"प्रयोग:Asha": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
|-
|-
| style="width:30%"|
| style="width:30%"|
1- चोर की दाढ़ी में तिनका होना।
1- जो बोये गेहूं पांच पसेरी, मटर के बीघा तीन सेर,<br />
बोये चना पसेरी तीन, सेर तीन जुबारी कीन्ह,<br />
दो सेर मेथी अरहर माल, डेढ सेर बीघा बीज कपास,<br />
पांच पसेरी बीघा धान, खूब उपज भर कोटिला धान।
| style="width:70%"|
| style="width:70%"|
अर्थ -मन में पाप रखने वाला नज़रें नहीं मिला पाता।
अर्थ - एक बीघा में पांच सेर गेहूं,  मटर तीन सेर, चना तीन पसेरी,  ज्वार तीन सेर, अरहर और उड़द दो दो सेर बोना चाहिए। डेढ़ सेर कपास और धान पांच पसेरी बोया जाए तो अनाज की इतनी उपज होगी कि आपके भंडार भर जायेंगे।
|-
|-
|2- चोर चोरी से जाये, हेरा-फेरी से न जाये।
|2- जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।
|
|
अर्थ - बुरी आदतें मुश्किल से दूर होती हैं।
अर्थ -  
|-
|-
|3- चक्की  में कौर डालोगे तो चून पाओगे।
|3- जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।।
|
|
अर्थ - कुछ करोगे तो फल मिलेगा।
अर्थ - चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
|-
|-
|4- चट मँगनी पट ब्याह।
|4- जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती।।
|
|
अर्थ - तत्काल कार्य होना।
अर्थ - पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र की बारिश से किसान सुखी रहते है, उन्हें और तांत(चरखा) चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
|-
|-
|5- चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम।
|5- जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।।
|
|
अर्थ - किसी के कहने पर विपत्ति में पड़ना।
अर्थ - मघा नक्षत्र में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह पैदा होते हैं।
|-
|-
|6- चने के साथ कहीं घुन पिस जाए।
|6- जब बरसेगा उत्तरा। नाज खावै कुत्तरा।।
|
|
अर्थ - दोषी के साथ कहीं निर्दोष न मारा जाए।
अर्थ - यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुत्ते भी नहीं खाएंगे।
|-
|-
|7- चमगादड़ों के घर मेहमान आए,<br />
|7- जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
हम भी लटके तुम भी लटको।
|
|
अर्थ - गरीब आदमी क्या आवभगत करेगा।
अर्थ - ऐसे स्थान पर गुण प्रदर्शन न करें जहाँ कद्र न हो।
|-
|-
|8- चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
|8- जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं।
|
|
अर्थ -  बहुत कंजूसी करना।
अर्थ -  भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।
|-
|-
|9- चमार चमड़े का यार।
|9- जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ।
|
|
अर्थ - स्वार्थी व्यक्ति होना।।
अर्थ - सबसे थोड़ा-थोड़ा मिले तो काम पूरा हो जाता है।
|-
|-
|10- चरसी यार किसके दम लगाया खिसके।
|}
|10- जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं।
|
|
अर्थ - एकदम स्वार्थी होना। आदमी स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।।
अर्थ - कभी वस्तु  है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु  नहीं।।
|-
|-
|11- चलती का नाम गाड़ी है।
|11- जब तक जीना तब तक सीना।
|
|
अर्थ - जिसका काम चल निकले, उसी का बोलबाला है।
अर्थ - जीते-जी कोई न कोई काम करना पड़ता है।
|-
|-
|12- चाँद को भी ग्रहण लगता है।
|12- जब तक साँस तब तक आस।
|
|
अर्थ - कभी भले आदमी की भी बदनामी हो जाती है।
अर्थ - अंत समय तक उम्मीद बनी रहती है।
|-
|-
|13- चाकरी में न करी क्याद।
|13- जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर।
|
|
अर्थ - नौकरी में स्वामी की आज्ञा माननी पड़ती है।
अर्थ - जबरदस्ती आदमी दबाव डाल कर काम लेता है ।
|-
|-
|14- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
|14- जबरा मारे रोने न दे।
|
|
अर्थ - सुख थोड़े ही दिन का होता है।
अर्थ - जवरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है।
|-
|-
|15- चिकना मुँह पेट खाली।
|15- ज़बान को लगाम चाहिए।
|
|
अर्थ - देखने में अच्छा–भला भीतर से दु:खी होना।
अर्थ - सोच-समझकर बोलना चाहिए।
|-
|-
|16- चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता।
|16- ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए।
|
|
अर्थ - निर्लज्ज आदमी पर कोई असर नहीं पड़ता है।
अर्थ - मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।
|-
|-
|17- घडियाँ गिनना।
|17- ज़र का ज़ोर पूरा है, और सब अधूरा है।
|
|
अर्थ - बेचैनी से प्रतीक्षा करना। 
अर्थ - धन सबसे बलवान है।
|-
|-
|18- घड़ों पानी पड़ जाना।
|18- ज़र है तो नर, नहीं तो खंडहर।
|
|
अर्थ - बहुत शर्मिंदा होना।
अर्थ - पैसे से ही आदमी का सम्मान है।
|-
|-
|19- घर काट खाने को आना।
|19- जल में रहकर मगर से बैर।
|
|
अर्थ - अकेलापन अखरना।
अर्थ - जहाँ रहना हो वहाँ के मुखिया से बैर ठीक नहीं होता ।
|-
|-
|20- घर का न घाट का।
|20- जस दूल्हा तस बनी बराता।
|
|
अर्थ - कहीं का भी नहीं रहना।
अर्थ - जैसे आप वैसे साथी।
|-
|-
|21- घर फूँक तमाशा देखना।
|21- जहं जहं चरण पड़े संतन के, तहं तहं बंटाधार।
|
|
अर्थ - अपनी हानि करके मौज उड़ाना।  
अर्थ - अभागा व्यक्ति जहाँ जाता है, बुरा होता है।  
|-
|-
|22- घर में गंगा बहना।
|22- जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी।
|
|
अर्थ - अच्छी चीज पास ही में मिल जाना।
अर्थ - आकर्षक जगह पर लोग जमा होते हैं।
|-
|-
|23- घाव पर नमक छिड़कना।
|23- जहाँ चार बासन होगें, वहाँ खटकेगें भी।
|
|
अर्थ - दु:खी को और दु:खी करना।
अर्थ - जहाँ कुछ व्यक्ति होते है वहाँ कभी-कभी झगड़ा हो ही जाता है।
|-
|-
|24- घाव हरा करना।
|24- जहाँ चाह वहाँ राह।
|
|
अर्थ - भूले हुए दु:ख की याद दिलाना।
अर्थ - इच्छा हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।
|-
|-
|25- घास काटना।
|25- जहाँ देखे तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात।
|
|
अर्थ - फूहड़ काम करना। ।
अर्थ - जहाँ कुछ प्राप्ति होती हो, वहाँ लालची आदमी जम जाता है।
|-
|-
|26- घास छीलना।
|26- जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
|
|
अर्थ - व्यर्थ समय गवाँना।।
अर्थ - कवि अपनी  कल्पना से सब जगह पहुँच जाता है।
|-
|-
|27- घिग्घी बँधना।
|27- जहाँ फूल वहाँ काँटा।
|
|
अर्थ - स्पष्ट बोल न सकना।
अर्थ - अच्छाई के साथ बुराई भी लगी होती है।
|-
|-
|28- घी घना मुट्ठी चना।
|28- जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता।
|
|
अर्थ -  
अर्थ - किसी के बिना काम रुकता नहीं है।
|-
|-
|29- घी के दिये जलना।
|29- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।
|
|
अर्थ - आनंद मंगल होना, खुशियाँ मनाना।
अर्थ - दु:ख को भुक्ता भोगी ही जानता है उसे अन्य  कोई नहीं जान सकता है।
|-
|-
|30- घी खिचड़ी होना।
|30- जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा।
|
|
अर्थ - खूब मिल- जुल जाना।।
अर्थ - लाभ इसमें है कि आदमी सतर्क रहे।
|-
|-
|31- घोंघा बसंत।
|31- जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले।
|
|
अर्थ - मूर्ख होना।
अर्थ - असरदार आदमी की बात माननी ही पड़ती है।
|-
|-
|32- घोड़े बेचकर सोना।
|32- जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।
|
|
अर्थ - निश्चिंत हो जाना।
अर्थ - बनिया और चोर जान पहचान वालों को भी ठगते हैं।
|-
|-
|}
|33- जाएं लाख, रहे साख।
|33- ख़ून खौलना / उबलना।
|
|
अर्थ - जोश में आना।
अर्थ - धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।
|-
|-
|34- ख़ून-पसीना एक करना।
|34- जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा।
|
|
अर्थ - कड़ी मेहनत करना।
अर्थ - जितना खर्चा करोगे चीज़ उतनी ही अच्छी मिलेगी।
|-
|-
|35- खेत रहना।
|35- जितनी चादर देखो, उतने ही पैर पसारो।
|
|
अर्थ - रणभूमि में मारा जाना।
अर्थ - आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
|-
|-
|36- खेल खेलना।
|36- जितने मुँह उतनी बातें।
|
|
अर्थ - परेशान करना।
अर्थ - अनेक प्रकार की अफवाहें।
|-
|-
|}
|37- जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ।
|37- काठ की हाँडी एक  ही बार चढ़ती है।
|
|
अर्थ - धोखेबाजी हर बार नहीं चल सकती है।
अर्थ - जितना कठिन परिश्रम उतना ही लाभ होता है।
|-
|-
|38- कान में तेल डाले बैठे हैं।
|38- जिस तन लगे वही तन जाने।
|
|
अर्थ - कुछ सुनते ही नहीं , दुनिया की खबर ही नहीं।
अर्थ - जिसको कष्ट  होता है वही उसका अनुभव कर सकता है।
|-
|-
|39- काम  का ना काज का , दुश्मन अनाज का।
|39- जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना।
|
|
अर्थ - निकम्मा  आदमी।
अर्थ - जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।
|-
|-|}
|40- काबुल में क्या गधे नहीं होते।
|40- जिसका काम उसी को साजै।
|
|
अर्थ - कुछ न कुछ बुराई सब जगह होती है।
अर्थ - जो काम जिसका है वही उसे भली प्रकार से कर सकता है।
|-
|-
|41- काम को काम सिखाता है।
|41- जिसका खाइए उसका गाइए।
|
|
अर्थ - काम करते-करते अनुभव से आदमी होशियार हो जाता है।
अर्थ - जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।
|-
|-
|42- काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान,<br />
|42- जिसकी जूती उसी के सिर।
काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक।
|
|
अर्थ - मृत्यु सब को आती है।
अर्थ - जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
|-
|-
|43- काला अक्षर भैंस बराबर।
|43- जिसकी लाठी उसी की भैंस।
|
|
अर्थ - पढ़ा  लिखा ना होना।
अर्थ - शक्ति संपन्न आदमी का रौब चलता है और वह अपना काम बना लेता है।
|-
|-
|44- काली के ब्याह को सौ जोखो।
|44- जिसके ह‍ाथ डोई, उसका सब कोई।
|
|
अर्थ - एक दोष होने पर लोग अनेक दोष निकाल देते हैं।
अर्थ - धनी आदमी के सब मित्र हैं।
|-
|-
|45- किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान।
|45- जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन।
|
|
अर्थ - स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती।
अर्थ - जिसको अफ़सर माने,वहीं योग्य है।
|-
|-
|46- किस खेत का बथुआ है, किस खेत की मूली है।
|46- जी का बैरी जी।
|
|
अर्थ - अरे ,वह तो किसी कीमत का नहीं है अर्थात नगण्य है।
अर्थ - मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है।
|-
|-
|47- किसी का घर जले कोई तापे।
|47- जीभ भी जली और स्वाद भी न आया।
|
|
अर्थ - किसी के दु:ख और परेशनी से दूसरे का खुश होना।
अर्थ - कष्ट सहकर भी सुख न मिला।
|-
|-
|48- कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता।
|48- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती
|
|
अर्थ - कोई अपने माल को खराब नहीं बताता।
अर्थ - थोड़ी सी कठिनाई के कारण कोई काम छोड़ा नहीं जाता।
 
 
 
 
|-
|-
|49- कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है।
|49- कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है।
पंक्ति 555: पंक्ति 559:
|-
|-
|}
|}
 
228 - देखकर मक्खी  नहीं निगली जाती,
`अर्थ - कहावत - अहित सामने देखकर चुप नहीं रहा जाता।
|}
|}

12:44, 11 मई 2010 का अवतरण

त्रिपुरा
त्रिपुरा प्रदेश के ज़िले

उत्तर त्रिपुरा ज़िला . दक्षिण त्रिपुरा ज़िला . धलाई ज़िला . पश्चिम त्रिपुरा ज़िला


कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें

                              अं                                                                                              क्ष    त्र    श्र
कहावत लोकोक्ति मुहावरे अर्थ

1- जो बोये गेहूं पांच पसेरी, मटर के बीघा तीन सेर,
बोये चना पसेरी तीन, सेर तीन जुबारी कीन्ह,
दो सेर मेथी अरहर माल, डेढ सेर बीघा बीज कपास,
पांच पसेरी बीघा धान, खूब उपज भर कोटिला धान।

अर्थ - एक बीघा में पांच सेर गेहूं, मटर तीन सेर, चना तीन पसेरी, ज्वार तीन सेर, अरहर और उड़द दो दो सेर बोना चाहिए। डेढ़ सेर कपास और धान पांच पसेरी बोया जाए तो अनाज की इतनी उपज होगी कि आपके भंडार भर जायेंगे।

2- जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।

अर्थ -

3- जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।।

अर्थ - चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।

4- जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती।।

अर्थ - पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र की बारिश से किसान सुखी रहते है, उन्हें और तांत(चरखा) चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।

5- जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।।

अर्थ - मघा नक्षत्र में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह पैदा होते हैं।

6- जब बरसेगा उत्तरा। नाज न खावै कुत्तरा।।

अर्थ - यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुत्ते भी नहीं खाएंगे।

7- जंगल में मोर नाचा किसने देखा।

अर्थ - ऐसे स्थान पर गुण प्रदर्शन न करें जहाँ कद्र न हो।

8- जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं।

अर्थ - भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।

9- जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ।

अर्थ - सबसे थोड़ा-थोड़ा मिले तो काम पूरा हो जाता है।

|10- जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं। | अर्थ - कभी वस्तु है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु नहीं।। |- |11- जब तक जीना तब तक सीना। | अर्थ - जीते-जी कोई न कोई काम करना पड़ता है। |- |12- जब तक साँस तब तक आस। | अर्थ - अंत समय तक उम्मीद बनी रहती है। |- |13- जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर। | अर्थ - जबरदस्ती आदमी दबाव डाल कर काम लेता है । |- |14- जबरा मारे रोने न दे। | अर्थ - जवरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है। |- |15- ज़बान को लगाम चाहिए। | अर्थ - सोच-समझकर बोलना चाहिए। |- |16- ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए। | अर्थ - मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है। |- |17- ज़र का ज़ोर पूरा है, और सब अधूरा है। | अर्थ - धन सबसे बलवान है। |- |18- ज़र है तो नर, नहीं तो खंडहर। | अर्थ - पैसे से ही आदमी का सम्मान है। |- |19- जल में रहकर मगर से बैर। | अर्थ - जहाँ रहना हो वहाँ के मुखिया से बैर ठीक नहीं होता । |- |20- जस दूल्हा तस बनी बराता। | अर्थ - जैसे आप वैसे साथी। |- |21- जहं जहं चरण पड़े संतन के, तहं तहं बंटाधार। | अर्थ - अभागा व्यक्ति जहाँ जाता है, बुरा होता है। |- |22- जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी। | अर्थ - आकर्षक जगह पर लोग जमा होते हैं। |- |23- जहाँ चार बासन होगें, वहाँ खटकेगें भी। | अर्थ - जहाँ कुछ व्यक्ति होते है वहाँ कभी-कभी झगड़ा हो ही जाता है। |- |24- जहाँ चाह वहाँ राह। | अर्थ - इच्छा हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है। |- |25- जहाँ देखे तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात। | अर्थ - जहाँ कुछ प्राप्ति होती हो, वहाँ लालची आदमी जम जाता है। |- |26- जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि। | अर्थ - कवि अपनी कल्पना से सब जगह पहुँच जाता है। |- |27- जहाँ फूल वहाँ काँटा। | अर्थ - अच्छाई के साथ बुराई भी लगी होती है। |- |28- जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता। | अर्थ - किसी के बिना काम रुकता नहीं है। |- |29- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई। | अर्थ - दु:ख को भुक्ता भोगी ही जानता है उसे अन्य कोई नहीं जान सकता है। |- |30- जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा। | अर्थ - लाभ इसमें है कि आदमी सतर्क रहे। |- |31- जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले। | अर्थ - असरदार आदमी की बात माननी ही पड़ती है। |- |32- जान मारे बनिया पहचान मारे चोर। | अर्थ - बनिया और चोर जान पहचान वालों को भी ठगते हैं। |- |33- जाएं लाख, रहे साख। | अर्थ - धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए। |- |34- जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा। | अर्थ - जितना खर्चा करोगे चीज़ उतनी ही अच्छी मिलेगी। |- |35- जितनी चादर देखो, उतने ही पैर पसारो। | अर्थ - आमदनी के हिसाब से खर्च करो। |- |36- जितने मुँह उतनी बातें। | अर्थ - अनेक प्रकार की अफवाहें। |- |37- जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ। | अर्थ - जितना कठिन परिश्रम उतना ही लाभ होता है। |- |38- जिस तन लगे वही तन जाने। | अर्थ - जिसको कष्ट होता है वही उसका अनुभव कर सकता है। |- |39- जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना। | अर्थ - जो उपकार करे, उसका ही अहित करना। |-|} |40- जिसका काम उसी को साजै। | अर्थ - जो काम जिसका है वही उसे भली प्रकार से कर सकता है। |- |41- जिसका खाइए उसका गाइए। | अर्थ - जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो। |- |42- जिसकी जूती उसी के सिर। | अर्थ - जिसकी करनी उसी को फल मिलता है। |- |43- जिसकी लाठी उसी की भैंस। | अर्थ - शक्ति संपन्न आदमी का रौब चलता है और वह अपना काम बना लेता है। |- |44- जिसके ह‍ाथ डोई, उसका सब कोई। | अर्थ - धनी आदमी के सब मित्र हैं। |- |45- जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन। | अर्थ - जिसको अफ़सर माने,वहीं योग्य है। |- |46- जी का बैरी जी। | अर्थ - मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है। |- |47- जीभ भी जली और स्वाद भी न आया। | अर्थ - कष्ट सहकर भी सुख न मिला। |- |48- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती | अर्थ - थोड़ी सी कठिनाई के कारण कोई काम छोड़ा नहीं जाता।



|- |49- कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है। | अर्थ - लाभ जहाँ से होता है वहीं खर्च भी हो जाता है। |- |50- कुतिया चोरों से मिल जाए तो पहरा कौन दे। | अर्थ - जब रक्षक ही बेईमान हो जाए तो क्या रास्ता है ? |- |51- कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है। | अर्थ - सफ़ाई सब को पसंद होती है। |- |52- कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखो तो भी टेढ़ी की टेढ़ी। | अर्थ - लाख प्रयत्न करो, कुटिल व्यक्ति अपनी कुटिलता नहीं छोड़ता। |- |53- कुत्ते को घी नहीं पचता। | अर्थ - नीच आदमी उच्चे पद पाकर दूसरों को बेवकूफ समझने लगता है। |- |54- कुत्ते के भौकनें से हाथी नहीं डरते। | अर्थ - महापुरूष नीच व्यक्ति के द्वारा निंदा करने से नहीं घबराते हैं। |- |55- कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है। | अर्थ - हर कोई अपनी वस्तु की प्रशंसा करता है। |- |56- कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा मर जाय। | अर्थ - प्रतिष्ठित व्यक्ति अपनी मर्यादा में रहता है। स्वाभिमान को छोड़कर नहीं जीना पसंद करता। |- |57- कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा गावे। | अर्थ - सबको अपने सुख-दु:ख से मतलब होता है। दूसरों के दु:ख की कोई चिन्ता नहीं करता। |- |58- कोई माल मस्तख़, कोई हाल मस्तत। | अर्थ - कोई अमीरी से संतुष्ट, कोई गरीबी में भी संतुष्ट है। |- |59- कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे। | अर्थ - धनवान धन होने पर भी चिंतित रहता है, गरीब धन ना होने पर भी निश्चिंत रहता है। |- |60- कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाइ। | अर्थ - कोशिश करने पर भी स्वभाव नहीं बदलता है। |- |61- कोयलों की दलाली में हाथ काले। | अर्थ - बुरों की संगत से भले आदमी को भी कलंक लग जाता है। |- |62- कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर। | अर्थ - पूरे साधन नहीं और काम शुरू कर दिया। |- |63- कौन कहे राजा जी नंगे हैं। | अर्थ - बड़े लोगों की बुराई करने कि हिम्मत किसी की नहीं होती। |- |64- कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल। | अर्थ - दूसरों की नकल करने से व्यक्ति अपना व्यक्तित्व भी खो बैठता है। |- |65- क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा। | अर्थ - तुच्छ वस्तु या व्यक्ति से बड़ा काम नहीं हो सकता है। |- |66- का वर्षा जब कृषि सुखानी। | अर्थ - अवसर निकलने जाने पर सहायता मिलना व्यर्थ होता है। |- |67- कच्ची गोली नहीं खेलना। | अर्थ - अनुभवहीन नही होना , पारंगत होना। |- |68- कट जाना। | अर्थ - शर्मिंदा होना, शर्मिंदा होकर सामने ना पड़ना। |- |69- कटे पर नमक छिड़कना। | अर्थ - दु:खी व्यक्ति को और अधिक दु:खी करना। |- |70- कढ़ी का सा उबाल। | अर्थ - मामूली से जोश में आना। |_ |71- कदम उखड़ना। | अर्थ - भाग खड़े होना। |- |72- कन्नी काटना। | अर्थ - सामने ना पड़ना, कतरा कर निकल जाना। |- |73- कमर कसना। | अर्थ - पूरी तरह तैयार हो जाना। |- |74- कलम का धनी। | अर्थ - अच्छा लेखक होना, भाषा पर पकड़ होना। |- |75- कलम तोड़ना। | अर्थ - बहुत बढ़िया लिखना। |- |76- कली खिलना। | अर्थ - बहुत खुश होना। |- |77- कलेजा ठंडा होना। | अर्थ - मन को सुख, शांति और सकून मिलना। |- |78- कलेजा धक से रह जाना। | अर्थ - डर जाना, घबरा जाना। |- |79- कलेजा मुँह को आना। | अर्थ - दु:ख होना, परेशान होना। |- |80- कलेजा का टुकड़ा। | अर्थ - बहुत प्यारा बेटा होना। |- |81- कलेजे पर साँप लोटना। | अर्थ - डाह से कुढ़ना, जलन होना। |- |82- कहा-सुनी होना। | अर्थ - लड़ाई झगड़ा होना। |- |83- काँटा दूर होना। | अर्थ - बाधा दूर होना, रूकावटें हट जाना। |- |84- काँटे बिछाना। | अर्थ - रूकावटें और अड़चने पैदा करना। |- |85- काँटों पर लेटना। | अर्थ - बेचैन होना, परेशान होना। |- |86- काँटों पर घसीटना। | अर्थ - संकट, मुसीबत में डालना। |- |87- कागजी घोड़े दौड़ाना। | अर्थ - केवल लिखा-पढ़ी करते रहना। |- |88- काजल की कोठरी। | अर्थ - कलंक लगने का स्थान। |- |89- काठ का उल्लू। | अर्थ - महामूर्ख होना, बुद्धि ना होना। |- |90- काठ मार जाना। | अर्थ - हतप्रभ हो जाना, अचम्भित होना। |- |91- कान कतरना। | अर्थ - मात देना, बेवकूफ बनाना। |- |92- कान खड़े होना। | अर्थ - चौकन्ना होना। |- |93- कान खोलना। | अर्थ - सावधान कर देना। |- |94- कान गरम करना। | अर्थ - पिटाई करना। |- |95- कान देना। | अर्थ - ध्यान से सुनना। |- |96- कान पकड़ना। | अर्थ - गलती मान लेना। |- |97- कान पर जूँ तक न रेंगना। | अर्थ - कुछ भी परवाह न करना। |- |98- कान भरना। | अर्थ - चुगली करना। |- |99- कान में बात डाल देना। | अर्थ - सुना देना, कह देना। |- |100- कान में तेल डालकर बैठना। | अर्थ - सुनकर भी सुनी हुई बात पर ध्यान न देना। |- |101- कान में फूँकना। | अर्थ - चुपचाप से कह देना। |- |102- कान लगाना। | अर्थ - ध्यान देकर सुनना। |- |103- काफूर होना। | अर्थ - गायब हो जाना। |- |104- काम आना। | अर्थ - शत्रु के हाथों मारा जाना। |- |105- काम तमाम करना। | अर्थ - मार डालना। |- |106- काया पलट जाना। | अर्थ - बदल कर दूसरा ही रूप हो जाना। |- |107- काल कवलित होना। | अर्थ - मर जाना। |- |108- काल के गाल में जाना। | अर्थ - मर जाना। |- |109- काला नाग। | अर्थ - खोटा या घातक व्यक्ति । |- |110- काला मुँह करना। | अर्थ - बदनामी करना, नाम खराब करना। |- |111- काले कोसों। | अर्थ - बहुत दूर। |- |112- क़िताबी कीड़ा होना। | अर्थ - केवल पढ़ने में ही लगे रहना। |- |113- किरकिरी हो जाना। | अर्थ - विघ्न पड़ना। |- |114- किस दर्द या मर्ज़ की दवा। | अर्थ - किसी भी काम का न होना। |- |115- किस्मत फूटना। | अर्थ - बुरे दिन आना। |- |116- कीचड़ उछालना। | अर्थ - निंदा करना। |- |117- कुआँ खोदना। | अर्थ - किसी को हानि पहुँचाने की कोशिश करना। |- |118- कुएँ में गिरना। | अर्थ - विपत्ति में पड़ जाना। |- |119- कुएँ में भाँग पड़ना। | अर्थ - सबकी बुद्धि मारी जाना। |- |120- कुछ उठा न रखना। | अर्थ - कोई कसर या कमी न छोड़ना। |- |121- कुत्ते की दुम। | अर्थ - जैसा है वैसा ही रहना, बदलाव ना आना। |- |122- कुत्ते की मौत मरना। | अर्थ - बुरी तरह मरना। |- |123- कूच कर जाना। | अर्थ - चले जाना। |- |124- कूप मंडूक होना। | अर्थ - सीमित ज्ञान या अनुभव वाला होना। |- |125- कोई दम भर का मेहमान होना। | अर्थ - मरने के क़रीब होना। |- |126- कोढ़ में खाज होना। | अर्थ - दु:ख में और दु:ख होना। |- |127- कोर दबना। | अर्थ - दबाव में होना। |- |128- कोल्हू का बैल। | अर्थ - दिन रात काम में लगे रहने वाला। |- |129- कौए उड़ाना। | अर्थ - घटिया या छोटे काम करना। |- |130- कौड़ी-कौड़ी पर जान देना। | अर्थ - कंजूस होना। |- |131- कंधे से कंधा छिलना। | अर्थ - भारी भीड़ का होना, मेलों में यात्रियों का कंधे से कंधे छिलता है। |- |132- ककड़ी-खीरा समझना। | अर्थ - किसी व्यक्ति को नगण्य या तुच्छ समझना। |- |133- कच्चा चिट्ठा खोलना। | अर्थ - सबके सामने सब भेद खोल देना। |- |} 228 - देखकर मक्खी नहीं निगली जाती, `अर्थ - कहावत - अहित सामने देखकर चुप नहीं रहा जाता। |}