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! style="width:30%"| कहावत लोकोक्ति मुहावरे
! style="width:70%"| अर्थ
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1- [[अजगर करे ना चाकरी|अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम]],<br />
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।
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अर्थ -  अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !
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|2- असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है<br />
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
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*    अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।
*    अकेला हँसता भला न रोता भला।
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*    अक्ल बड़ी या भैंस।
|3- [[अधजल गगरी छलकत जाय]]।
*    अक्‍ल का अंधा।
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*    अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता है, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज़्यादा करता है।
*    अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।
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* अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। <br />
|4- अति ऊँचे भू-धारन पर भुजगन के स्थान<br />
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
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अर्थ - [[तुलसीदास]] जी कहते हैं कि, खेती ऐसे ऊँचे स्थानों पर करनी चाहिए, जहाँ पर साँप रहते हों, पहाड़ों के ढाल पर उंख हो, वहीं पर अन्न और पान की अच्छी फ़सल होती है।
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|5- अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।<br />
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
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अर्थ - यदि द्वितीया का चन्द्रमा, आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहते हैं।
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|6- अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।<br />
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
*    अगर मगर करना।
*    अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
*  अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम।<br />
दास मलूका कह गए सब के दाता राम॥ [[अजगर करे ना चाकरी|...अर्थ पढ़ें]]
*    अटकलें भिड़ाना।
*    अटकेगा सो भटकेगा।
*    अठखेलियाँ सूझना।
*    अडियल टट्टू।
*    अड्डे पर चहकना।
*    अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
*    अढ़ाई दिन की बादशाहत।
*    अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
*    अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान। <br />
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।।
*    अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। <br />
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
*    [[अधजल गगरी छलकत जाय]]।
*    अधर में लटकना या झूलना।
*    अनजान सुजान, सदा कल्याण।
*    अन्‍न जल उठ जाना।
*    अन्‍न न लगना।
*    अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
*    अपना अपना राग अलापना।
*    अपना उल्‍लू सीधा करना।
*    अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
*    अपना मकान कोट (क़िले) समान।
*    अपना रख पराया चख।
*    अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
*    अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
*    अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
*    अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
*    अपनी करनी पार उतरनी।
*    अपनी खाल में मस्‍त रहना।
|
|
*    अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
अर्थ - अगर वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो ख़ूब अन्न पैदा होगा।
*    अपनी गरज बावली।
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*    अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
|7- असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।<br />
*    अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
*    अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
|
*    अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अर्थ - अगर चैत माह में अश्विनी नक्षत्र में बारिश हो तो, वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाम मात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
*    अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
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*    अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
|8- असाढ़ मास आठें अंधियारी।<br />
*    अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
जो निकले बादर जल धारी।।<br />
*    अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
चन्दा निकले बादर फोड़।<br />
*    अपनी पगड़ी अपने हाथ,
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
*    अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
|
*    अपने किए का क्या इलाज।
अर्थ - अगर आषाढ़ माह की अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो, और चन्द्रमा बादलों से निकले तो बहुत आनन्ददायी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बारिश सी होगी।
*    अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
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*    अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
|9- असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।<br />
*    अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
*    अपने पैरों पर खड़ा होना।
*    अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
*    अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
*    अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
*    अब के बनिया देय उधार।
*    अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
*    अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
*    अबे-तबे करना।
*    अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
*    अभी दिल्ली दूर है।
*    अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
*    अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
*    अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
*    अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
*    असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। <br />
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।।
*    असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। <br />
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
*    असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। <br />
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
*    असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। <br />
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भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
अर्थ - अगर आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढ़का रहे, तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
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|95- अबे-तबे करना।
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अर्थ - आदर से न बोलना।
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|11- [[अंधों का हाथी]]
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अर्थ -किसी विषय का पूर्ण ज्ञान ना होना।
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|12- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
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अर्थ - अपनी बड़ाई आप ही करना।
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|13- अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
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अर्थ - समय रहते काम ना करना और नुक़सान हो जाने के बाद पछताना। जिससे कोई लाभ नहीं होता है।
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|14- अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत क…
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अर्थ - छोटे का बड़े को उपदेश देना।
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|15- अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे को॥
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अर्थ - परिश्रम कोई व्यक्ति करे और लाभ किसी दूसरे को हो जाए।
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|16-अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
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अर्थ - मूल वस्तु प्राप्य रहेगी तो उससे बनने वाली वस्तुएँ तो निश्चित ही प्राप्त होती रहेंगी।
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|17- अंत भला तो सब भला।
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अर्थ -  परिणाम अच्छा हो जाए, तो सभी कुछ अच्छा मान लिया जाता है।
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|18- अंत भले का भला।
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अर्थ - दूसरों की भलाई करने से अपना भी भला हो जाता है।
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|19- अढ़ाई दिन की बादशाहत।
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अर्थ - थोड़े दिन की शान-शौक़त।
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|20- अधर में लटकना या झूलना।
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अर्थ - द्विविधा में पड़ा रह जाना।
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|21- अन्‍न जल उठ जाना।
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अर्थ - किसी जगह से चले जाना।
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|22- अन्‍न न लगना।
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अर्थ - खा-पीकर भी मोटा न होना।
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|23- अपना-अपना राग अलापना।
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अर्थ - अपनी ही बातें कहना।
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|24- अपना उल्‍लू सीधा करना।
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अर्थ - अपना मतलब निकालना।
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|25- अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
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अर्थ - लज्जित होना।
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|26- अपनी खाल में मस्‍त रहना।
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अर्थ - अपनी दशा से संतुष्‍ट रहना।
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|27- अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
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अर्थ - अलग-थलग रहना।
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|28- अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
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अर्थ - अपना अहित स्वयं करना।
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|29- अपने पैरों पर खड़ा होना।
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अर्थ - स्‍वावलंबी होना।
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|30- अपने में न होना।
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अर्थ - होश में न होना।
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|31- अंधेर नगरी चौपट राजा, <br />
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
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अर्थ -  जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय होता ही है।
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|32- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
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अर्थ - अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता।
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|33- अकेला हँसता भला न रोता भला।
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अर्थ - सुख-दु:ख में साथी की आवश्यता पड़ती है, व्यक्ति ना अकेला रो सकता है और ना ही अकेला हँस सकता है।
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|34- अक्ल बड़ी या भैंस।
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अर्थ -  शारीरिक शक्ति का महत्त्व कम होता है, बुद्धि का अधिक।
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|35- अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
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अर्थ - बड़े–बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो जाते हैं, क्योंकि उनका अनुभव काम आता है।
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|36- अब के बनिया देय उधार।
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अर्थ - अपनी ज़रुरत आ पड़ती है, तो आदमी सब कुछ मान जाता है, हर शर्त स्वीकार कर लेता है।
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|37- अटकेगा सो भटकेगा।
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अर्थ -  दुविधा या सोच–विचार में पड़ जाते हैं, तो काम अधूरा ही रह जाता है।
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|38- अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
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अर्थ -  अनहोनी बात होना।
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|39- अनजान सुजान, सदा कल्याण।
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अर्थ - मूर्ख और ज्ञानी हमेशा सुखी रहते हैं।
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|40- अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना।
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अर्थ -  किसी के साथ साझा करना अच्छा नहीं होता।
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|41- अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
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अर्थ - अपने ढ़ेर सारे दुर्गण दिखायी नहीं देते हैं, और दूसरे के अवगुण की चर्चा करना।
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|42- अपना मकान कोट (क़िले) समान।
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अर्थ - अपने घर में जो सुख होता है, वह बाहर कहीं नहीं होता है।
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|43- अपना रख पराया चख।
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अर्थ - अपनी चीज़ सम्भाल कर रखना और दूसरों की चीज़ को इस्तेमाल करना।
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|44- अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख।
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अर्थ - अपनी चीज़ बहुमूल्य होती है, उसे खोकर व्यक्ति दूसरों का आश्रित हो जाता है।
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|45- अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
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अर्थ -  अपना ही सामान खराब हो तो दूसरों को दोष देना सही नहीं होता है।
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|46- अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
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अर्थ - व्यक्ति अपनी परिस्थिति से सतुष्ट रहे, शिकायत ना करे।
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|47- अपनी-अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना-अपना राग।
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अर्थ - सब अलग-अलग अपना मनमाना काम कर रहे हों।
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|48- अपनी करनी पार उतरनी।
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अर्थ -  खुद अपना किया काम ही फलदायक या लाभदायक होता है।
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|49- अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
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अर्थ - स्वार्थ के लिए व्यक्ति को छोटे आदमी की खुशामद भी करनी पड़ती है।
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|50- अपनी गरज बावली।
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अर्थ -  स्वार्थ में आदमी दूसरों की चिंता नहीं करता।
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|51- अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
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अर्थ - व्यक्ति का अपने घर में ही ज़ोर होता है।
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|52- अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
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अर्थ - आदमी स्वयं समर्थ हो तो किसी दूसरे पर आश्रित क्यों रहेगा।
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|53- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
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अर्थ - अपने ज़रा से लाभ के लिए किसी दूसरे की बड़ी हानि करना।
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|54- अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
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अर्थ - अपनी चीज़ को कोई बुरा नहीं बताता।
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|55- अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
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अर्थ -  अपने घर की बात दूसरों से कहने से व्यक्ति की खुद की ही बदनामी होती है।
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|56- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
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अर्थ -  पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना।
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|57- अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
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अर्थ - दुष्ट लोग दूसरों का नुक़सान करते ही हैं, भले ही उनका अपना भी कितना ही नुक़सान हो जाए।
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|58- अपनी पगड़ी अपने हाथ,
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अर्थ - अपनी इज्जत अपने हाथ होना।
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|59- अपने किए का क्या इलाज।
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अर्थ - अपने कर्म का फल खुद भोगना ही पड़ता है।
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|60- अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
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अर्थ -  अपनी कुशल देखो या अपनी भलाई देखो।
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|61- अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
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अर्थ - अपनी खराब चीज़ को भी कोई खराब नहीं कहता है।
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|62- अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
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अर्थ - अपनी बड़ाई खुद ही करना।
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|63- अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
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अर्थ - सदा वर्तमान में ही रहना चाहिए और आज की ही चिंता करनी चाहिए।
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|64- अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
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अर्थ - सारी उम्र तो व्यक्ति बुरे काम करता रहा और बाद में  संत बनकर बैठ जाए।
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|65-  अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
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अर्थ - अभी तो तुम्हारी उम्र कम है और अभी तुम बच्चे हो और नादान और अनजान हो।
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|66- अभी दिल्ली दूर है।
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अर्थ - अभी कसर बाकी है, अभी काम पूरा नहीं हुआ।
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|67- अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
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अर्थ - ग़रीब की जान के लाले पड़े हैं।
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|68- अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
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अर्थ -  मामूली वस्तु की रक्षा के लिए इतना बड़ा इन्तज़ाम।
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|69- अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
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अर्थ - ईश्वर की लीला देखिए- कोई सुखी है और कोई दु:खी है।
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|70- अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
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अर्थ - मूल्यवान वस्तु भले ही दे दें, पर छोटी-छोटी चीज़ों को बचा-बचा कर रखने की आदत।
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|31- अब तब करना।
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अर्थ -  टाल देना।
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|72- अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
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अर्थ - मूर्खता का काम करना। 
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|73- अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना। 
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अर्थ - समझ न रहना।
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|74- अगर-मगर करना।
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अर्थ - बहाना करना।
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|75- अटकलें भिड़ाना।
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अर्थ - उपाय सोचना।
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|76- अठखेलियाँ सूझना।
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अर्थ - हँसी-दिल्‍लगी करना।
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|77- अडियल टट्टू।
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अर्थ - हठी, जिद्दी।
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|78- अड्डे पर चहकना।
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अर्थ - अपने घर पर रोब दिखाना। 
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|79- अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
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अर्थ - सब से अलग सोच–विचार रखना।
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[[Category:कहावत लोकोक्ति मुहावरे]]
[[Category:कहावत लोकोक्ति मुहावरे]]
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09:44, 8 अगस्त 2011 का अवतरण

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                              अं                                                                                              क्ष    त्र    श्र
कहावत लोकोक्ति मुहावरे अर्थ

1- अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।

अर्थ - अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !

2- असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है

क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।

अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।

3- अधजल गगरी छलकत जाय

अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता है, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज़्यादा करता है।

4- अति ऊँचे भू-धारन पर भुजगन के स्थान

तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।

अर्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि, खेती ऐसे ऊँचे स्थानों पर करनी चाहिए, जहाँ पर साँप रहते हों, पहाड़ों के ढाल पर उंख हो, वहीं पर अन्न और पान की अच्छी फ़सल होती है।

5- अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।

चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

अर्थ - यदि द्वितीया का चन्द्रमा, आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहते हैं।

6- अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।

तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

अर्थ - अगर वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो ख़ूब अन्न पैदा होगा।

7- असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।

भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

अर्थ - अगर चैत माह में अश्विनी नक्षत्र में बारिश हो तो, वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाम मात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।

8- असाढ़ मास आठें अंधियारी।

जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

अर्थ - अगर आषाढ़ माह की अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो, और चन्द्रमा बादलों से निकले तो बहुत आनन्ददायी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बारिश सी होगी।

9- असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।

तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।

अर्थ - अगर आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढ़का रहे, तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।

95- अबे-तबे करना।

अर्थ - आदर से न बोलना।

11- अंधों का हाथी

अर्थ -किसी विषय का पूर्ण ज्ञान ना होना।

12- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।

अर्थ - अपनी बड़ाई आप ही करना।

13- अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।

अर्थ - समय रहते काम ना करना और नुक़सान हो जाने के बाद पछताना। जिससे कोई लाभ नहीं होता है।

14- अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत क…

अर्थ - छोटे का बड़े को उपदेश देना।

15- अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे को॥

अर्थ - परिश्रम कोई व्यक्ति करे और लाभ किसी दूसरे को हो जाए।

16-अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।

अर्थ - मूल वस्तु प्राप्य रहेगी तो उससे बनने वाली वस्तुएँ तो निश्चित ही प्राप्त होती रहेंगी।

17- अंत भला तो सब भला।

अर्थ - परिणाम अच्छा हो जाए, तो सभी कुछ अच्छा मान लिया जाता है।

18- अंत भले का भला।

अर्थ - दूसरों की भलाई करने से अपना भी भला हो जाता है।

19- अढ़ाई दिन की बादशाहत।

अर्थ - थोड़े दिन की शान-शौक़त।

20- अधर में लटकना या झूलना।

अर्थ - द्विविधा में पड़ा रह जाना।

21- अन्‍न जल उठ जाना।

अर्थ - किसी जगह से चले जाना।

22- अन्‍न न लगना।

अर्थ - खा-पीकर भी मोटा न होना।

23- अपना-अपना राग अलापना।

अर्थ - अपनी ही बातें कहना।

24- अपना उल्‍लू सीधा करना।

अर्थ - अपना मतलब निकालना।

25- अपना सा मुँह लेकर रह जाना।

अर्थ - लज्जित होना।

26- अपनी खाल में मस्‍त रहना।

अर्थ - अपनी दशा से संतुष्‍ट रहना।

27- अपनी खिचड़ी अलग पकाना।

अर्थ - अलग-थलग रहना।

28- अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।

अर्थ - अपना अहित स्वयं करना।

29- अपने पैरों पर खड़ा होना।

अर्थ - स्‍वावलंबी होना।

30- अपने में न होना।

अर्थ - होश में न होना।

31- अंधेर नगरी चौपट राजा,

टके सेर भाजी टके सेर खाजा।

अर्थ - जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय होता ही है।

32- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

अर्थ - अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता।

33- अकेला हँसता भला न रोता भला।

अर्थ - सुख-दु:ख में साथी की आवश्यता पड़ती है, व्यक्ति ना अकेला रो सकता है और ना ही अकेला हँस सकता है।

34- अक्ल बड़ी या भैंस।

अर्थ - शारीरिक शक्ति का महत्त्व कम होता है, बुद्धि का अधिक।

35- अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।

अर्थ - बड़े–बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो जाते हैं, क्योंकि उनका अनुभव काम आता है।

36- अब के बनिया देय उधार।

अर्थ - अपनी ज़रुरत आ पड़ती है, तो आदमी सब कुछ मान जाता है, हर शर्त स्वीकार कर लेता है।

37- अटकेगा सो भटकेगा।

अर्थ - दुविधा या सोच–विचार में पड़ जाते हैं, तो काम अधूरा ही रह जाता है।

38- अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।

अर्थ - अनहोनी बात होना।

39- अनजान सुजान, सदा कल्याण।

अर्थ - मूर्ख और ज्ञानी हमेशा सुखी रहते हैं।

40- अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना।

अर्थ - किसी के साथ साझा करना अच्छा नहीं होता।

41- अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।

अर्थ - अपने ढ़ेर सारे दुर्गण दिखायी नहीं देते हैं, और दूसरे के अवगुण की चर्चा करना।

42- अपना मकान कोट (क़िले) समान।

अर्थ - अपने घर में जो सुख होता है, वह बाहर कहीं नहीं होता है।

43- अपना रख पराया चख।

अर्थ - अपनी चीज़ सम्भाल कर रखना और दूसरों की चीज़ को इस्तेमाल करना।

44- अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख।

अर्थ - अपनी चीज़ बहुमूल्य होती है, उसे खोकर व्यक्ति दूसरों का आश्रित हो जाता है।

45- अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।

अर्थ - अपना ही सामान खराब हो तो दूसरों को दोष देना सही नहीं होता है।

46- अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।

अर्थ - व्यक्ति अपनी परिस्थिति से सतुष्ट रहे, शिकायत ना करे।

47- अपनी-अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना-अपना राग।

अर्थ - सब अलग-अलग अपना मनमाना काम कर रहे हों।

48- अपनी करनी पार उतरनी।

अर्थ - खुद अपना किया काम ही फलदायक या लाभदायक होता है।

49- अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।

अर्थ - स्वार्थ के लिए व्यक्ति को छोटे आदमी की खुशामद भी करनी पड़ती है।

50- अपनी गरज बावली।

अर्थ - स्वार्थ में आदमी दूसरों की चिंता नहीं करता।

51- अपनी गली में कुत्ता भी शेर।

अर्थ - व्यक्ति का अपने घर में ही ज़ोर होता है।

52- अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।

अर्थ - आदमी स्वयं समर्थ हो तो किसी दूसरे पर आश्रित क्यों रहेगा।

53- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।

अर्थ - अपने ज़रा से लाभ के लिए किसी दूसरे की बड़ी हानि करना।

54- अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।

अर्थ - अपनी चीज़ को कोई बुरा नहीं बताता।

55- अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।

अर्थ - अपने घर की बात दूसरों से कहने से व्यक्ति की खुद की ही बदनामी होती है।

56- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।

अर्थ - पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना।

57- अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।

अर्थ - दुष्ट लोग दूसरों का नुक़सान करते ही हैं, भले ही उनका अपना भी कितना ही नुक़सान हो जाए।

58- अपनी पगड़ी अपने हाथ,

अर्थ - अपनी इज्जत अपने हाथ होना।

59- अपने किए का क्या इलाज।

अर्थ - अपने कर्म का फल खुद भोगना ही पड़ता है।

60- अपने झोपड़े की खैर मनाओ।

अर्थ - अपनी कुशल देखो या अपनी भलाई देखो।

61- अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।

अर्थ - अपनी खराब चीज़ को भी कोई खराब नहीं कहता है।

62- अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।

अर्थ - अपनी बड़ाई खुद ही करना।

63- अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।

अर्थ - सदा वर्तमान में ही रहना चाहिए और आज की ही चिंता करनी चाहिए।

64- अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।

अर्थ - सारी उम्र तो व्यक्ति बुरे काम करता रहा और बाद में संत बनकर बैठ जाए।

65- अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।

अर्थ - अभी तो तुम्हारी उम्र कम है और अभी तुम बच्चे हो और नादान और अनजान हो।

66- अभी दिल्ली दूर है।

अर्थ - अभी कसर बाकी है, अभी काम पूरा नहीं हुआ।

67- अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।

अर्थ - ग़रीब की जान के लाले पड़े हैं।

68- अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।

अर्थ - मामूली वस्तु की रक्षा के लिए इतना बड़ा इन्तज़ाम।

69- अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।

अर्थ - ईश्वर की लीला देखिए- कोई सुखी है और कोई दु:खी है।

70- अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।

अर्थ - मूल्यवान वस्तु भले ही दे दें, पर छोटी-छोटी चीज़ों को बचा-बचा कर रखने की आदत।

31- अब तब करना।

अर्थ - टाल देना।

72- अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।

अर्थ - मूर्खता का काम करना।

73- अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।

अर्थ - समझ न रहना।

74- अगर-मगर करना।

अर्थ - बहाना करना।

75- अटकलें भिड़ाना।

अर्थ - उपाय सोचना।

76- अठखेलियाँ सूझना।

अर्थ - हँसी-दिल्‍लगी करना।

77- अडियल टट्टू।

अर्थ - हठी, जिद्दी।

78- अड्डे पर चहकना।

अर्थ - अपने घर पर रोब दिखाना।

79- अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।

अर्थ - सब से अलग सोच–विचार रखना।