लोपामुद्रा

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एक वैदिक मंत्रद्रष्टाऔर ऋषि-पत्नि जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी आया है। यह विदर्भराज की कन्या थीं जिसका विवाह अगस्त्य मुनि के साथ हुआ था।

महाभारत के अनुसार

महाभारत की कथा के अनुसार अगस्त्य मुनि को अपने पितरों की मुक्ति के लिए विवाह करने की इच्छा हुई। अपने योग्य कोई कन्या न मिलने पर उन्होंने विभिन्न जंतुओं का उत्तमांश लेकर एक कन्या की रचना की और उसे संतान के लिए आतुर विदर्भराज को दे दिया। यही लोपामुद्रा थी। लोपामुद्रा के युवती होने पर अगस्त्य ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। राजा मुनि को कन्या नहीं देना चाहता था, पर उसे शाप का भी डर था।

इस पर लोपामुद्रा ने पिता से कहा, "मुझे मुनि को देकर आप अपनी रक्षा करें।"

अगस्त्य और लोपामुद्रा का विवाह हो गया। इनका इध्मवाहन नाम का पुत्र हुआ। दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है। वहाँ इसका नाम कृष्णेक्षणा है।

पुराणों के अनुसार

पुराणों के अनुसार लोपामुद्रा को काशी के राजा से विपुल सम्पत्ति प्राप्त हुई थी। 'आनन्द रामायण' में उसके पास अपरिमित मात्रा में अन्न देने वाली एक 'अक्षय थाली' होने का भी उल्लेख है।

अन्य ग्रंथ के अनुसार

एक अन्य उल्लेख में लोपामुद्रा को दक्षिण के पाण्यराजा मलयध्वज की पुत्री बताया गया है। अगस्त्य दक्षिण से ही अधिक सम्बन्धित थे। वनवास काल में राम लोपामुद्रा और अगस्त्य से मिलने उनके आश्रम में गए थे। ऋषि ने उन्हें धनुष, अक्षय तूरीण आदि उपहार में दिए थे।

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