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11:00, 2 अगस्त 2011 का अवतरण
जमदग्नि एक ऋषि थे जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा जिनकी गणना 'सप्तऋषियों' में होती है। इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र, विष्णु के अवतार परशुराम शिव के परम भक्त थे।
पुराणों के अनुसार
हिंडन नदी के तट पर प्रकृति की गोद में स्थापित परशुरामेश्वर मंदिर काफ़ी पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार जिस स्थान पर यह मंदिर है, वह पहले कभी 'कजरी वन' के नाम से जाना जाता था। पुराणों के अनुसार हिंडन नदी को 'पंचतीर्थी' कहा गया है। पंचतीर्थी के किनारे कजरी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। एक दिन जमदग्नि ऋषि की अनुपस्थिति में हस्तिनापुर के राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम के निकट पहुंच गये। रेणुका उनको आदर के साथ आश्रम में लायी। यहां कामधेनु के दूध से उनका सत्कार किया। सहस्रबाहु को कामधेनु की खूबियों का पता चला तो वह उसे जबरन ले जाने लगा। वह इस प्रयास में सफल नहीं हुआ तो रेणुका को जबरन अपने साथ ले गया। बाद में ऋषि पत्नी को सहस्रबाहु ने मुक्त कर दिया। वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुंची तो ऋषि ने उन्हें अपनाने से इन्कार कर दिया। ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को रेणुका का सिर काटने का आदेश दिया तो उन्होंने मना कर दिया। ऋषि ने तीनों पुत्रों को पत्थर का बनने का शाप दिया। चौथे पुत्र परशुराम को अपनी माता का सिर कलम करने का आदेश दिया तो उसने पिता की आज्ञा स्वीकार करते रेणुका का सिर कलम कर दिया। परशुराम को पश्चाताप हुआ तो उन्होंने शिवलिंग स्थापित कर घोर तपस्या शुरू कर दी। एक दिन भगवान शिव ने परशुराम को दर्शन दिये। शिवजी ने परशुराम को रेणुका के जीवित होने का वरदान दिया और एक फरसा देते हुए कहा कि वह जिस भी युद्ध में लड़ेगा जीत अवश्य होगी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ परशुराम ने किया था पुरा में शिवलिंग स्थापित (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2मई, 2011।
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