"नवद्वीप": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "महत्व" to "महत्त्व") |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
नवद्वीप या नदिया मध्यकालीन [[बंगाल]] की राजधानी थी। 1204-05 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी|गोरी]] के अधीनस्थ सिपहसालार, इख्तियारुद्दीन-बिन बख़्तियार खिलजी ने बंगाल की राजधानी नदिया में प्रवेश किया, तो यहाँ का अकर्मण्य शासक लक्ष्मणसेन राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हुआ। बख़्तियार खिलजी ने मात्र 18 सैनिकों के दस्ते से यह करिश्मा कर दिखाया। | नवद्वीप या नदिया मध्यकालीन [[बंगाल]] की राजधानी थी। 1204-05 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी|गोरी]] के अधीनस्थ सिपहसालार, इख्तियारुद्दीन-बिन बख़्तियार खिलजी ने बंगाल की राजधानी नदिया में प्रवेश किया, तो यहाँ का अकर्मण्य शासक लक्ष्मणसेन राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हुआ। बख़्तियार खिलजी ने मात्र 18 सैनिकों के दस्ते से यह करिश्मा कर दिखाया। | ||
== | ==महत्त्व== | ||
नदिया का | नदिया का महत्त्व इसलिए है कि यहाँ 1485 ई. में [[चैतन्य महाप्रभु]] का जन्म हुआ। बंगाल में [[कृष्णभक्ति]] को लोकप्रिय बनाने में इस संत का सर्वाधिक योगदान रहा। चैतन्य ने भक्ति में संकीर्तन-विद्या को लोकप्रिय बनाया। इस युग में नवद्वीप [[संस्कृत]] विद्या और नव्य-न्याय का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। [[नालन्दा]] एवं [[विक्रमशिला]] के [[बौद्ध]] विश्वविद्यालयों के विध्वंस के बाद इसका महत्त्व बढ़ गया। यहाँ विद्वता तथा शिक्षण का ऊँचा स्तर कायम किया गया था। यहाँ उच्चतर शिक्षा के अनेक संस्थान थे। इनमें देश के विभिन्न भागों से आये छात्र-समूहों को प्रसिद्ध गुरु पढ़ाते थे। नवद्वीप में न्यायशास्त्र के अध्ययन के लिए [[भारत]] के कोने-कोने से लोग एकत्र होते थे। सोलहवीं शताब्दी बंगाली कवि वृन्दावनदास ने अपनी महान कृति '''चैतन्य भागवत''' में नवद्वीप का चित्रांकन शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में किया है। | ||
{{इन्हेंभीदेखें|चैतन्य महाप्रभु}} | {{इन्हेंभीदेखें|चैतन्य महाप्रभु}} | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} |
10:34, 13 मार्च 2011 का अवतरण
नवद्वीप या नदिया मध्यकालीन बंगाल की राजधानी थी। 1204-05 ई. में गोरी के अधीनस्थ सिपहसालार, इख्तियारुद्दीन-बिन बख़्तियार खिलजी ने बंगाल की राजधानी नदिया में प्रवेश किया, तो यहाँ का अकर्मण्य शासक लक्ष्मणसेन राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हुआ। बख़्तियार खिलजी ने मात्र 18 सैनिकों के दस्ते से यह करिश्मा कर दिखाया।
महत्त्व
नदिया का महत्त्व इसलिए है कि यहाँ 1485 ई. में चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ। बंगाल में कृष्णभक्ति को लोकप्रिय बनाने में इस संत का सर्वाधिक योगदान रहा। चैतन्य ने भक्ति में संकीर्तन-विद्या को लोकप्रिय बनाया। इस युग में नवद्वीप संस्कृत विद्या और नव्य-न्याय का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। नालन्दा एवं विक्रमशिला के बौद्ध विश्वविद्यालयों के विध्वंस के बाद इसका महत्त्व बढ़ गया। यहाँ विद्वता तथा शिक्षण का ऊँचा स्तर कायम किया गया था। यहाँ उच्चतर शिक्षा के अनेक संस्थान थे। इनमें देश के विभिन्न भागों से आये छात्र-समूहों को प्रसिद्ध गुरु पढ़ाते थे। नवद्वीप में न्यायशास्त्र के अध्ययन के लिए भारत के कोने-कोने से लोग एकत्र होते थे। सोलहवीं शताब्दी बंगाली कवि वृन्दावनदास ने अपनी महान कृति चैतन्य भागवत में नवद्वीप का चित्रांकन शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में किया है। इन्हें भी देखें: चैतन्य महाप्रभु
|
|
|
|
|