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14:46, 11 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • इस अनुवाक में '' को ही 'ब्रह्म' माना गया है और उसी के द्वारा 'ब्रह्म' को प्राप्त करने की बात कही गयी है।
  • आचार्य 'ॐ' को ही प्रत्यक्ष जगत मानते हैं और उसके उच्चारण अथवा स्मरण के उपरान्त साम-गान तथा शस्त्र-सन्धान करते हैं।
  • 'ॐ' के द्वारा ही अग्निहोत्र किया जाता है।


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