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1848 ई. में अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी [[गवर्नर जनरल]] बन कर [[भारत]] आया। उसका शासन काल आधुनिक भारतीय इतिहास में एक स्मरणीय काल रहा क्योंकि उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। [[डलहौज़ी नगर]], औपनिवेशक भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर ही पड़ा है।
1848 ई. में '''लॉर्ड डलहौज़ी''', जिसे 'अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी' भी कहा जाता था, [[गवर्नर-जनरल]] बनकर [[भारत]] आया। उसका शासन काल आधुनिक भारतीय इतिहास में एक स्मरणीय काल रहा क्योंकि उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर [[अंग्रेज़]] साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतीय रियासतों को तीन भागों में विभाजित किया था। वह भारतीय रियासतों की उपाधियों व पदवियों पर सदा ही प्रहार करता रहा। डलहौज़ी ने [[मुग़ल]] सम्राट की उपाधि भी छीनने की कोशिश की थी, पर अपने इस कार्य में वह सफल नहीं हो सका। [[डलहौज़ी नगर]], औपनिवेशक भारत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल, लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर ही पड़ा है।
==डलहौज़ी के समय में प्राप्त महत्त्वपूर्ण सफलताएं==
==महत्त्वपूर्ण सफलताएँ==
डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं।
लॉर्ड डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं इस प्रकार से हैं:-
*द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848-49) तथा पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय (1849 ई.) डलहौज़ी की प्रथम सफलता थी। मुल्तान के गर्वनर मुलराज के विद्रोह, दो अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या और हज़ारा के सिक्ख गर्वनर चतर सिंह के विद्रोह ने पंजाब में सर्वत्र अंग्रेज़ विरोध की स्थिति पैदा कर दी थी। अतः डलहौज़ी ने द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के पश्चात् 29 मार्च, 1849 की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय किया। महाराजा दिलीप सिंह को पेन्शन दे दी गयी। इस युद्ध के विषय में डलहौज़ी ने कहा था कि 'सिखों ने युद्ध माँगा है, यह युद्ध प्रतिशोध सहित लड़ा जायगा।'
#[[आंग्ल-सिक्ख युद्ध द्वितीय|द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध]] तथा [[पंजाब]] का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय (1849 ई.) डलहौज़ी की प्रथम सफलता थी।
*डलहौज़ी ने सिक्किम पर दो अंग्रेज़ डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर अधिकार कर लिया (1850 ई.)।
#[[मुल्तान]] के गर्वनर मूलराज के विद्रोह, दो अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या और हज़ारा के [[सिक्ख]] गर्वनर, चतर सिंह के विद्रोह ने पंजाब में सर्वत्र अंग्रेज़ विरोध की स्थिति पैदा कर दी थी। अतः डलहौज़ी ने द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के पश्चात् [[29 मार्च]], 1849 ई. की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लिया।
*लोअर बर्मा तथा पीगू का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय डलहौज़ी के समय में ही किया गया। उसके समय में ही द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम था बर्मा की हार तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय (1852 ई.)।  
#महाराजा [[दलीप सिंह]] को पेन्शन दे दी गयी। इस युद्ध के विषय में डलहौज़ी ने कहा था कि, 'सिक्खों ने युद्ध माँगा है, यह युद्ध प्रतिशोध सहित लड़ा जायगा।'
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#लॉर्ड डलहौज़ी ने [[सिक्किम]] पर दो अंग्रेज़ डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर उस पर अधिकार कर लिया (1850 ई.)।
डलहौज़ी के शासन काल को उसके '''व्यपगत सिद्धान्त''' के कारण अधिक याद किया गया है। इसने भारतीय रियासतों को तीन भागों में बाँटा:-
#लोअर बर्मा तथा पीगू का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय डलहौज़ी के समय में ही किया गया।
*'''प्रथम वर्ग''' में ऐसी रियासतें शामिल थीं जिसने न तो अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की थी और न ही '''कर''' देती थीं।
#उसके समय में ही द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम था, बर्मा की हार तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय (1852 ई.)।  
*'''द्वितीय वर्ग''' में ऐसी रियासतें (भारतीय) सम्मिलित थीं जो पहले मुग़लों एवं पेशावाओं के अधीन थीं, पर वर्तमान समय में अंग्रेज़ों के अधींनस्थ थीं।
====भारतीय रियासतों का विभाजन====
*'''तृतीय वर्ग''' में ऐसी रियासतें शामिल थीं जिसे अंग्रेज़ों ने सनदों द्वारा स्थापित किया था।
लॉर्ड डलहौज़ी के शासन काल को उसके 'व्यपगत सिद्धान्त' के कारण अधिक याद किया गया है। इसने भारतीय रियासतों को तीन भागों में बाँटा था:-
डलहौज़ी ने यह तय किया कि प्रथम वर्ग या श्रेणी में रियासतें हैं जिनके गोद लेने के अधिकार को हम नहीं छीन सकते। दूसरे वर्ग या श्रेणी के अन्तर्गत आने वाली रियासतों को हमारी आज्ञा से गोद लेने का अधिकार मिल सकेगा, हम इस मामलें में अनुमति दे भी सकते हैं और नहीं भी; वैसे प्रयास अनुमति देने का ही रहेगा, परन्तु तीसरी श्रेणी या वर्ग की रियासतों को उत्तराधिकार में गोद लेने की अनुमति कदापि नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय रियासतों का इन तीन वर्गो में विभाजन डलहौज़ी ने अपनी मर्जी से किया। इस प्रकार डलहौज़ी ने अपने विलय की नीति से भारत की प्राकृतिक सीमाओं तक अंग्रेज़ी राज्य का विस्तार कर दिया।
#'''प्रथम वर्ग''' - इस वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं, जिसने न तो अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की थी, और न ही 'कर' देती थीं।
#'''द्वितीय वर्ग''' - इस वर्ग में ऐसी रियासतें (भारतीय) सम्मिलित थीं, जो पहले [[मुग़ल|मुग़लों]] एवं [[पेशवा|पेशावाओं]] के अधीन थीं, पर वर्तमान समय में अंग्रेज़ों के अधींनस्थ थीं।
#'''तृतीय वर्ग''' - इस वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं, जिसे अंग्रेज़ों ने सनदों द्वारा स्थापित किया था।
 
डलहौज़ी ने यह तय किया कि, प्रथम वर्ग या श्रेणी में जो रियासतें हैं, जिनके गोद लेने के अधिकार को हम नहीं छीन सकते। दूसरे वर्ग या श्रेणी के अन्तर्गत आने वाली रियासतों को हमारी आज्ञा से गोद लेने का अधिकार मिल सकेगा। हम इस मामलें में अनुमति दे भी सकते हैं और नहीं भी; वैसे प्रयास अनुमति देने का ही रहेगा, परन्तु तीसरी श्रेणी या वर्ग की रियासतों को उत्तराधिकार में गोद लेने की अनुमति कदापि नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय रियासतों का इन तीन वर्गों में विभाजन लॉर्ड डलहौज़ी ने अपनी मर्जी से किया। इस प्रकार डलहौज़ी ने अपने विलय की नीति से [[भारत]] की प्राकृतिक सीमाओं तक अंग्रेज़ी राज्य का विस्तार कर दिया।
==विलय किये गये राज्य==
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डलहौज़ी ने उपाधियों तथा पेंशनों पर प्रहार करते हुए 1853 ई. में [[कर्नाटक]] के नवाब की पेंशन बंद करवा दी। 1855 ई. में तंजौर के राजा की मृत्यु होने पर उसकी उपाधि छीन ली। डलहौज़ी मुग़ल सम्राट की भी उपाधि छीनना चाहता था, परन्तु सफल नहीं हो सका। उसने पेशवा [[बाजीराव द्वितीय]] की 1853 ई. में मृत्यु होने पर उसके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि पेंशन पेशवा को नहीं, बल्कि बाजीराव द्वितीय को व्यक्तिगत रूप से दी गयी थी। [[हैदराबाद]] के निज़ाम का कर्ज़ अदा करने में अपने को असमर्थ पाकर 1853 ई. में [[बरार]] का अंग्रेज़ी राज्य में विलय कर लेने दिया। 1856 ई. में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर [[लखनऊ]] के रेजीडेन्ट आउट्रम ने [[अवध]] का विलय अंग्रेज़ी साम्राज्य में करवा दिया, उस समय अवध का नवाब वाजिद अली शाह था।
डलहौज़ी ने उपाधियों तथा पेंशनों पर प्रहार करते हुए 1853 ई. में [[कर्नाटक]] के नवाब की पेंशन बंद करवा दी। 1855 ई. में तंजौर के राजा की मृत्यु होने पर उसकी उपाधि छीन ली। डलहौज़ी मुग़ल सम्राट की भी उपाधि छीनना चाहता था, परन्तु सफल नहीं हो सका। उसने पेशवा [[बाजीराव द्वितीय]] की 1853 ई. में मृत्यु होने पर उसके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि पेंशन पेशवा को नहीं, बल्कि बाजीराव द्वितीय को व्यक्तिगत रूप से दी गयी थी। [[हैदराबाद]] के निज़ाम का कर्ज़ अदा करने में अपने को असमर्थ पाकर 1853 ई. में [[बरार]] का अंग्रेज़ी राज्य में विलय कर लेने दिया। 1856 ई. में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर [[लखनऊ]] के रेजीडेन्ट आउट्रम ने [[अवध]] का विलय अंग्रेज़ी साम्राज्य में करवा दिया, उस समय अवध का नवाब वाजिद अली शाह था।
अपने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने भारत के गर्वनर जनरल के कार्य भार को कम करने के लिए बंगाल में एक लेफ्टिनेंट गर्वनर की नियुक्ति की व्यवस्था की। उन नये प्रदेशों, जिन्हे हाल में ही ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था की जिसे ‘नाॅन रेगुलेशन प्रणाली’ कहा गया। इसके अन्तर्गत प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गर्वनर जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।
सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने तोपखाने के मुख्यालय को कलकत्ता से मेरठ स्थानान्तरित किया और सेना का मुख्यालय शिमला में स्थापित किया। यह सब कार्य डलहौजी ने 1856 में किया। डलहौजी ने सेना में भारतीय सैनिकों की कटौती एवं ब्रिटिश सैनिकों की वृद्धि की। उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजिमेंट के सैनिकों की संख्या में वृद्धि की।
शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में डलहौजी ने 1854 ई. में वुड डिस्पेच को लागू किया। प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनायी गयी। इसके तहत जिलों में एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल, प्रमुख नगरों में सरकारी काॅलेजों तथा तीन प्रसीडेंसियों-कलकत्ता, मद्रास एवं बम्बई में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किये और साथ ही प्रत्येक प्रदेश में एक शिक्षा निदेशक नियुक्त किया गया।
डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक माना जाता है क्योंकि उसी के प्रयत्नों के फलस्वरूप महाराष्ट्र में 1853 ईमें बम्बई से थाणें तक प्रथम रेलगाड़ी चलायी गयी। रेल व्यवस्था डलहौजी के व्यक्गित प्रयासों का प्रतिफल थी। अंग्रेजों ने इसमें खूब पूंजी लगाई। डलहौजी को भारत में विद्युत तार की भी शुरुआत करने का श्रेय प्राप्त है। 1852 में उसने ओ, शैधनेसी को विद्युल तार विभाग की अध्यक्षता सौंपी।
डाक विभाग में सुधार करते हुए डलहौजी ने 1854 इ्र. में नया ‘पोस्ट आॅफिस एक्ट’ पास किया। इस एक्ट के तहत तीनों प्रेसीडेंसियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। देश के अन्दर 2 पैसे की दर से पत्र भेजने की व्यवस्था की गई। पहली बार डलहौजी ने भारत में डाक टिकटों का प्रचलन प्रारम्भ किया।
डलहौजी ने पृथक् रूप से भारत में पहली बार ‘सार्वजनिक निर्माण विभाग’ की स्थापना की। गंगा नहर का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया। पंजाब में बारी दोआब नहर पर निर्माण कार्य की शुरुआत की गई। डलहौजी ने ग्राण्ड ट्रंक रोड का निर्माण कार्य भी पुनः शुरू करवाया।
वाणिज्यिक सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया। कराची, कलकत्ता एवं बम्बई के बन्दरगाहों को आधुनिक बनाने के प्रयास किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर डलहौजी ने 1854 ई. में एक स्वतंत्र विभाग के रूप में ‘सार्वजनिक निर्माण
विभाग’ की स्थापना कीं




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==संबंधित लेख==
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{{अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय}}
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08:50, 26 जुलाई 2011 का अवतरण

लॉर्ड डलहौज़ी
Lord Dalhousie

1848 ई. में लॉर्ड डलहौज़ी, जिसे 'अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी' भी कहा जाता था, गवर्नर-जनरल बनकर भारत आया। उसका शासन काल आधुनिक भारतीय इतिहास में एक स्मरणीय काल रहा क्योंकि उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर अंग्रेज़ साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतीय रियासतों को तीन भागों में विभाजित किया था। वह भारतीय रियासतों की उपाधियों व पदवियों पर सदा ही प्रहार करता रहा। डलहौज़ी ने मुग़ल सम्राट की उपाधि भी छीनने की कोशिश की थी, पर अपने इस कार्य में वह सफल नहीं हो सका। डलहौज़ी नगर, औपनिवेशक भारत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल, लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर ही पड़ा है।

महत्त्वपूर्ण सफलताएँ

लॉर्ड डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं इस प्रकार से हैं:-

  1. द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध तथा पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय (1849 ई.) डलहौज़ी की प्रथम सफलता थी।
  2. मुल्तान के गर्वनर मूलराज के विद्रोह, दो अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या और हज़ारा के सिक्ख गर्वनर, चतर सिंह के विद्रोह ने पंजाब में सर्वत्र अंग्रेज़ विरोध की स्थिति पैदा कर दी थी। अतः डलहौज़ी ने द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के पश्चात् 29 मार्च, 1849 ई. की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लिया।
  3. महाराजा दलीप सिंह को पेन्शन दे दी गयी। इस युद्ध के विषय में डलहौज़ी ने कहा था कि, 'सिक्खों ने युद्ध माँगा है, यह युद्ध प्रतिशोध सहित लड़ा जायगा।'
  4. लॉर्ड डलहौज़ी ने सिक्किम पर दो अंग्रेज़ डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर उस पर अधिकार कर लिया (1850 ई.)।
  5. लोअर बर्मा तथा पीगू का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय डलहौज़ी के समय में ही किया गया।
  6. उसके समय में ही द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम था, बर्मा की हार तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय (1852 ई.)।

भारतीय रियासतों का विभाजन

लॉर्ड डलहौज़ी के शासन काल को उसके 'व्यपगत सिद्धान्त' के कारण अधिक याद किया गया है। इसने भारतीय रियासतों को तीन भागों में बाँटा था:-

  1. प्रथम वर्ग - इस वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं, जिसने न तो अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की थी, और न ही 'कर' देती थीं।
  2. द्वितीय वर्ग - इस वर्ग में ऐसी रियासतें (भारतीय) सम्मिलित थीं, जो पहले मुग़लों एवं पेशावाओं के अधीन थीं, पर वर्तमान समय में अंग्रेज़ों के अधींनस्थ थीं।
  3. तृतीय वर्ग - इस वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं, जिसे अंग्रेज़ों ने सनदों द्वारा स्थापित किया था।

डलहौज़ी ने यह तय किया कि, प्रथम वर्ग या श्रेणी में जो रियासतें हैं, जिनके गोद लेने के अधिकार को हम नहीं छीन सकते। दूसरे वर्ग या श्रेणी के अन्तर्गत आने वाली रियासतों को हमारी आज्ञा से गोद लेने का अधिकार मिल सकेगा। हम इस मामलें में अनुमति दे भी सकते हैं और नहीं भी; वैसे प्रयास अनुमति देने का ही रहेगा, परन्तु तीसरी श्रेणी या वर्ग की रियासतों को उत्तराधिकार में गोद लेने की अनुमति कदापि नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय रियासतों का इन तीन वर्गों में विभाजन लॉर्ड डलहौज़ी ने अपनी मर्जी से किया। इस प्रकार डलहौज़ी ने अपने विलय की नीति से भारत की प्राकृतिक सीमाओं तक अंग्रेज़ी राज्य का विस्तार कर दिया।

विलय किये गये राज्य

डलहौज़ी द्वारा विलय किये गये राज्य
राज्य वर्ष
सतारा 1848 ई.
जैतपुर, संभलपुर 1849 ई.
बघाट 1850 ई.
उदयपुर 1852 ई.
झाँसी 1853 ई.
नागपुर 1854 ई.
करौली 1855 ई.
अवध 1856 ई.

व्यपगत सिद्धान्त के अनुसार विलय किया गया प्रथम राज्य सतारा था। सतारा के राजा अप्पा साहिब ने अपनी मृत्यु के कुछ समय पूर्व कम्पनी की अनुमति के बिना एक दत्तक पुत्र बना लिया था। डलहौज़ी ने इसे आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय कर लिया। कामन्स सभा में जोसेफ ह्नूम ने इस विलय को "जिसकी लाठी उसकी भैंस" की संज्ञा दी थी। इसी प्रकार संभलपुर के राजा नारायण सिंह, झांसी के राजा गंगाधर राव और नागपुर के राजा रघुजी तृतीय के राज्यों का विलय क्रमशः 1849, 1853 एवं 1854 ई. में उनके पुत्र या उत्तराधिकारी के अभाव में किया गया। उन्हें दत्तक पुत्र की अनुमति नहीं दी गयी।

डलहौज़ी ने उपाधियों तथा पेंशनों पर प्रहार करते हुए 1853 ई. में कर्नाटक के नवाब की पेंशन बंद करवा दी। 1855 ई. में तंजौर के राजा की मृत्यु होने पर उसकी उपाधि छीन ली। डलहौज़ी मुग़ल सम्राट की भी उपाधि छीनना चाहता था, परन्तु सफल नहीं हो सका। उसने पेशवा बाजीराव द्वितीय की 1853 ई. में मृत्यु होने पर उसके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि पेंशन पेशवा को नहीं, बल्कि बाजीराव द्वितीय को व्यक्तिगत रूप से दी गयी थी। हैदराबाद के निज़ाम का कर्ज़ अदा करने में अपने को असमर्थ पाकर 1853 ई. में बरार का अंग्रेज़ी राज्य में विलय कर लेने दिया। 1856 ई. में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर लखनऊ के रेजीडेन्ट आउट्रम ने अवध का विलय अंग्रेज़ी साम्राज्य में करवा दिया, उस समय अवध का नवाब वाजिद अली शाह था।

अपने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने भारत के गर्वनर जनरल के कार्य भार को कम करने के लिए बंगाल में एक लेफ्टिनेंट गर्वनर की नियुक्ति की व्यवस्था की। उन नये प्रदेशों, जिन्हे हाल में ही ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था की जिसे ‘नाॅन रेगुलेशन प्रणाली’ कहा गया। इसके अन्तर्गत प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गर्वनर जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।

सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने तोपखाने के मुख्यालय को कलकत्ता से मेरठ स्थानान्तरित किया और सेना का मुख्यालय शिमला में स्थापित किया। यह सब कार्य डलहौजी ने 1856 में किया। डलहौजी ने सेना में भारतीय सैनिकों की कटौती एवं ब्रिटिश सैनिकों की वृद्धि की। उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजिमेंट के सैनिकों की संख्या में वृद्धि की।

शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में डलहौजी ने 1854 ई. में वुड डिस्पेच को लागू किया। प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनायी गयी। इसके तहत जिलों में एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल, प्रमुख नगरों में सरकारी काॅलेजों तथा तीन प्रसीडेंसियों-कलकत्ता, मद्रास एवं बम्बई में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किये और साथ ही प्रत्येक प्रदेश में एक शिक्षा निदेशक नियुक्त किया गया।

डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक माना जाता है क्योंकि उसी के प्रयत्नों के फलस्वरूप महाराष्ट्र में 1853 ईमें बम्बई से थाणें तक प्रथम रेलगाड़ी चलायी गयी। रेल व्यवस्था डलहौजी के व्यक्गित प्रयासों का प्रतिफल थी। अंग्रेजों ने इसमें खूब पूंजी लगाई। डलहौजी को भारत में विद्युत तार की भी शुरुआत करने का श्रेय प्राप्त है। 1852 में उसने ओ, शैधनेसी को विद्युल तार विभाग की अध्यक्षता सौंपी।

डाक विभाग में सुधार करते हुए डलहौजी ने 1854 इ्र. में नया ‘पोस्ट आॅफिस एक्ट’ पास किया। इस एक्ट के तहत तीनों प्रेसीडेंसियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। देश के अन्दर 2 पैसे की दर से पत्र भेजने की व्यवस्था की गई। पहली बार डलहौजी ने भारत में डाक टिकटों का प्रचलन प्रारम्भ किया।

डलहौजी ने पृथक् रूप से भारत में पहली बार ‘सार्वजनिक निर्माण विभाग’ की स्थापना की। गंगा नहर का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया। पंजाब में बारी दोआब नहर पर निर्माण कार्य की शुरुआत की गई। डलहौजी ने ग्राण्ड ट्रंक रोड का निर्माण कार्य भी पुनः शुरू करवाया।

वाणिज्यिक सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया। कराची, कलकत्ता एवं बम्बई के बन्दरगाहों को आधुनिक बनाने के प्रयास किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर डलहौजी ने 1854 ई. में एक स्वतंत्र विभाग के रूप में ‘सार्वजनिक निर्माण

विभाग’ की स्थापना कीं



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