"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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| ==बरमूडा त्रिकोण में हादसों के कारण और शोध== | | ==बरमूडा त्रिकोण में हादसों के कारण और शोध== | ||
बरमूडा ट्राएंगल है, मौत का ट्राएंगल, 125 हवाई जहाजों और 50 जहाजों को लील चुका है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कोई इसका रहस्य खोल नहीं पाया। बरमूडा त्रिकोण में होने वाले हादसों के कारणों को अभी तक पक्के तौर पर नहीं जाना जा सका है। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे ऐसे कारण बताए हैं जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। ये कारण इस प्रकार हैं ----- | बरमूडा ट्राएंगल है, मौत का ट्राएंगल, 125 हवाई जहाजों और 50 जहाजों को लील चुका है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कोई इसका रहस्य खोल नहीं पाया। बरमूडा त्रिकोण में होने वाले हादसों के कारणों को अभी तक पक्के तौर पर नहीं जाना जा सका है। बारमूडा त्रिभुज की इस उलझी हुई गुत्थी को आज तक कोई भी व्यक्ति ठीक से नहीं सुलझा पाया। इस रहस्मयी क्षेत्र के विषय में सिद्धान्त तो कई प्रस्तुत किए गए, लेकिन उनमें से कोई भी पूर्णत सन्तुष्ट नहीं करता। इस संदर्भ में अटकलें और अनुमान ही ज्यादा लगाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे ऐसे कारण बताए हैं जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। ये कारण इस प्रकार हैं ----- | ||
;मीथेन गैस | ;मीथेन गैस | ||
कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफी बड़ा हो, तो यह बड़े से बडे जहाज को डुबो भी सकता है। वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहॉं पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। | कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफी बड़ा हो, तो यह बड़े से बडे जहाज को डुबो भी सकता है। वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहॉं पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। | ||
ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये बुलबुले पानी के घनत्व में कमी लाकर जहाज को डुबो देने की क्षमता रखते हैं। इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। | ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये बुलबुले पानी के घनत्व में कमी लाकर जहाज को डुबो देने की क्षमता रखते हैं। इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। | ||
इस क्षेत्र में होने वाले वायुयानों की दुर्घटना के सम्बंध में वैज्ञानिकों का मत है कि इसी प्रकार जब मीथेन बड़ी मात्रा में वायुमण्डल में फैलती है, तो उसके क्षेत्र में आने वाले यान का मीथेन की सांद्रता के कारण इंजन में ऑक्सीजन का अभाव हो जाने सेवह बंद हो जाता है। ऐसी दशा में विमान पर चालक का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह समुद्र के पेट में समा जाता है। अमेरिकी भौगोलिक सवेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्डार भरा हुआ है। यही वजह है कि वहॉं पर जब-तब इस तरह की दुर्घटनाऍं होती रहती हैं। | |||
;चुम्बकीय क्षेत्र | |||
बहुत से विद्वानों का मत है कि सागर के इस भाग में एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण यहाँ काम करना बंद कर देते हैं तथा रेडियो तरंगों के संकेतों को काट कर इन यन्त्रों को खराब कर देता है इससे जहाज रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। यानी यहां भौतिक के कुछ नियम बदल जाते है । | |||
भौगोलिक स्थिति | भौगोलिक स्थिति | ||
बरमूडा ट्राएंगल में विमानों व जहाजों के गायब होने के पीछे सबसे प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक स्थिति को माना जाता है। उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर में स्थित इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दाखिल होते ही विमानों के कंपास सही दिशा दिखाना बंद कर देते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिकी के नियम लागू नहीं होते जिसके कारण हादसे होते हैं। इसके साथ ही | बरमूडा ट्राएंगल में विमानों व जहाजों के गायब होने के पीछे सबसे प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक स्थिति को माना जाता है। उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर में स्थित इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दाखिल होते ही विमानों के कंपास सही दिशा दिखाना बंद कर देते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिकी के नियम लागू नहीं होते जिसके कारण हादसे होते हैं। इसके साथ ही चांद की स्थिति को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। | ||
शक्तिशाली समुद्री तूफान | शक्तिशाली समुद्री तूफान | ||
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कुछ लोग इन घटनाओं को संयोग मानते हैं, परन्तु इतने सारे जहाजों और वायुयानों का केवल इस विशेष त्रिभुजाकार क्षेत्र में ही गायब होना मात्र संयोग नहीं हो सकता। | |||
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां वायु की अति विशाल तूफानी धाराएं ऊपर से नीचे की ओर बहती हैं तथा जहाज व वायुयान इन्हीं तीव्र वायु धाराओं की चपेट में आकर सागर में डूब जाते हैं, जिन्हें बाद में समुद्र की शक्तिशाली लहरें कहीं और बहा कर ले जाती हैं। लेकिन अगर इस तर्क को सही माने, तो प्रश्न उठता है कि फिर रेडियों, वायरलेस, राडार और कम्पास जैसे उपकरणों में खराबी क्यों पैदा होती है ? | कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां वायु की अति विशाल तूफानी धाराएं ऊपर से नीचे की ओर बहती हैं तथा जहाज व वायुयान इन्हीं तीव्र वायु धाराओं की चपेट में आकर सागर में डूब जाते हैं, जिन्हें बाद में समुद्र की शक्तिशाली लहरें कहीं और बहा कर ले जाती हैं। लेकिन अगर इस तर्क को सही माने, तो प्रश्न उठता है कि फिर रेडियों, वायरलेस, राडार और कम्पास जैसे उपकरणों में खराबी क्यों पैदा होती है ? | ||
जबकि कुछ वैज्ञानिक इन दुघर्टनाओं का कारण गुरूत्वाकर्षण की शक्ति बताते हैं। कुछ लोग इन घटनाओं को प्राकृति बताते हुए समुद्र के इस भाग के नीचे स्थित स्फटिक पदार्थों, जलचक्रों (भंवरों), समुद्री तल से उत्पन्न समुद्री भूचालों को इनका दोषी मानते हैं तथा बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जिनका मानना है कि ये दुर्घटनाएं मशीनी खराबी मात्र ही हैं। | |||
परन्तु इसका रहस्य तब और भी अधिक गहरा हो जाता है जब कुछ लोग इन दुर्घटनाओं को उन `उड़नतश्तरियों´ से जोड़ कर देखते हैं जो इस क्षेत्र में कई बार उड़ते हुए `देखी´ गईं हैं। इन लोगों का कहना है कि इन उड़नतश्तरियों में सवार दूसरे ग्रह के प्राणी ही इन दुर्घटनाओं के जिम्मेदार हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके इस क्षेत्र में कोई पृथ्वीवासी आवागमन करके उनके रहस्य को जान जाए या उनके कार्य में बाधा ड़ाले। | परन्तु इसका रहस्य तब और भी अधिक गहरा हो जाता है जब कुछ लोग इन दुर्घटनाओं को उन `उड़नतश्तरियों´ से जोड़ कर देखते हैं जो इस क्षेत्र में कई बार उड़ते हुए `देखी´ गईं हैं। इन लोगों का कहना है कि इन उड़नतश्तरियों में सवार दूसरे ग्रह के प्राणी ही इन दुर्घटनाओं के जिम्मेदार हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके इस क्षेत्र में कोई पृथ्वीवासी आवागमन करके उनके रहस्य को जान जाए या उनके कार्य में बाधा ड़ाले। | ||
बरमूदा त्रिभुज पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाने वाले रिचर्ड विनर का कहना है कि इस क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने तो अपने साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि वहां गायब होने वाले जहाज और वायुयान एक भिन्न आयाम या दृश्यता में अभी भी वहीं हैं और इस भिन्न आयाम का कारण संभवत; `यूएफओ´ अर्थात् उड़नतश्तरी द्वारा स्थापित किया गया चुम्बकीय वातावरण ही है। | बरमूदा त्रिभुज पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाने वाले रिचर्ड विनर का कहना है कि इस क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने तो अपने साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि वहां गायब होने वाले जहाज और वायुयान एक भिन्न आयाम या दृश्यता में अभी भी वहीं हैं और इस भिन्न आयाम का कारण संभवत; `यूएफओ´ अर्थात् उड़नतश्तरी द्वारा स्थापित किया गया चुम्बकीय वातावरण ही है। | ||
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बरमूडा त्रिकोण का रहस्य (Barmuda triangle mystery) क्या है? | बरमूडा त्रिकोण का रहस्य (Barmuda triangle mystery) क्या है? | ||
बरमूडा त्रिकोण पहली बार विश्व स्तर पर उस समय चर्चा में आया, जब 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में | बरमूडा त्रिकोण पहली बार विश्व स्तर पर उस समय चर्चा में आया, जब 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में इस पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इसपर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गयी। | ||
इस तरह की तमाम घटनाऍं उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। लेकिन यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी बताने में अस्मर्थ रहा है। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉबरों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ | इस तरह की तमाम घटनाऍं उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। लेकिन यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी बताने में अस्मर्थ रहा है। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉबरों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे और सम्भवत: उनके दिशा सूचक यंत्र में खराबी होने के कारण खराब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्ट हो गये। | ||
बहरहाल समय-समय पर इस तरह के ताम दावे इस त्रिकोण के रहस्य को सुलझाने के किए जाते रहे हैं। | बहरहाल समय-समय पर इस तरह के ताम दावे इस त्रिकोण के रहस्य को सुलझाने के किए जाते रहे हैं। | ||
बहरहाल इस तर्क से भी सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं है। यही कारण है कि बरमूडा त्रिकोण अभी भी एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है। | बहरहाल इस तर्क से भी सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं है। यही कारण है कि बरमूडा त्रिकोण अभी भी एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है। | ||
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फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्रीः साल्व्ड’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों के अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने | फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्रीः साल्व्ड’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों के अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने नजर अंदाज कर दिया था। | ||
बहरहाल, तमाम शोध और जाँच-पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया, उन्हें आसमान निगल गया या समुद्र लील गया...दुर्घटना की स्थिति में भी मलबा तो मिलता...ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। | |||
बहरहाल, तमाम शोध और जाँच-पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया | |||
बारमूडा ट्रायएंगल हादसा | बारमूडा ट्रायएंगल हादसा | ||
बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल | बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। सबसे पहले 1872 में जहाज द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन बारमूडा ट्रायएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया, जब 16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पाँच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफी गंभीरता से लिया गया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है । जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला आर्टिकल था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया। वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज के लापता होने का सिलसिला जारी रहा । | ||
बरमूडा त्रिकोण और परग्रही | बरमूडा त्रिकोण और परग्रही | ||
अटलांटिक महासागर के बरमूडा त्रिकोण को डेविल्स ट्रायएंगल यानी शैतान त्रिकोण के नाम भी जाना जाता है | अटलांटिक महासागर के बरमूडा त्रिकोण को डेविल्स ट्रायएंगल यानी शैतान त्रिकोण के नाम भी जाना जाता है, इस काल त्रिकोण से अब तक कई जहाज और विमान गायब हुए है लेकिन किसी का भी कुछ पता नहीं चल पाया ... यहां इलेक्ट्रानिक फॉग होने की बात भी सामने आई ... जिसमें फंस कर जहाज और विमान लापता हो जाते हैं.. लेकिन बरमूडा में इलेक्ट्रानिक फॉग किस तरह बनता है.. इसके बारे में जानकारी नहीं हैं .. इसलिए इस रहस्मयी त्रिकोण को परग्रही शक्तितियों से भी जोड़ कर देखा जाता है .. इस त्रिकोण के पास सबसे ज्यादा यूएफओ दिखने की बात सामने आई है.. इस लिए हो सकता है कि बरमूडा त्रिकोण दूसरे ग्रह के प्राणियों का रिसर्च स्टेशन हो ... इसलिए परग्रही शक्तियां जहाजों और विमानों को गायब करते हों .. और फिर उस पर रिसर्च करते हों .. दुनिया भर में यूएफओ देखने की बात सामने आती ही रहती है ..ऐसे में बरमूडा त्रिकोण से गायब होने वाले विमान और जहाज में परग्रही शक्तियों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है .. लेकिन बरमूडा त्रिकोण के रहस्य में परग्रही शक्तियों का ही हाथ है.. इस पर बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है .. क्योंकि इसका ठोस कोई प्रमाण नहीं है .. इस लिए बरमूडा त्रिकोण आज भी है रहस्यमयी... | ||
हक़ीक़त पर रिसर्च | हक़ीक़त पर रिसर्च | ||
बारमूडा ट्राएंगल के रहस्य से परदा हटाने के लिए कई शोध हुए ... वहीं कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बरमूडा टायएंगल के आसमान में बादलों के बीच तेज आवाज के बीच बिजलियां कड़कड़ते हुए के हुए देखने बात कही.. जिससे वहां इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड बनता है... और फिर बादल और समंदर के बीच बबंडर उठता है.... जिसे इलेक्ट्रोनिक फॉग कहा गया .. लेकिन ये कैसे होता है इससे सभी अनजान हैं | बारमूडा ट्राएंगल के रहस्य से परदा हटाने के लिए कई शोध हुए ... वहीं कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बरमूडा टायएंगल के आसमान में बादलों के बीच तेज आवाज के बीच बिजलियां कड़कड़ते हुए के हुए देखने बात कही.. जिससे वहां इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड बनता है... और फिर बादल और समंदर के बीच बबंडर उठता है.... जिसे इलेक्ट्रोनिक फॉग कहा गया .. लेकिन ये कैसे होता है इससे सभी अनजान हैं ... लेकिन तमाम रिसर्च के बाद बरमूडा त्रिकोण के रहस्य के बारे में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया.. और ये दानवी त्रिकोण आज भी अनसुलझी पहेली है | ||
बरमूड त्रिकोण व्यस्त समुद्री मार्ग | बरमूड त्रिकोण व्यस्त समुद्री मार्ग |
17:58, 17 जनवरी 2011 का अवतरण
मेरा संपादन क्षेञ
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शोध क्षेत्र |
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिंदी भाषी होने का गर्व है |
— डा॰ मनीष कुमार वैश्य |