"कहावत लोकोक्ति मुहावरे-अ": अवतरणों में अंतर

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|29- अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
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अर्थ - कटु वचन सत्य  होने पर भी बुरा लग जाता है।
अर्थ - कटु वचन सत्य  होने पर भी बुरा लग जाता है।
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|30- अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।
|30- अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।

13:50, 9 मई 2010 का अवतरण

कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें

                              अं                                                                                              क्ष    त्र    श्र
अर्थ - अपने ढ़ेर सारे दुर्गण दिखायी नहीं देते हैं और दूसरे के अवगुण की चर्चा करना।
कहावत लोकोक्ति मुहावरे अर्थ

1-अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।

अर्थ - अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !

2-असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है

क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।

अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।

3-अधजल गगरी छलकत जाय

अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज्यादा करता है।

4-अति ऊंचे भू-धारन पर भुजगन के स्थान

तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।

अर्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि खेती ऐसे ऊंचे स्थानों पर करनी चाहिए जहां पर सांप रहते हों, पहाड़ों के ढाल पर उंख हो, वहीं पर अन्न और पान की अच्छी फसल होती है।

5-असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है

क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।

अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।

6-अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।

चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

अर्थ - यदि द्वितीया का चन्द्रमा, आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहते हैं।

7- अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।

तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

अर्थ - अगर वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।

8-असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।

भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

अर्थ - अगर चैत माह में अश्विनी नक्षत्र में बारिश हो तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाम मात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।

9-असाढ़ मास आठें अंधियारी।जो निकले बादर जल धारी।।

चन्दा निकले बादर फोड़।साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

अर्थ - अगर आषाढ़ माह की अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों से निकले तो बहुत आनन्ददायी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बारिश सी होगी।

10- असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।

तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।

अर्थ - अगर आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढ़का रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।

11- अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर-फिर अपनों को दे।

अर्थ - अपने अधिकार का लाभ सिर्फ अपनों को ही पहुँचाना।

12- अधजल गगरी छलकत जाए।

अर्थ - ओछा आदमी थोड़ा सा ही गुण और धन होने पर इतराने लगता है्।

13- अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।

अर्थ - समय रहते काम ना करना और नुकसान हो जाने के बाद पछताना। जिससे कोई लाभ नहीं होता है।

14- अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत क…

अर्थ - छोटे का बड़े को उपदेश देना।

15- अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे को॥

अर्थ - परिश्रम कोई व्यक्ति करे और लाभ किसी दूसरे को हो जाए।

16-अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।

अर्थ - मूल वस्तु प्राप्य रहेगी तो उससे बनने वाली वस्तुएँ तो निश्चित ही प्राप्त होती रहेंगी।

17- अंत भला तो सब भला।

अर्थ - परिणाम अच्छा हो जाए तो सभी कुछ अच्छा मान लिया जाता है।

18-अंधा क्या चाहे, दो आँखें।

अर्थ - आवश्यक वस्तु की चाह सभी को होती है।

19- अंधा क्या जाने बसंत बहार।

अर्थ - जिसको दिखायी नहीं देता वह किसी दृश्य का आनंद कैसे ले सकता है। जो वस्तु नहीं देखी, उसका आनंद कैसे लिया जा सकता है।

20- अंधा पीसे कुत्ता‍ खाए।

अर्थ - एक की मजबूरी से दूसरे को लाभ हो जाता है। व्यक्ति की ना जानकारी से कोई भी लाभ उठा सकता है।

21- अंधा बगुला कीचड़ खाए।

अर्थ - अभागा व्यक्ति सुख से वंचित रह जाता है्।

22- अंधा राजा चौपट नगरी।

अर्थ - घर का मुखिया ही मूर्ख और लापरवाह हो तो घर उजड़ ही जाता है।

23- अंधा सिपाही कानी घोड़ी,

विधि ने खूब मिलाई जोड़ी।

अर्थ - दोनों साथियों में एक जैसे ही अवगुण होना।

24- अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पंडित।

अर्थ - दो मूर्ख परस्पर सहायता करें तो किसी का भी लाभ नहीं होता है।

25- अंधे की लकड़ी।

अर्थ - किसी बेसहारे का सहारा होना।

26- अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।

अर्थ - अंधे के सामने रोने से अपनी ही आँखें खराब होती हैं, जिसको आपसे सहानुभूति नहीं है उसके सामने अपना दुखड़ा रोना बेकार है।

27- अंधे के हाथ बटेर।

अर्थ - अनायास ही कोई वस्तु या सफलता मिल जाना।

28- अंत भले का भला।

अर्थ - दूसरों की भलाई करने से अपना भी भला हो जाता है।

29- अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।

अर्थ - कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लग जाता है।

30- अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।

अर्थ - जब कोई मूर्ख दूरदर्शिता की बात कहे या करे (व्यंग्य)

31- अंधेर नगरी चौपट राजा,

टके सेर भाजी टके सेर खाजा।

अर्थ - जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय होता ही है।

32- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

अर्थ - अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता।

33- अकेला हँसता भला न रोता भला।

अर्थ - सुख दु:ख में साथी की आवश्यता पड़ती है, व्यक्ति ना अकेला रो सकता है और ना ही अकेला हंस सकता है।

34- अक्ल बड़ी या भैंस।

अर्थ - शारीरिक शक्ति का महत्व कम होता है, बुद्धि का अधिक।

35- अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।

अर्थ - बड़े–बूढ़ों की सलाह से कार्य सिध्द हो जाते हैं क्योंकि उनका अनुभव काम आता है।

36- अब के बनिया देय उधार।

अर्थ - अपनी ज़रुरत आ पड़ती तो आदमी सब कुछ मान जाता है, हर शर्त स्वीकार कर लेता है।

37- अटकेगा सो भटकेगा।

अर्थ - दुविधा या सोच–विचार में पड़ जाते हैं तो काम अधूरा ही रह जाता है।

38- अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।

अर्थ - अनहोनी बात होना।

39- अनजान सुजान, सदा कल्याण।

अर्थ - मूर्ख और ज्ञानी हमेशा सुखी रहते हैं।

40- अपना-अपना कमाना,अपना-अपना खाना।

अर्थ - किसी के साथ साझा करना अच्छा नहीं होता।

41- अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
42- अपना मकान कोट (क़िले) समान।

अर्थ - अपने घर में जो सुख होता है वह बाहर कहीं नहीं होता है।

43- अपना रख पराया चख।

अर्थ - अपनी चीज़ सम्भाल कर रखना और दूसरों की चीज़ को इस्तेमाल करना।

44- अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख।

अर्थ - अपनी चीज़ बहुमूल्य होती है, उसे खोकर व्यक्ति दूसरों का आश्रित हो जाता है।

45- अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।

अर्थ - अपना ही सामान खराब हो तो दूसरों को दोष देना सही नहीं होता है।

46- अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।

अर्थ - व्यक्ति अपनी परिस्थिति से सतुष्ट रहे, शिकायत ना करे।

47- अपनी-अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना-अपना राग।

अर्थ - सब अलग-अलग अपना मनमाना काम कर रहे हों।

48- अपनी करनी पार उतरनी।

अर्थ - खुद अपना किया काम ही फलदायक या लाभदायक होता है।

49- अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।

अर्थ - स्वार्थ के लिए व्यक्ति को छोटे आदमी की खुशामद भी करनी पड़ती है।

50- अपनी गरज बावली।

अर्थ - स्वार्थ में आदमी दूसरों की चिंता नहीं करता।

51- अपनी गली में कुत्ता भी शेर।

अर्थ - व्यक्ति का अपने घर में ही ज़ोर होता है।

52- अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।

अर्थ - आदमी स्वयं समर्थ हो तो किसी दूसरे पर आश्रित क्यों रहेगा।