"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर
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हिममानव से जुङी घटनायें | हिममानव से जुङी घटनायें | ||
पहली बार | हिममानव यानि येति दुर्गम बर्फिले इलाके में सदियों से इंसान को दिखता रहा है, लेकिन हिममानव के रहस्य से परदा नहीं उठ पाया है । आखिर ये हिममानव बर्फिले इलाके में कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में दुनिया को '''पहली बार''' तब पता चला । जब 1832 में बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में एक पर्वतारोही बी.एच. होजसन ने येति के बारे में जानकारी दी। जिसमें अपने हिमालय अभियान के अनुभवों में उन्होंने लिखा था कि उत्तरी नेपाल के पहाड़ी इलाके में ट्रैकिंग के दौरान उनके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे विशालकाय प्राणी को देखा, जो इंसान की तरह दो पैरो पर चल रहा था, जिसके शरीर पर घने लंबे बाल थे, उस प्राणी को देखते ही वो डर कर भाग गया । होजसन ने साफ लिखा है कि उन्होंने कुछ नहीं देखा, लेकिन इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने अनजान प्राणी को यति नाम दिया। इसके बाद यति के देखे जाने और पदचिह्नों की पहचान किए जाने का लंबा इतिहास रहा है। कई पर्वतारोहियों ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है। हिमालय क्षेत्र ही नहीं, दुनिया के बाकी हिस्सों से भी ऐसी खबरें आती रहीं। हालांकि कोई भी अपनी बात साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं दे सका है। इसके बाद 1889 में एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र में पर्वतारोहियों ने बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फूट प्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़े थे। | ||
20वीं सदी की शुरूआत में येति को देखने के मामले तब ज्यादा आने शुरू हुए जब पश्चिमी देशों के पर्वतारोहियों ने इस क्षेत्र की चोटियों पर चढ़ने का प्रयास शुरू किया। ऐसे कई पर्वतारोहियों ने यहां विचित्र जंतु और विचित्र पदचिन्ह देखने की बात कही। फिर सन् 1925 में पेशेवर फोटोग्राफर तथा रॉयल ज्योग्रॉफिकल सोसाइटी के एक फोटोग्राफर एम.ए. टॉमबाजी ने 15,000 फीट ऊंचाई वाले जेमू ग्लेशियर ( कंगचनजंघा पर्वत माला ) के पास एक विचित्र प्राणी को देखने की बात कही । उस फोटोग्राफर ने बताया कि उस विचित्र प्राणी को 200 से 300 गज की दूरी से उसने करीब एक मिनट तक देखा, जिसकी शारीरिक बनावट ठीक-ठीक इंसान जैसी थी, वो सीधा खड़े होकर चल रहा था , लेकिन शरीर पर बहुत अधिक मात्रा में बाल थे। उसके तन पर कपड़े जैसी कोई चीज नहीं थी। झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था, और बर्फीली पृष्ठभूमि में वह काला दिख रहा था। दो घंटे बाद टॉमबाजी और उसके साथी पहाड़ से नीचे उतर आये थे। रास्ते में उन्हें ऐसे पदचिह्न मिले जो सात इंच लंबे व चार इंच चौड़े थे और जो शायद उसी प्राणी के थे। | |||
दिसंबर 2007 में अमेरिका के एक टीवी शो प्रस्तुतकर्ता जोशुआ गेट्स और उनकी टीम ने भी यति के स्पष्ट पदचिह्न देखने का दावा किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पदचिह्न की लंबाई 33 से.मी. थी। | दिसंबर 2007 में अमेरिका के एक टीवी शो प्रस्तुतकर्ता जोशुआ गेट्स और उनकी टीम ने भी यति के स्पष्ट पदचिह्न देखने का दावा किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पदचिह्न की लंबाई 33 से.मी. थी। | ||
हिममानव की चीख- सन् 1970 में एक पर्वतारोहण अभियान पर हिमालय पर ब्रिटिश पर्वतारोही डान व्हिलान्स ने दावा किया कि उन्होंने यति के चिल्लाने की आवाज सुनी है। डान के मुताबिक, उन्होंने कुछ आवाजें सुनीं, तो उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यति चिल्ला रहा है। | हिममानव की चीख- सन् 1970 में एक पर्वतारोहण अभियान पर हिमालय पर ब्रिटिश पर्वतारोही डान व्हिलान्स ने दावा किया कि उन्होंने यति के चिल्लाने की आवाज सुनी है। डान के मुताबिक, उन्होंने कुछ आवाजें सुनीं, तो उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यति चिल्ला रहा है। | ||
इसके बाद 1938 में येति एक बार फिर चर्चा में आया, विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता के क्यूरेटर एक कैप्टेन ने हिमालय की यात्रा के दौरान देखने का दावा किया । जिसमें कैप्टन ने उसे एक उदार और मददगार प्राणी बताया । कैप्टन के मुताबिक इस यात्रा के दौरान जब वो बर्फीली ढलान पर फिसल कर घायल हो गये थे, तब प्रागैतिहासिक मानव जैसे दिखने वाले एक 9 फीट लंबे प्राणी ने उसे मौत के मुंह से बचाया था। 1942 में भी साइबेरिया के जेल से भागने वाले कुछ कैदियों ने भी हिमालय पार करते हुए विशाल बंदरों जैसे प्राणी को देखने का दावा किया। | |||
लेकिन पहली बार ठोस सबूत तब मिला 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीर फोटो लिए, जिसका आज भी गहन अध्ययन किया जा रहा है । बहुत से लोग मानते हैं ये फोटो येति की वास्तविकता का बेहरतीन सबूत हैं लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि ये किसी दूसरे सांसारिक जीव के हैं। इतना ही नहीं 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही और फिर 1960 में सर एडमंड हिलेरी के नेतृत्व में एक दल ने येति से जुड़े सबूतों को इक्ट्ठा करने के लिए हिमालय क्षेत्र की यात्रा की जिसमें इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद ली गयी लेकिन 10 महीने वहां रहने के बाद भी इस दल को येति के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाये। इसके एक दशक बाद 1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने उनके शेरपा गाइड ने बताया कि ये आवाज येति की है। सुबह उस कैम्प के नजदीक इंसान जैसे बड़े पदचिन्ह भी देखे। हाल के दिनों में येति देखने की बात करें तो 1998 में एक अमरीकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया, उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे । 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानि येति को देखने का दावा किया गया । जिसे गारो हिल्स की पहाड़ियों में देखा गया, लेकिन किसी के ठिक सामने आज तक नहीं आया है। हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रो में अस्तित्व हो, जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता हो । ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता, ये प्राणी रहस्यमयी बना रहेगा । | लेकिन पहली बार ठोस सबूत तब मिला 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीर फोटो लिए, जिसका आज भी गहन अध्ययन किया जा रहा है । बहुत से लोग मानते हैं ये फोटो येति की वास्तविकता का बेहरतीन सबूत हैं लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि ये किसी दूसरे सांसारिक जीव के हैं। इतना ही नहीं 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही और फिर 1960 में सर एडमंड हिलेरी के नेतृत्व में एक दल ने येति से जुड़े सबूतों को इक्ट्ठा करने के लिए हिमालय क्षेत्र की यात्रा की जिसमें इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद ली गयी लेकिन 10 महीने वहां रहने के बाद भी इस दल को येति के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाये। इसके एक दशक बाद 1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने उनके शेरपा गाइड ने बताया कि ये आवाज येति की है। सुबह उस कैम्प के नजदीक इंसान जैसे बड़े पदचिन्ह भी देखे। हाल के दिनों में येति देखने की बात करें तो 1998 में एक अमरीकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया, उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे । 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानि येति को देखने का दावा किया गया । जिसे गारो हिल्स की पहाड़ियों में देखा गया, लेकिन किसी के ठिक सामने आज तक नहीं आया है। हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रो में अस्तित्व हो, जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता हो । ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता, ये प्राणी रहस्यमयी बना रहेगा । | ||
1938 में येति की चर्चा एक उदार और मददगार प्राणी के तौर पर हुई जब विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता के क्यूरेटर कैप्टेन आवर्जन हिमालय की यात्रा पर गये। उन्होंने दावा किया कि इस यात्रा के दौरान जब वे बर्फीली ढलान पर फिसल कर घायल हो गये थे, तब प्रागैतिहासिक मानव जैसे दिखने वाले एक 9 फीट लंबे प्राणी ने उसे मौत के मुंह से बचाया था। वह प्राणी कैप्टेन को उठाकर कई मील दूर अपनी गुफा में ले गया और तब तक उसकी सेवा करता रहा जब तक कि वह घर जाने लायक नहीं हो गया। 1942 में साइबेरिया के जेल से भागने वाले कुछ कैदियों ने भी हिमालय पार करते हुए विशाल बंदरों जैसे प्राणी को देखने का दावा किया। | 1938 में येति की चर्चा एक उदार और मददगार प्राणी के तौर पर हुई जब विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता के क्यूरेटर कैप्टेन आवर्जन हिमालय की यात्रा पर गये। उन्होंने दावा किया कि इस यात्रा के दौरान जब वे बर्फीली ढलान पर फिसल कर घायल हो गये थे, तब प्रागैतिहासिक मानव जैसे दिखने वाले एक 9 फीट लंबे प्राणी ने उसे मौत के मुंह से बचाया था। वह प्राणी कैप्टेन को उठाकर कई मील दूर अपनी गुफा में ले गया और तब तक उसकी सेवा करता रहा जब तक कि वह घर जाने लायक नहीं हो गया। 1942 में साइबेरिया के जेल से भागने वाले कुछ कैदियों ने भी हिमालय पार करते हुए विशाल बंदरों जैसे प्राणी को देखने का दावा किया। | ||
1950 के दशक में येति में पश्चिमी देशों की दिलचस्पी नाटकीय ढंग से बढ़ गयी। 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एरिक शिप्टन ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के कई बड़े-बड़े फोटो लिए। ये फोटो आज भी गहन अध्ययन और बहस का विषय हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि ये फोटो येति की वास्तविकता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं लेकिन कुछ मानते हैं कि ये किसी अन्य सांसारिक जीव के हैं और इन्हें तोड़ा-मोड़ा गया है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही। | 1950 के दशक में येति में पश्चिमी देशों की दिलचस्पी नाटकीय ढंग से बढ़ गयी। 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एरिक शिप्टन ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के कई बड़े-बड़े फोटो लिए। ये फोटो आज भी गहन अध्ययन और बहस का विषय हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि ये फोटो येति की वास्तविकता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं लेकिन कुछ मानते हैं कि ये किसी अन्य सांसारिक जीव के हैं और इन्हें तोड़ा-मोड़ा गया है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही। | ||
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1970 में ब्रिटिश पर्वतारोही डॉन व्हिलॉन्स ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने। उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यह आवाज येति की है। सुबह व्हिलॉन्स ने कैम्प के नजदीक मानव के जैसे पदचिन्ह देखे। उसी शाम उन्होंने दूरबीन की मदद से बंदर की शक्ल के दोपाये जंतु को करीब 20 मिनट तक देखा। येति से जुड़ी कहानियों में एक उस शेरपा लड़की की भी है जो अपनी याकों को चरा रही थी कि बंदर जैसा विशाल प्राणी उसे खींच कर ले जाने लगा। लड़की के जोर-जोर से चिल्लाने पर उसने उसे छोड़ दिया। बाद में गुस्से में उसने लड़की के दो याकों को मार दिया। इसकी रिपोर्ट पुलिस में की गयी। पुलिस को उसके स्पष्ट पदचिन्ह मिले। 1998 में अमरीकी पर्वतारोही क्रैग कैलोनिया ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उसके मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। | 1970 में ब्रिटिश पर्वतारोही डॉन व्हिलॉन्स ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने। उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यह आवाज येति की है। सुबह व्हिलॉन्स ने कैम्प के नजदीक मानव के जैसे पदचिन्ह देखे। उसी शाम उन्होंने दूरबीन की मदद से बंदर की शक्ल के दोपाये जंतु को करीब 20 मिनट तक देखा। येति से जुड़ी कहानियों में एक उस शेरपा लड़की की भी है जो अपनी याकों को चरा रही थी कि बंदर जैसा विशाल प्राणी उसे खींच कर ले जाने लगा। लड़की के जोर-जोर से चिल्लाने पर उसने उसे छोड़ दिया। बाद में गुस्से में उसने लड़की के दो याकों को मार दिया। इसकी रिपोर्ट पुलिस में की गयी। पुलिस को उसके स्पष्ट पदचिन्ह मिले। 1998 में अमरीकी पर्वतारोही क्रैग कैलोनिया ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया। उसके मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे। | ||
येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही। | येति के बारे में पहली बार ठोस सबूत 1951 में मिला, जब एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीरों के फोटो लिए। इन फुटप्रिन्टस पर आज भी रिसर्च किया जा रहा है। कई लोग इसे येति की वास्तविकता का बेहतरीन सबूत मानते हैं लेकिन कुछ इसे किसी दूसरे सांसारिक जीव के तौर पर देखते है। 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही। | ||
फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा। | फुट प्रिन्ट्स मिलने के बाद 1960 में सर एडमंड हिलरी अपने एक दल के साथ येति से जुड़े सबूतों की खोज में निकल पड़े। इस बार उन्होंने इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद भी ली, लेकिन 10 महीने तक हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में रहने के बावजूद उनके हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा। |
15:17, 25 जनवरी 2011 का अवतरण
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मेरा परिचय | |||||||||||||||
नाम --> डा॰ मनीष कुमार वैश्य जन्मदिन --> 8 जुलाई |
मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिंदी भाषी होने का गर्व है |
— डा॰ मनीष कुमार वैश्य |