"परमाल रासो": अवतरणों में अंतर

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*श्री रामचरण हयारण 'मित्र' ने अपनी कृति 'बुन्देलखण्ड की संस्कृति और साहित्य' में 'परमाल रासो' को [[चंदबरदाई|चन्द]] की स्वतन्त्र रचना माना है। किन्तु [[भाषा]], शैली एवं [[छन्द]] में - 'महोबा खण्ड' से यह काफी भिन्न है। उन्होंने टीकामगढ़ राज्य के वयोवृद्ध दरबारी कवि श्री 'अम्बिकेश' से इस रचना के कंठस्थ छन्द लेकर अपनी कृति में उदाहरण स्वरुप दिए हैं।  
*श्री रामचरण हयारण 'मित्र' ने अपनी कृति 'बुन्देलखण्ड की संस्कृति और साहित्य' में 'परमाल रासो' को [[चंदबरदाई|चन्द]] की स्वतन्त्र रचना माना है। किन्तु [[भाषा]], शैली एवं [[छन्द]] में - 'महोबा खण्ड' से यह काफी भिन्न है। उन्होंने टीकामगढ़ राज्य के वयोवृद्ध दरबारी कवि श्री 'अम्बिकेश' से इस रचना के कंठस्थ छन्द लेकर अपनी कृति में उदाहरण स्वरुप दिए हैं।  
*रचना के एक छन्द में समय की सूचना दी गई है जिसके अनुसार इसे 1115 वि. की रचना बताया गया है जो [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] एवं चन्द के समय की तिथियों से मेल नहीं खाती। इस आधार पर इसे चन्द की रचना कैसे माना जा सकता है। यह इसे 'परमाल चन्देल' के दरबारी कवि 'जगनिक' की रचना माने तो जगनिक का रासो कही भी उपलब्ध नहीं होता है।
*रचना के एक छन्द में समय की सूचना दी गई है जिसके अनुसार इसे 1115 वि. की रचना बताया गया है जो [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] एवं चन्द के समय की तिथियों से मेल नहीं खाती। इस आधार पर इसे चन्द की रचना कैसे माना जा सकता है। यह इसे 'परमाल चन्देल' के दरबारी कवि 'जगनिक' की रचना माने तो जगनिक का रासो कही भी उपलब्ध नहीं होता है।
*स्वर्गीय महेन्द्रपाल सिंह ने अपने एक लेख में लिखा है कि '''जगनिक का असली रासो अनुपलब्ध है।''' इसके कुछ हिस्से दतिया, समथर एवं चरखारी राज्यों में वर्तमान थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं।
*स्वर्गीय महेन्द्रपाल सिंह ने अपने एक लेख में लिखा है कि '''जगनिक का असली रासो अनुपलब्ध है।''' इसके कुछ हिस्से दतिया, समथर एवं चरखारी राज्यों में वर्तमान थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं।<ref>{{cite web |url=http://knowhindi.blogspot.com/2011/02/blog-post_4165.html |title=रासो काव्य : वीरगाथायें|accessmonthday=15 मई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 


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13:42, 30 मई 2011 का अवतरण

  • इस ग्रन्थ की मूल प्रति कहीं नहीं मिलती।
  • इसके रचयिता के बारे में भी विवाद है।
  • पर इसके 'महोबा खण्ड' को सं. 1976 वि. में डॉ. श्यामसुन्दर दास ने 'परमाल रासो' के नाम से संपादित किया था।
  • डॉ. माता प्रसाद गुप्त के अनुसार यह रचना सोलहवीं शती विक्रमी की हो सकती है।
  • इस रचना के सम्बन्ध में काफी मतभेद है।
  • श्री रामचरण हयारण 'मित्र' ने अपनी कृति 'बुन्देलखण्ड की संस्कृति और साहित्य' में 'परमाल रासो' को चन्द की स्वतन्त्र रचना माना है। किन्तु भाषा, शैली एवं छन्द में - 'महोबा खण्ड' से यह काफी भिन्न है। उन्होंने टीकामगढ़ राज्य के वयोवृद्ध दरबारी कवि श्री 'अम्बिकेश' से इस रचना के कंठस्थ छन्द लेकर अपनी कृति में उदाहरण स्वरुप दिए हैं।
  • रचना के एक छन्द में समय की सूचना दी गई है जिसके अनुसार इसे 1115 वि. की रचना बताया गया है जो पृथ्वीराज एवं चन्द के समय की तिथियों से मेल नहीं खाती। इस आधार पर इसे चन्द की रचना कैसे माना जा सकता है। यह इसे 'परमाल चन्देल' के दरबारी कवि 'जगनिक' की रचना माने तो जगनिक का रासो कही भी उपलब्ध नहीं होता है।
  • स्वर्गीय महेन्द्रपाल सिंह ने अपने एक लेख में लिखा है कि जगनिक का असली रासो अनुपलब्ध है। इसके कुछ हिस्से दतिया, समथर एवं चरखारी राज्यों में वर्तमान थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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