"सूर्य व्रत": अवतरणों में अंतर
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*किसी शैव ब्राह्मण को कुंकुम से युक्त भोजन दान करना चाहिए। | *किसी शैव ब्राह्मण को कुंकुम से युक्त भोजन दान करना चाहिए। | ||
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*बीजकोष पर सूर्य प्रतिमा का स्थापन करना चाहिए। | *बीजकोष पर सूर्य प्रतिमा का स्थापन करना चाहिए। | ||
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*घी की आहुतियाँ देनी चाहिए, 108 बार [[सूर्य देवता|सूर्य]] को तथा 8 बार अन्य लोगों को नमस्कार करना चाहिए। | *[[घी]] की आहुतियाँ देनी चाहिए, 108 बार [[सूर्य देवता|सूर्य]] को तथा 8 बार अन्य लोगों को नमस्कार करना चाहिए। | ||
*एक वर्ष तक करना चाहिए। | *एक वर्ष तक करना चाहिए। | ||
*अन्त में गोदान एवं स्वर्ण दान करना चाहिए। | *अन्त में गोदान एवं स्वर्ण दान करना चाहिए। |
04:43, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- षष्ठी पर उपवास करना चाहिए।
- सप्तमी पर 'भास्कर प्रसन्न हों' के साथ में सूर्य पूजा करनी चाहिए।
- सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।[1]
- माघ में प्रात:काल स्नान करके तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी का पुष्पों, वस्त्रों, आभूषणों एवं भोज से सम्मान करना चाहिए।
- सौभाग्य तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।[2]
- जब आश्विन शुक्ल पक्ष के रविवार को चतुर्दशी में आरम्भ कर सकते हैं।
- देवता शिव, शिवलिंग के लिए विशिष्ट स्नान, लेप रूप में रोचना का प्रयोग तथा लाल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए।
- कपिला गाय के दूध एवं घी से नैवेद्य करना चाहिए।
- किसी शैव ब्राह्मण को कुंकुम से युक्त भोजन दान करना चाहिए।
- इससे पुत्रों की उत्पत्ति होती है।[3]
- रविवार को कर्ता और कर्म करता है तथा गुड़ एवं नमक से युक्त रोटियों से सूर्य की पूजा करता है और उस दिन नक्त रखता है।
- सभी कामनाओं की पूर्ति, सूर्य लोक की प्राप्ति होती है।[4]
- चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं सप्तमी पर सूर्य पूजा करनी चाहिए।
- श्वेत मिट्टी से एक वेदिका का निर्माण, जिस पर रंगीन चूर्णों से आठ दल वाले कमल की आकृति बनी हो करना चाहिए।
- बीजकोष पर सूर्य प्रतिमा का स्थापन करना चाहिए।
- पूर्व दिशा से आरम्भ कर आठ दिशाओं में अर्ध देवों, देवियों एवं मुनियों का चित्र खींचना तथा वसन्त से आरम्भ कर सभी 6 ऋतुओं में ऐसे दो को रखना चाहिए।
- घी की आहुतियाँ देनी चाहिए, 108 बार सूर्य को तथा 8 बार अन्य लोगों को नमस्कार करना चाहिए।
- एक वर्ष तक करना चाहिए।
- अन्त में गोदान एवं स्वर्ण दान करना चाहिए।
- सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
- यदि 12 वर्षों तक किया जाए तो सायुज्य की प्राप्ति होती है।[5]
- मार्गशीर्ष में (रविवार को) आरम्भ कर 12 मासों के लिए रखना चाहिए।
- लाल चन्दन से किसी ताम्रपत्र पर बीजकोष के साथ 12 दलों वाले कमल का चित्र तथा उस पर सूर्य पूजा करनी चाहिए।
- कतिपय मासों में देवता के विभिन्न नाम[6]नैवेद्य तथा कर्ता द्वारा खाया जाने वाला विशिष्ट पदार्थ चढ़ाना चाहिए।
- विभिन्न पाप से मुक्ति एवं कामनापूर्ति होती है।[7]
- यह वारव्रत है।
- सप्तमी को पूरे पौष भर नक्त तथा दोनों सप्तमियों पर उपवास करना चाहिए।
- पौष में सूर्य एवं अग्नि की प्रतिदिन तीन बार पूजा करनी चाहिए।[8]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 388-389)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 794, पद्मपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 444, मत्स्यपुराण 101|36-47 के समान ही)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 64-65, कालोत्तरपुराण से उद्धरण)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 779-780, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 770-774, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 1|167|11-15, 168|1-30 से उद्धरण)
- ↑ (यथा– मार्गशीर्ष में मित्र, पौष में विष्णु, माघ में वरुण आदि)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 552-557, सौरधर्म से उद्धरण)
- ↑ कृत्यरत्नाकर (475-476, भविष्यपुराण से उद्धरण
संबंधित लेख
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