 1200 साल से अधिक पुरानी है। यह जनजाति के देवता- पिथौरा बाबा के लिए किया जाता है। यह देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के एक तरीके के रूप में पहले शुभ अवसर के दौरान [[मिट्टी]] की दीवारों पर किया जाता था।" | पिथौरा कला 1200 साल पुरानी कला है। आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटा उदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है। परेश राठवा मुताबिक "पिथौरा पेंटिंग प्राचीन गुफाओं में पाई जाती है और माना जाता है कि यह 1200 साल से अधिक पुरानी है। यह जनजाति के देवता- पिथौरा बाबा के लिए किया जाता है। यह देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के एक तरीके के रूप में पहले शुभ अवसर के दौरान [[मिट्टी]] की दीवारों पर किया जाता था।" |
10:48, 27 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
परेश राठवा
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पूरा नाम | परेशभाई राठवा |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चित्रकारी |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, 2023 |
प्रसिद्धि | पिथौरा चित्रकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटा उदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है। |
परेशभाई राठवा (अंग्रेज़ी: Pareshbhai Rathwa) गुजरात के छोटा उदेपुर जिले के एक आदिवासी कलाकार हैं। वह और उनका परिवार सदियों पुरानी पिथौरा पेंटिंग की कला के काम में शामिल रहा है। परेश राठवा को आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने पद्म श्री, 2023 से सम्मानित किया गया है।
पिथौरा कला
पिथौरा कला 1200 साल पुरानी कला है। आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटा उदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है। परेश राठवा मुताबिक "पिथौरा पेंटिंग प्राचीन गुफाओं में पाई जाती है और माना जाता है कि यह 1200 साल से अधिक पुरानी है। यह जनजाति के देवता- पिथौरा बाबा के लिए किया जाता है। यह देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के एक तरीके के रूप में पहले शुभ अवसर के दौरान मिट्टी की दीवारों पर किया जाता था।"
छोटा उदेपुर जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है। यहां 80 फीसदी से ज्यादा आदिवासी रहते हैं। इनमें ज्यादातर राठवा समुदाय के लोग रहते हैं। ये आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और प्रकृति और पूर्वजों की पूजा करते हैं। आदिवासी समाज सूर्य देवता, चंद्र देवता, जल देवता, धरती माता, अग्नि देवता, अन्न देवता, पवन देवता, वृक्ष देवता जो साकार हैं और जिनके माध्यम से जीवन का निर्माण संभव है, जिनके बिना प्राकृतिक और प्रकृति जीवन संभव नहीं है, उन्ही तत्वों की पूजा करता है।
प्रेरणा
परेश राठवा बताते हैं कि उन्हें पेंट करने की प्रेरणा अपने दादा से मिली, जो शादियों और शुभ अवसरों के दौरान पारंपरिक पेंटिंग से दीवारों को पेंट करते थे। मेरा बेटा मौलिक, वह भी पुरानी परंपरा के संरक्षण में मेरे साथ जुड़ गया है। दीवारों के अलावा हम कैनवास और हाथ से बने कागज पर भी पेंटिंग करते हैं। इस महान कला को बचाने के लिए परेश राठवा ने खासा संघर्ष किया है। इसके लिए उन्होंने इंटरनेट का सहारा लिया। पारंपरिक पेंटिंग को सोशल मीडिया पर प्रचारित करना शुरू कर दिया, शैक्षणिक संस्थानों को भी इस मुहीम से जोड़ने की कोशिश की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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