"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल | * किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल | ||
* बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। — आईजक दिसराली | * बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। — आईजक दिसराली | ||
* | * मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। | ||
* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। — राबर्ट हेमिल्टन | * सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। — राबर्ट हेमिल्टन | ||
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'''कम्प्यूटर / इन्टरनेट''' | '''कम्प्यूटर / इन्टरनेट''' | ||
इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है | इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है । – टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) | ||
कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं | कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं । – एडवर्ड शेफर्ड मीडस | ||
कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही | कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नही । — क्लिफ़ोर्ड स्टॉल | ||
'''कला''' | '''कला''' | ||
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'''भाषा / स्वभाषा''' | '''भाषा / स्वभाषा''' | ||
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । | * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । | ||
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | ||
* जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नही जानता । — गोथे | * जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नही जानता । — गोथे | ||
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* मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन | * मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन | ||
* आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । ..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । — जार्ज ओर्वेल | * आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । ..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । — जार्ज ओर्वेल | ||
* शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है | * शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है । - लिली टॉमलिन | ||
* श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध | * श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध | ||
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'''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ''' | '''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ''' | ||
* संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है ) | * संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है ) | ||
* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । | * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । | ||
समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ | समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ | ||
हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है । — महाभारत | हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है । — महाभारत | ||
* यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । | * यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । | ||
पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ | पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ | ||
जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे । — पंचतंत्र | * जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे । — पंचतंत्र | ||
* को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि | * को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि | ||
* सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) | * सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) | ||
पंक्ति 506: | पंक्ति 506: | ||
* दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं , बाकी सब काम की तलाश करते हैं । — कियोसाकी | * दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं , बाकी सब काम की तलाश करते हैं । — कियोसाकी | ||
* मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना । | * मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना । | ||
* शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । | * शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । | ||
पारस परस कुधातु सुहाई ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | पारस परस कुधातु सुहाई ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | ||
* गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास | * गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास | ||
* बिना सहकार , नहीं उद्धार । | * बिना सहकार , नहीं उद्धार । | ||
उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । | उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । | ||
( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । ) | ( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । ) | ||
* नहीं संगठित सज्जन लोग । | * नहीं संगठित सज्जन लोग । | ||
रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
* सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै । | * सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै । | ||
( एक साथ आओ , एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो ) | ( एक साथ आओ , एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो ) | ||
* अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ | * अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ | ||
* काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय | * काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, | ||
एक न एक लीक काजर की लागिहै पै | एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। – अज्ञात | ||
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग | * जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, | ||
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । — रहीम | चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । — रहीम | ||
* जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। – मुक्ता | * जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। – मुक्ता | ||
पंक्ति 534: | पंक्ति 534: | ||
'''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न''' | '''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न''' | ||
* कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । | * कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । | ||
पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ — कबीर | पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ — कबीर | ||
* साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) | * साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) | ||
पंक्ति 552: | पंक्ति 552: | ||
* अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥ — चकबस्त | * अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥ — चकबस्त | ||
* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | * अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | ||
* जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । | * जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । | ||
मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ — कबीर | मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ — कबीर | ||
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे । – अज्ञात | * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे । – अज्ञात | ||
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'''भय, अभय, निर्भय''' | '''भय, अभय, निर्भय''' | ||
* तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । | * तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । | ||
आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | ||
* भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो । आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये । — पंचतंत्र | * भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो । आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये । — पंचतंत्र | ||
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'''अनुभव / अभ्यास''' | '''अनुभव / अभ्यास''' | ||
* बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है | * बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है| | ||
करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। | * करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। | ||
रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | ||
* अनभ्यासेन विषं विद्या । | * अनभ्यासेन विषं विद्या । | ||
( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है ( ?) ) | ( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है ( ?) ) | ||
* यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय । | * यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय । | ||
बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥ | बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥ | ||
* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती । — अज्ञात | * अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती । — अज्ञात | ||
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'''सफलता, असफलता''' | '''सफलता, असफलता''' | ||
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया | * असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया । — श्रीरामशर्मा आचार्य | ||
गया । — श्रीरामशर्मा आचार्य | |||
* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है । — हक्सले | * जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है । — हक्सले | ||
* जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नही हो सकता । — हर्मन मेलविल | * जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नही हो सकता । — हर्मन मेलविल | ||
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* मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है। - सर विंस्टन चर्चिल | * मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है। - सर विंस्टन चर्चिल | ||
* तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं। - लहरीदशक | * तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं। - लहरीदशक | ||
* रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय । | * रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय । | ||
हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब कोय ॥ — रहीम | हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब कोय ॥ — रहीम | ||
* चाहे राजा हो या किसान , वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । — गेटे | * चाहे राजा हो या किसान , वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । — गेटे | ||
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बाँके नयन परोसैं जोय, | बाँके नयन परोसैं जोय, | ||
कहै घाघ तब सबही झूठा, | कहै घाघ तब सबही झूठा, | ||
उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा | उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा | — घाघ | ||
पंक्ति 661: | पंक्ति 660: | ||
* अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। - वक्रमुख | * अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। - वक्रमुख | ||
* गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | * गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी | ||
* मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश । | * मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश । | ||
बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥ — कबीर | बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥ — कबीर | ||
'''अभिमान / घमण्ड / गर्व''' | '''अभिमान / घमण्ड / गर्व''' | ||
* जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि । | * जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि । | ||
सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ — कबीर | सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ — कबीर | ||
पंक्ति 682: | पंक्ति 681: | ||
( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये । | ( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये । | ||
* रुपए ने कहा, मेरी फिक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर. – चेस्टर फ़ील्ड | * रुपए ने कहा, मेरी फिक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर. – चेस्टर फ़ील्ड | ||
* बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय। | * बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय। | ||
घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।। | घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।। | ||
* जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है । – अथर्ववेद | * जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है । – अथर्ववेद | ||
पंक्ति 703: | पंक्ति 702: | ||
'''व्यापार''' | '''व्यापार''' | ||
* व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं ) | * व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं ) | ||
महाजनो येन गतः स पन्थाः । | महाजनो येन गतः स पन्थाः । | ||
( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही (उत्तम) मार्ग है ) | ( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही (उत्तम) मार्ग है ) | ||
( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है ) | ( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है ) | ||
* जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी । — आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में | * जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी । — आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में | ||
पंक्ति 719: | पंक्ति 718: | ||
* बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं । — श्रीराम शर्मा , आचार्य | * बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं । — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
* विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है। — रोनाल्ड रीगन | * विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है। — रोनाल्ड रीगन | ||
* अगर चाहते सुख समृद्धि, रोको जनसंख्या वृद्धि | * अगर चाहते सुख समृद्धि, रोको जनसंख्या वृद्धि| | ||
* नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है | * नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है| | ||
* भारत को अपने अतीत की जंज़ीरों को तोड़ना होगा। हमारे जीवन पर मरी हुई, घुन लगी लकड़ियों का ढेर पहाड़ की तरह खड़ा है। वह सब कुछ बेजान है जो मर चुका है और अपना काम खत्म कर चुका है, उसको खत्म हो जाना, उसको हमारे जीवन से निकल जाना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको हर उस दौलत से काट लें, हर उस चीज़ को भूल जायें जिसने अतीत में हमें रोशनी और शक्ति दी और हमारी ज़िंदगी को जगमगाया। - जवाहरलाल नेहरू | * भारत को अपने अतीत की जंज़ीरों को तोड़ना होगा। हमारे जीवन पर मरी हुई, घुन लगी लकड़ियों का ढेर पहाड़ की तरह खड़ा है। वह सब कुछ बेजान है जो मर चुका है और अपना काम खत्म कर चुका है, उसको खत्म हो जाना, उसको हमारे जीवन से निकल जाना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको हर उस दौलत से काट लें, हर उस चीज़ को भूल जायें जिसने अतीत में हमें रोशनी और शक्ति दी और हमारी ज़िंदगी को जगमगाया। - जवाहरलाल नेहरू | ||
* सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन | * सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन | ||
पंक्ति 726: | पंक्ति 725: | ||
'''राजनीति / शाशन / सरकार''' | '''राजनीति / शाशन / सरकार''' | ||
* सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । | * सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । | ||
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ | न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ | ||
( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड है , न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । ) | ( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड है , न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । ) | ||
* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है । — दसकुमारचरित | * निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है । — दसकुमारचरित | ||
पंक्ति 747: | पंक्ति 746: | ||
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | ||
* बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। - महात्मा गांधी | * बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। - महात्मा गांधी | ||
* जैसी जनता , वैसा राजा । | * जैसी जनता , वैसा राजा । | ||
प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | ||
पंक्ति 763: | पंक्ति 762: | ||
* लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर । | * लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर । | ||
* सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें । — इमर्शन | * सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें । — इमर्शन | ||
* न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । | * न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । | ||
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ | स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ | ||
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । | ( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । | ||
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'''समय''' | '''समय''' | ||
* आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । | * आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । | ||
स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | ||
* करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता । | * करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता । | ||
* वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार । | * वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार । | ||
पंक्ति 797: | पंक्ति 796: | ||
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ — कबीरदास | पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ — कबीरदास | ||
* समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक । | * समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक । | ||
चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की हूक ॥ | चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की हूक ॥ | ||
* अपने काम पर मै सदा समय से १५ मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है । | * अपने काम पर मै सदा समय से १५ मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है । | ||
* हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है । | * हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है । | ||
पंक्ति 814: | पंक्ति 813: | ||
* हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है , जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं । — ली लोकोक्का | * हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है , जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं । — ली लोकोक्का | ||
* रहिमन चुप ह्वै बैठिये , देखि दिनन को फेर । | * रहिमन चुप ह्वै बैठिये , देखि दिनन को फेर । | ||
जब नीके दिन आइहैं , बनत न लगिहैं देर ॥ | |||
न इतराइये , देर लगती है क्या | | * न इतराइये , देर लगती है क्या | | ||
जमाने को करवट बदलते हुए || | जमाने को करवट बदलते हुए || | ||
* कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है | – गोस्वामी तुलसीदास | * कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है | – गोस्वामी तुलसीदास | ||
पंक्ति 835: | पंक्ति 834: | ||
* सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । — एस डीकैम्प | * सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । — एस डीकैम्प | ||
* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । — जेम्स के. फिंक | * इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । — जेम्स के. फिंक | ||
* इतिहास से हम सीखते हैं कि हमने उससे कुछ नही | * इतिहास से हम सीखते हैं कि हमने उससे कुछ नही सीखा । | ||
'''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता''' | '''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता''' | ||
* वीरभोग्या वसुन्धरा । | * वीरभोग्या वसुन्धरा । | ||
( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) | ( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) | ||
* कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । | * कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । | ||
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | ||
* जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? | * जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | ||
विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | |||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । | * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । | ||
खुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? — अकबर इलाहाबादी | खुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? — अकबर इलाहाबादी | ||
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पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है । — पंचतन्त्र | पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है । — पंचतन्त्र | ||
* यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन | * यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन | ||
* शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है। — | * शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है। — डा॰ राजेन्द्र प्रसाद | ||
* बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात काट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते। - शम्स-ए-तबरेज़ | * बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात काट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते। - शम्स-ए-तबरेज़ | ||
* शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति । – स्वामी ज्ञानानन्द | * शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति । – स्वामी ज्ञानानन्द |
12:06, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण
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मेरा परिचय | |||||||||||||||
नाम --> डा॰ मनीष कुमार वैश्य जन्मदिन --> 8 जुलाई |
मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिंदी भाषी होने का गर्व है |
— डा॰ मनीष कुमार वैश्य |