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14:42, 30 जुलाई 2011 का अवतरण
‘श्रीकृष्ण गीतावली’ गोस्वामी तुलसीदास जी का ब्रजभाषा में रचित अत्यन्त मधुर व रसमय है। इस गीति-काव्य में कृष्ण महिमा का और कृष्ण - लीला का सुंदर गान किया गया है। कृष्ण की बाल्यावस्था और 'गोपी - उद्धव संवाद' के प्रसंग कवित्व वा शैली की दृष्टि से अत्यधिक सुंदर हैं।
पदसंख्या
इसमें कुल 61 पद हैं, जिनमें 20 बाललीला, 3 रूप-सौन्दर्य के, 9 विरह के, 27 उद्धव-गोपिका-संवाद या भ्रमरगीत के और 2 द्रौपदी-लज्जा - रक्षण के हैं। सभी पद परम सरस और मनोहर हैं। पदों में ऐसा स्वाभाविक सुन्दर और सजीव भावचित्रण है कि पढ़ते-पढ़ते लीला-प्रसंग मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है।
तुलसीदास का कृष्ण प्रेम
गोस्वामीजी के इस ग्रन्थ से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम - रूप के अनन्योपासक होने पर भी श्रीगोस्वामी जी भगवान श्री रामभद्र और भगवान श्रीकृष्णचन्द्र में सदा अभेदबुद्धि रखते थे और दोनों ही स्वरूपों का तथा उनकी लीलाओं का वर्णन करने में अपने को कृतकृत्य तथा धन्य मानते थे। ‘विनयपत्रिका’ आदि में भी श्रीकृष्ण का महत्त्व कई जगह आया है, पर श्रीकृष्णगीतावली में तो वह प्रत्यक्ष प्रकट हो गया है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीकृष्णगीतावली (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2011।