"तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-7": अवतरणों में अंतर
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14:46, 11 सितम्बर 2011 का अवतरण
- तैत्तिरीयोपनिषद के भृगुवल्ली का यह सातवाँ अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- भृगु ऋषि ने कहा कि अन्न की कभी निन्दा नहीं करनी चाहिए।
- 'प्राण' ही अन्न है। शरीर में प्राण है और यह शरीर प्राण के आश्रय में है।
- अन्न में ही अन्न की प्रतिष्ठा है।
- जो साधक इस मर्म को समझ जाता है, वह अन्न-पाचन की शक्ति, प्रजा, पशु, ब्रह्मवर्चस का ज्ञाता होकर महान यश को प्राप्त करता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली |
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