"भेद कुल खुल जाए -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर

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भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है ।
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है।
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है ।।
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है॥


हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये,
हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये।
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है ।
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है॥


तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में,
तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में।
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है ।
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है॥


पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली,
पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली।
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है ।
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है॥


ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें,
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें।
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है ।
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है॥
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08:48, 25 अगस्त 2011 का अवतरण

भेद कुल खुल जाए -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है।
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है॥

हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये।
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है॥

तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में।
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है॥

पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली।
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है॥

ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें।
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है॥












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