"कहावत लोकोक्ति मुहावरे-अ": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|-valign="top" | |-valign="top" | ||
| | | | ||
* अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। | * अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। | ||
* अकेला हँसता भला न रोता भला। | * अकेला हँसता भला न रोता भला। | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 39: | ||
* अपना मकान कोट (क़िले) समान। | * अपना मकान कोट (क़िले) समान। | ||
* अपना रख पराया चख। | * अपना रख पराया चख। | ||
* अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख। | * अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख। | ||
* अपना सा मुँह लेकर रह जाना। | * अपना सा मुँह लेकर रह जाना। | ||
पंक्ति 58: | पंक्ति 45: | ||
* अपनी करनी पार उतरनी। | * अपनी करनी पार उतरनी। | ||
* अपनी खाल में मस्त रहना। | * अपनी खाल में मस्त रहना। | ||
| | |||
* अपनी खिचड़ी अलग पकाना। | * अपनी खिचड़ी अलग पकाना। | ||
* अपनी गरज बावली। | * अपनी गरज बावली। |
12:59, 23 मई 2011 का अवतरण
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
दास मलूका कह गए सब के दाता राम॥
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।।
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
|
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।।
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।। |